Sunday 3 February 2019

भावलेख: मेरे देश, एक चिट्ठी, देश के नाम

मेरे देश !!
सब कहते हैं बहुत भावुक हूँ मैं
मेरा मन भर आता है हर बार जब भी देखतीं हैं आँखे अमर जवान ज्योति की लौ को टकटकी लगाकर बस यूँ ही किसी सैनिक की बेटी की तरह और उसमें से हँसने लगता है लपटों से दहकता मुखड़ा किसी पिता का मन कहने लगता है जयहिंद !!!!
मेरे देश
सब कहते हैं बहुत कल्पनाशील हूँ मैं
मेरा मन यूँ ही सोच लेता है वे सब दर्द बहिनों के जब जाते हैं वर्दियों में आँखें भरकर हँसते हुये वीर जल्दी आने को कहकर फिर तकती रहती है लड़की चुपचाप रोज दरवाजा और डरती रहती है कहीं कुछ अनहोनी न हो जाये आ ही जाती है किसी न किसी के घर एक हृदय चीरती खबर और मैं भरभरा कर रो पड़ती हूं हर बार हर खबर हर सैनिक की अमर यात्रा पर अपने हाथों में कल्पना की रोली अक्षत लिये डोरियां थामे सिसकती आँखें मेरी ही हो हो जाती है केसरिया
मेरे देश !!
सब कहते हैं बहुत जिद्दी हूँ मैं मुझे हर बार ही तो धुन सवार होती है देश की माटी छानने की जिसमें से हर गद्दार नमकहराम देशद्रोही बीज खाद पौधे फल कलम सब समूल सवृन्त सशाख पत्र नष्ट करने की और मैं जब कुछ नहीं कर पाती तो लिखने लगती हूँ कुश की जड़ों पर मट्ठे से अक्षर और डालती रहतीं हूँ कंटकों की जड़ों पर मुझे लगता है अभी कोई वीर यहां से निकलेगा और यह समूल कंटक कुचला ही जायेगा ।रोज ही यमद्वितीया के कांटेकूचने की प्रथा निभाती ही रहती है मेरी कलम और मैं इतने प्रहार से लिखने लगती हूँ कि चीखने लगते अक्षर  ,
मेरे देश !!
सब कह देते हैं लिखने से क्या होगा बावली हो तुम ,और मैं उठा लेती हूँ उसमें से एक शब्द बावली के लिये पत्थर की तरह मेरा राष्ट्र साकार हो जाता है हवा में पानी में आग में आकाश में मिट्टी में और मुझमें मैं नन्हे बच्चों को फूलों के पौधों की तरह राष्ट्र के नक्शे पर रखने लगती हूँ यह आकाश का प्रहरी यह सागर का यह शिखर का यह हवा का यह मिट्टी का और यह मेरी स्वतंत्रता का ये अभिनय जीवंत होने लगता है और हर सैनिक हर देश रत्न युवा मुझे मेरा सुपुत्र लगने लगता है मेरी ममता भरभरा कर हृदय में हूकने लगती है हाथ में रोटी माखन फल दूब तिलक लिये मैं कल्पित तिलक करक करके हर पुत्र को कहने लगती हूँ देश नहीं रुकने देना देश नहीं झुकने देना उन सब चौड़े माथों और ऊँचे कंधों पर मेरे अंतरमन के आशीष बरसने लगते हैं और हर दिन हर शाम हर पुत्र को विजयी देखने के लिये दीप धरने लगते हैं ,
दूर कहीं से आवाजें आती हैं वन्दे मातरम मां तुझे सलाम ,मन हुलस कर कहने लगता है मेरे लाल तू है देश की शान ,जयहिंद के तीखे स्वरों के बीच हर बार हर माँ की कराह और आह मैं सुनकर भिगो लेती हूँ अपनी भी आँखें चुपचाप ,
चाहें तो पागल भावुक कल्पनाशील जिद्दी बावला भी कह सकते हैं मुझे आप !!
©®सुधा राजे

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