लेख: कैसे भुलईबैं सूने अँचरा कै पिरिया, पूर्वी उ.प्र.

कइसे भुलइबैं सूने अँचरा कै पिरिया
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: सुधा राजे का लेख
गोरखपुर से जब सांसद रहे योगीआदित्यनाथ जी जब सपा की सरकार यूपी में थी तब भी हर वर्ष वहां कभी डेंगू कभी जापानीबुखार कभी फायलेरिया कभी बाढ़जन्य संक्रमण कभी मलेरिया चिकुनगुनिया ...........से उन बस्तियों में महामारी फैलती रहती थी जो जलाशय नदी बाढ़ डूब या जलभराव वाली जगहों पर हैं ।
हमने बहुत गहनता से वह सारा क्षेत्र घूमा देखा समझा है ।
जो लोग महानगरों में रहते हैं वे कल्पना भी नहीं कर सकते कि ताड़ पलाश कास फूस बांस के मिट्टी वाले छप्परों के भीतर रहते ग्रामीण ,घोंघा ,चूहे से बड़ा चूहा मूष ,झींगा, नन्ही मछलियां ,उबली अरहर ,उबली धान ,उबले हुये आटे की टिकियां ,कम ईधन की वजह से गरम राख में भुनी लिट्टी ,आलू का भुरता और प्राय:चावल पतली दार बिना मसालेवाली सूखी आलू की सब्जी प्रमुखता से खाते हैं । भुनी हुयी शकरकंद गुड़ चिवड़ा पोहा तो दावत जैसी बात हो जाती है । तेल मसाले मिठाई ठीक से सिंकी चपातियां प्राय:बड़े त्यौहारों पर ही उपलब्ध होतीं हैं ।
शौच जाने को सही जगह न होने के कारण दलदली जलभराव वाली जगहों पर नाव डोंगी बेड़ा बनाकर बरसात में जाते हैं लोग करीब के खेत पोखर आदि में ।
बच्चे मीलों दूर खपरैल वाली सरकारी गैर सरकारी पाठशाला में कपड़े में बांधकर भूजा लेकर जाते हैं पढ़ने भूजा यानि भुने हुये चावल गेंहू मक्का ज्वार बाजरा दालें चना घुघरी ,यही भूजा लईया सबसे प्रमुख नाश्ता है ग्रामीण अंदरूनीी जलभराव वाले क्षेत्र का ।
राप्ती कुआनो का कहर हर साल बाढ़ ला देता है ""कछार ""कहलाने वाले गांवों में जहां से लोग बरसात से पहले पलायन कर जाते हैं दूर नगरों में मेहनत मजदूरी के लिये ।
दलदल जलभराव
के कारण मिट्टी में आयोडीन नहीं है सो घेंघा रोग मंदबुद्धि रोग कद का ठिगना रह जाना भी बहुत पाया जाता है ।
मिनरल खनिज सब समाप्त हो जाते हैं बाढ़ से बहकर काशी प्रयाग प.यूपी तक चले जाते हैं ।
इस कारण गर्भपात और गर्भविकृतियाों वाली संतानें तक होतीं हैं होंठ कटे होना नाक कान या गुदा बंद होना अचंभे की बात नहीं ।
बहुत जनजागरूकता न होने से स्थानीय लोगों में साफ सफाई का सामान्य बरताव कम है जिसकी समस्या से प्रदूषण संक्रमण बहुत जल्दी फैलता है ।
मांसाहारी लोग तो हैं ही साथ ही ताड़ी और देसी कच्ची शराब गांजा खैनी सुरती बहुतायत नशा किया जाता है ।नेपाल सीमा से तस्करी से गांजा लड़कियां और नशीली चीजें अकसर आती जाती रहतीं हैं सुबुत नहीं परंतु ऐसे लोगों को जाना जिन्होनें चोरी से नेपाल यात्रा की नशा किया ।
मच्छर इतने अधिक हैं कि दिन हो या रात चैन से बैठ ही नहीं सकते । हर व्यक्ति इतना सक्षम नहीं कि मच्छरदानी या माॅस्क्विटो काॅयल रिपेलर ले सके सो ये मच्छर जमकर बीमारियां फैलाते हैं ।
दूसरे प्रदेशों की बाढ़ का जल बह जाता है परंतु गोरखपुर बलिया देवरिया गोंडा बस्ती संत कबीरनगर बहराईच छपरा आरा तक का हाल खराब है इनके भीतरी गांवों का पानी भरा ही रहता है दलदली खाई खंदकों खेतों बागों पोखरों धुबहियों में । रहन सहन के अभ्यास ऐसे हैं कि हैंडपंप मात्र बीस से चालीस फीट गहरा होने पर पानी देने लगते हैं एक कारीगर एक दिन में लगा कर चल देता है परंतु अशुद्ध आर्सिनिक और फ्लोराईड वाला पानी बहुतायत नलों में आता रहता है ।नलों पर काई कीचड़ कीट बैक्टीरिया फंगल इन्फेक्शन जमकर पनपते रहते हैं कौन समझाता सिखाता है कि साफ कैसे और क्यों रहना है ।
बीमारी को प्रेत पिशाच डायन टोना टोटका किया धरा समझकर पहले ओझा जादूगर तांत्रिक से झड़ाया जाता है । बहुत बड़े बड़े भयानक कारनामे करतब करके दिखाते हैं ये तांत्रिक गांव गांव आतंक रहता है इनका लोग डरे रहते हैं ।
बात बस से बाहर होने पर ही अस्पताल जाते हैं ।
प्राथमिक अस्पतालों से पहले गली गली हकीमजी और झोलू डाॅक साब बैठे हैं ।
उनके ना कहने पर छोटे फिर वहां से निराश होकर महानगर गोरखपुर वहां से लखनऊ आते हैं ।
तब तक प्राथमिक चिकित्सा के नाम पर तंत्र मंत्र गंडा ताबीज कलमा मंतर चलता रहता है ।
अ्स्पतालों की हालत नरक जैसी है । भयंकर गंदे और भीड़ भरे । न पर्याप्त बेड हैं न पूरे डाॅक्टर हैं । अभी दो चार वर्षों में तो बहुत बहुत बहुत सुधार हुआ है तब ये हाल है दस वर्ष पहले की हालत की कल्पना करना भी भयावह है । फर्श पर पड़े मरीज मामूली गंदे निजी बिस्तर पर और वहीं कहीं झाड़ झंखाड़ में खाते पकाते पड़े रहते परिवार के लोग ।
तनिक बारिश आते ही पूरा गोरखपुर महानगर ही नहीं मंडल भर का क्षेत्र जलभराव का शिकार हो जाता है नावें चलानी पड़ जाती हैं ।
संसद में आदित्यनाथ जी ने दुखद यातना बताकर बार बार मदद मांगी है । वे उत्तराखंड के स्वच्छ पहाड़ी सुंदर क्षेत्र में पले बढ़े पढ़े हैं परंतु आधी आयु गोरखपुर में बिता दी है वहीं उनका वास्तविक घर है ।
आज जो बच्चे चल बसे वे सब उसी यातना की एक कड़ी हैं जो दशकों से उस क्षेत्र का दुर्भाग्य हैं ।
राहुल गांधी जी ने एक बार हैलीकाॅप्टर से मच्छरनाशक भेजे थे परंतु सपाई सरकार ने आज्ञा नहीं दी थी छिड़काव की ।
ऐसी तो नफरत मौकापरस्त राजनीति की जाती रही है गोरखपुर के साथ ।
क्योंकि वहां नाथपंथ है गोरखधाम है तमेसरनाथ है समयमाता है साधुओं का धाम है गीताप्रेस है । और है हिंदूवादी दलित सवर्ण मेलजोल जो पसंद नहीं मुख्यधारा के मजहबवादी जातिवादी कन्वर्जनवादी लोगों को ।
आज फिर दुखद हालात हैं परंतु आवश्यकता है कि विज्ञान से तकनीक से नीति से समाजसुधार से शिक्षा से गोरखपुर देवरिया बलिया बहराईच आराबिहार छपराबिहार और गोंडा बस्ती संतकबीरनगर तक की स्थिति सुधारी जाये ताकि बीमारी न फैले न पनपे । और यदि हो ही जाये तो चिकित्सा पूरी तत्काल हो सके सही तरीके से ।
©®सुधा राजे

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