लेख::-""स्त्री और समाज।""

एक महा विद्वान की पोस्ट पर एक
""शराब पीने वाली स्त्री को एक
तथाकथित विदवान ""बिना लायसेंस
वाली वेश्यायें ""
कह रहे हैं ।
अगर आप सबने हमारे विगत
दो महीनो के लेख पढ़े होंगे तो हमने
""नशा और शराब को सख्त मना किया है
स्त्री के लिये और नशा करने वाले पुरुष
पर किसी भी हालत में कतई तक
भी विश्वास ना करने को कहा है ।
किंतु
सवाल ये है कि भारत
की बङी आबादी जो जंगलों में रहती है
पहाङो और रेतीलों में रहती है
वहाँ वनवासी और खानाबदोश
मजे से बिना किसी भेदभाव के
शराब पीते और नाचते गाते हैं ।
और उनमें उतनी सभ्यता नहीं कि वे जाम
बनाये
मगर वहाँ औरतों पर शोषण अत्याचार
नगण्य हैं ।
वे मजे से रहती है और
नाचती गाती जोङियाँ सुख से मेहनतकश
जीवन जीती हैं ।
गाँवों में प्रौढ़ महिलायें
हुक्का बीङी और भाँग खूब पीती है और
कतई उनको कोई बदचलन
या वेश्या नहीं कहता है ।
पुरुषों के साथ नाचना गाना मेला उत्सव
जाना ये सब बाते भारत के
वनवासी जीवन का अनिवार्य अंग है ।
तो सोचने वाली बात है
कि
आधपनिकता के नाम पर जो महिलायें
शराब नशा करतीं हैं और पुरुषों के बीच
हँसती गाती दोस्ती यारी की बातें
बराबरी की बातें करतीं है ।
वे पीठ पीछे
उन्ही मंडली वालों द्वारा ""क्या समझ
जाती हैं???
ग़ौर करें सोच को जब तक आपके सामने
व्यक्त ना किया जाये आप सामने वाले
को भला मानुष और खुले मन का साफ
इंसान समझतीं रहेगी वह यार यार कहके
बात करता रहेगा कंधे पर सिर पर पीठ
पर हाथ रखकर गले लगाकर
अनुमति का दायरा बढ़ाता रहेगा ।
आप
मॉडर्निटी के चक्कर में सब अवॉईड
करती रहोगी
और शराब पीने के बाद उसी मंडली में से
कुछ तथाकथित लोग उस हँसने बतियाने
शऱाब पीने
वाली लङकी को ""बिना लायसेंस
वाली वेश्या ""भी समझ लेंगे ।
यही अंतर है
भारतीय और बल्कि एशियाई समाज में
""जितना नगरीकरण और
तकनीकी जीवन होता जाता है
मर्दवादी सोच
उतनी ही गिरती चली जाती है।
एक
समय जींस पहननेवाली लङकी को चालू
समझा जाता था ।
आप समझें या न समझें भारतीय
मर्दवादी समाज
जितना नौकरीपेशा पुरुष वर्ग लेखक
शिक्षक धार्मिक नेतृत्व समुदाय
घटिया सोचता है उतना कोई नहीं ।
आज भी गाँवों की मेहनतकश दलित और
वनवासी महिलायें बङी संख्या में शराब
बनाती बेचती पीती पिलाती है
उनकी आजीविका का साधन
तेंदूपत्ता बीङी महुआ शराब गाँजा भाँग
अफीम है।
इसी से सोच का पता चलता है ।
बङी संख्या में पारंपरिक परिवारों में
महिलायें पान खातीं है
किंतु
आजके महानहरों में जहाँ हर दूसरे तीसरे
की जेब में गुटखा सिगरेट बीङी होता है
।पान की दुकान पर जमघट
लगा रहता है ।
पान खाने वाली स्त्री बस ऑटो दफतर
कहीं दिख जाये तो सबकी भवों पर बल
पङ पङ जाते हैं चालू लगने लगती है वह।
ये है पढ़ा लिखा नगरीय मर्दवादी मुख्य
समाज
जो मानता है कि अपनी मरजी से ज़ीने
का हक़ सिर्फ उसको है ।
स्त्रियाँ सिर्फ पुरुषों के बनाये
नियमों पर ही चल सकतीं हैं।
गज़ब!
ये कि ये ही लोग दफतर घर बाहर
महिला को
शराब सिगरेट पान नशा ऑफर करके
खुलकर जीने पीने नाचने गाने को हक
बताते हैं।
सोचो लङकियो!!
जब कहीं पार्टी में आईन्दा ऐसा ऑफर
मिले तब ग़ौर देना कि वहाँ लोग समझ
क्या रहे
अब ये बात है तो ।।।।नैतिक अनैतिक
पुरूषो का भी वर्गीकरण होना चाहिये
न????
सब शराब पीने नशा करने वाले पुरुष
गैरलायसेंस वाले ------क्या समझे जाने
चाहिये????? अपने व्यवहार और आचरण से
एक पुरुष भी नैतिक और अनैतिक चालचलन
वाला घोषित होना चाह्यिये न
यही है
तथाकथित आधुनिक मॉडर्न समाज।।।
जिसे नियम पसंद नहीं ।।।हम लोग
तो इनको दकियानूसी लगते है
रस्म पगङी पर हमारे ससुर जी के देहांत
के बाद हमारे सामने गृह स्वामिनी होने
के रिवाज़ में तख्त पर बिठाकर हुक्का और
पान बीङी सिगरेट परोसा गया ।।।
यानि सास ससुर के बाद अब परंपरा से
बङी मुखिया होकर सबके सामने
हमको हुक्का बीङी सिगरेट पान
का अधिकार मिल गया है।।।वह अलग
मैटर है कि आपको पीना या नहीं किंतु
रस्म के लिये एक एक फूँक तो हम दोनों ने
ही सबके सामने उलटी मारी ही
23 गुण सूत्र पुरुष और 23ही गुणसूत्र
स्त्री के निर्माण में लगते हैं ।।।।
प्रकृति ने सृजन का बीज गोदाम पुरुष
को और धरती स्त्री को बनाया ।।।
सृजन केवल दर्द ही दर्द हैं इसीलिये
स्त्री दर्द सहकर सृजन करती है पुरुष के
स्त्री बीज से स्त्री और पुरुष बीज से
पुरुष जन्मती है ।।ये सब एकदम नीरस और
लंबी दर्दकारी प्रक्रिया मात्र न रहे
इसलिये प्रेम और संसर्ग सुख को क्षणिक
आनंद कारी बनाया गया ।।वरना पुरुष
की स्त्री में रूचि नहीं रहती ।।पुरुष के
सब सृजन स्त्री पर हैं ।।।स्त्री पूर्ण
व्यक्ति है ।।और अगर कोई अधूरा है
तो पुरुष है ।।।।परिवार तब तक
सुरक्षित है जब तक पुरुष
को स्त्री सहती है और प्रेम कर्त्तव्य से
सींचती है ।।।दुष्ट पुरुष
को स्त्री निभा लेती है परंतु कम
ही पुरुष होंगे जो दुष्ट
स्त्री को निभा लें।
वेस्टर्न महिला भी वेश्या नहीं है वह
भी माता बहिन बीबी बेटी है ।।मुक्त है
तो समाज की रवायतें खुली हैं और हक़ है
।।।नकल करने से भारतीयों ने सामान
तो अपना लिये मुक्ति के हक़ नहीं विचार
की निर्बाध धारा नहीं
बेशक जरूरी है कि महिलायें शराब और नशे
से दूर रहें विशेष कर । ।किंतु
किसी को भी व्यक्ति रूप में उसको केवल
पुरुषो के साथ बैठने उठने मैत्री और शराब
सिगरेट के आधार पर चरित्रहीन कहने
का हक़ नहीं ।।।विशेषकर
उनको तो कत्तई नहीं जो खुद शराब
सिगरेट और महिलाओं के बीच बैठने
को लालायित रहते है।
सवाल बस इतना ही है बंधु कि जब मासूम
से होशियार तक कोई
भी स्त्री हमला आक्रमण और छेङछाङ
तेज़ाब अश्लील स्पर्श से बची होने
की गारंटी के साथ जी सकेगी ।।।।
तभी हर व्यक्ति कह सकेगा हम सभ्य
समाज में हैं ।।
क्यों जुलूस में मेले में बस ट्रेन में
स्त्री को डर लगता है????? किनसे??????
जवाब खुद मिल जायेगा ।।।।हाँ डर के
बाद भी स्त्री को जीना है
तो निकलना तो पङेगा।
नशा सर्वनाश की जङ है ।।।
वही व्यक्ति दोपहर तक इंसान
सा जो शाम बाद हिंसक अमानुष
हो सकता है दिमाग
ही नहीं तो गलतियाँ सब तरह की नशे के
साथ किसकी सही बात??
बिलकुल जब जब समाज सुधार की बात
होती है पुरुष को छोङ कर केवल
औरतों लङकियों के ही हर एक्शन पर
बवाल खङा किया जाता है चाहे कपङे
हो चाहे नशा चाहे घर की जिम्मेदारी
पाश्चात्य संस्कृति को कोसने वाले
कभी जब भी बात उठाते है केवल
स्त्री की ही हदें तय करते हैं और
स्त्री को ही मुगल काल तक पीछे खीचने
पर तुल जाते है ।।।तिलक लगाये
रूद्राक्ष डाले या दाङी बढ़ाये जाम
लङाते शैंपेन उङाते लोग जब पश्चिमीकरण
पर तर्क करते हैं तो स्त्री ही निशाने
पर रहती है उसकी शिक्षा कपङे
बोली खाना और हक
©®sudha raje

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