Friday 27 December 2013

लेख :समलैंगिक जोङे बनाम परिवार और समाज की जिम्मेदारियाँ? कैसे उठायेंगे ये लोग और क्यों नहीं कर्त्तव्य जब चाहिये अधिकार तब कीजिये त्याग भी

Sudha Raje
कोई स्त्री इतना मेकअप गहने और शरीर
उछाल उछाल कर हर समय केवल सेक्स
टॉक करती समाज के बीच
बच्चों परिवार जनों बङो के बीच
नहीं रहती ।
ना ही हर वक्त पति पत्नी बेडरूम में
लिपटे पङे रहते हैं ।
जीवन में समाज की मरयादा है और
संतान मूक बधिर हो तब
भी पिता माता की सेवा बुढ़ापे में करते
देखी जाती है तनहा सिंगल लोग
भी नौकरी मजदूरी करके पेट पालते और
परिवार का बोझ उठाते है ।
स्त्री पुरुष विवाह की तरह गै विवाह
को परिवार नहीं माना जा सकता वह
सिर्फ यौनसंबंध का स्थायी पार्टनर है
क्योंकि वह पुरुष या स्त्री जोङा अपने
अपने माँ बाप परिवार और समाज
की जिम्मेदारी नहीं उठा रहा है ।
वह पूरा कुनबा केवल इसलिये छोङ
देता है कि उसको लगता है कि वह आम
लोगो की तरह दैहिक संबंध
नहीं बना सकता!!!!!!!
क्या सब नॉर्मल लोग हर दिन हर समय
केवल दैहिक रिश्ते की दम पर
ही परिवार में रहते है!!!!!!
अंधा गूँगा बहरा लँगङा बीमार और
पागल बच्चा भी परिवार पालता ही है
फिर
ये यौनविकृत लोग क्यों नहीं रह सकते
परिवार में????
लाखों स्त्रीपुरुष है
जिनकी शादी नहीं हो पाती ।
या साथी की मौत के बाद
पूरी जिंदगी परिवार के लिये विवाह
ही नहीं करते ।
ये कमरे के भीतर की बात है
कि लाखो जोङे साल साल भर तक
कभी एक साथ नहीं हो पाते
किसी किसी का साथी पाँच साल दस
साल तीन साल पर परदेश से आता है।
कोई बीमार है या दुर्घटना में दैहिक
ताकत खो चुका है परंतु लोग रहते है जोङे
में परिवार में ।
हर वक्त यौनसंबंध ही नहीं जीवन
को संचालित करते हैं ।
लोग बेशक सेक्स से जुङकर ही परिवार
शुरू करते है किंतु केवल सेक्स ही परिवार
की हर समय की वजह नहीं ।
क्या करते है लोग नौकरी पर जाते है
बच्चे पालते है ।समाज
सेवा कला साहित्य और
राजनीति वित्त और बच्चे वास्तु और
पर्यटन सब पर जीवन जहाँ जैसी जरूरत
हो खरच करते है ।
किंतु बहुत बनावटी और बहुत
ही दिखावा परक हर समय केवल
स्त्री न होने या पुरुष न होने की वजह
से मात्र बेड बेड बेड बर्राना
कहीं भी मानवता नहीं । समाज में
सबको जीने का हक है ।
चाहे वह नर हो किन्नर
हो नारी हो और चाहे दैहिक
विकृति प्राप्त विकलांग मनुष्य हो ।
किंतु समाज के नियम है ।
सार्वजनिक अश्लीलता फैलाना गुनाह है
अनैतिक है । और किसी बच्चे
को किसी दैहिक कमी के कारण माँ बाप
परिवार से छीनकर अनाथ कर
देना महापाप है ।
कोई बच्चा केवल इसलिये किसी किन्नर
या गे कम्युनिटी को पैदा होते
ही नहीं कदापि नहीं सौंपा जाना चाह
कि वह पुरुष या स्त्री नहीं है ।
वह परिवार में ही रहे ।
परिवार में रहकर पढ़े और हुनर सीखे
रोटी कपङा मकान कमाकर खुद खाने और
पिता माता आश्रितों तक को भी अपने
साथ हमेशा रखकर खिलाने सेवा करने
का ।
दुकान खोले या कारीगर बने ।
पच्चीस तीस साल तक पहले हाथ पैर
दिमाग का इस्तेमाल करे ।
यौनांग ठीक है या नहीं इनका नंबर
जॉब रोजगार और पढ़ाई लिखाई के बाद
का सवाल है ।
बालिग होने तक और जॉब कैरियर
रोजगार पा लेने तक हर बच्चे
को पिता माता परिवार संरक्षक के
ही देखरेख निगरानी प्यार
ममता छाया में रहने देना चाहिये ।
रहने का हक़ है ।
कौन सा इंसाफ है कि जैसे
ही पता चला बच्चा यौनांग विहीन
या विकृत है उसको त्याग देना????
या छीन ले जाना??? या चुराकर बच्चे
जबरन विकृत बनाना????
अरे!!!!! उसके हाथ पाँव आँखे
उंगलियाँ नाक कान गला आवाज और
दिमाग तो सही सलामत है न!!!!!
वह क्यों नहीं कमा खा सकता????
जब बालिग हो जाये तो अगर वह महसूस
करता है कि वह किसी पुरुष पुरुष
या स्त्री स्त्री जोङे में ही सुखी रह
सकता है तो वह ऐसा करे या न करे ये
सवाल बहुत बाद का है ।
पहले सवाल है कि क्या मेडिकल साईंस में
कोई इलाज संभव है??
अगर है तो परिवार सरकार इलाज
मुहैया कराये ।
अगर लाईलाज विकृति विकलांगता है
तो भी लाखों मूक बधिर विकलांग
परिवारियों की तरह वह
व्यक्ति भी परिवार के साथ ही रहे ।
किंतु जैसा कि विवाह सबका होता है
माई बाप के सामने आँगन में खाट डालकर
कोई औलाद नहीं पङा रहता ।
इन सब लोगों को भी परिवार
की मर्यादा तो रखनी ही होगी ।
और समाज
की भी मर्यादा रखनी ही होगी ।
प्रेम अगर कोई शै है
तो किसी को भी किसी से हो सकता है

एक दोस्त पर बहिन भाई धर्म भाई
बहिन बेटे बेटी तक पर लोग जान
लुटा देते हैं ।
विकृतांगी भी प्रेम कर सकते है किंतु जैसे
कि विवाह का मूल कांसेप्ट परिवार
की नयी यूनिट का गठन है ।
ऐसे लोगों के जोङे बनाने
की प्रक्रिया में क्या मूल बात
होगी?????
परिवार बढ़ाना नही संभव है । और ऐसे
जोङे
का बच्चो बेटियों स्त्रियों की तरह
संयमित मर्यादित घर की बहू ससुराल
जाती हुयी विदाई कराके अपने
पति ""के घर ससुर सास जेठ देवर ननद के
रसोई और सेवा में पकाती खिलाती घर
सँभालती रहना संभव है????
अगर है पति के जो कि एक जोङा ऐसे
लोगो का अभिनय करता है एक पति एक
पत्नी बन जाता है ।
तब पति के कपङे धोने से बिस्तर सजाने
भर से तो परिवार नहीं बनेगा ।
पति के पिता माता की सेवा कौन
करेगा???
पति की बहिन
को बुलाना विदा करना कौन करेगा ।
पति के भाई
भाभी की हारी बीमारी ब्याह
बारात भात की रसोई कौन तपेगा???
पानी रोटी गोबर
सानी कूङा खेती कूचा बरतन
लीपना पोतना गहाना फटकना पीसना
करेगा ।
सब शहर शहर है क्या???
गाँव के किसी किसान का बेटा मजदूर
का बेटा अगर विकृत यौनांग
हो पैदा तो क्या करें???
सङक पर फेंक दें?? या सौंप दें किसी गै
किन्नर कम्युनिटी को??
जैसा कि कई केस सुनने में आये
कि बच्चा अगर नॉर्मल
नहीं तो किसी जमाने में लोग अनाथालय
में छोङ आते थे या किन्नर समूह बधाई के
समय ही लङ झगङ कर छीन ले जाते थे!!!
अब ऐसा कुछ तो सुनने में नहीं आता है
किंतु यदा कदा ही सही ।
कुछ अपराध इस तरह के सुनने को मिल
जाते हैं कि साथ साथ नाचने गाने बजाने
वाले किसी स्वस्थ युवक को जबरन
या धोखे से नपुंसक बनाकर किन्नर
बनाया गया ।
अगर ये एक भी अफवाह सच है तो ये
भयानक जुर्म है । जो केवल उन
लोगो द्वारा किया जाता है
जिनकी किसी विकृति के लिये आम
परिवार दोषी नहीं है।
हजारो स्त्रियाँ तथाकथित
अति आधुनिकता की दौङ में । विवाह
ना कर पाने
की मजबूरी या अपनी आजादी ना खत्म
हो जाये इस खयाल से अगर सही सलामत
होते हुये भी स्त्री स्त्री दैहिक संबंध
की तरफ मुङती है तो ये एक विकृति है
विचलन है ।
दो लङकियाँ पक्की सहेली है ।
और पढ़ने या जॉब करने को लेकर साथ
रहती है उनकी मित्रता को कल से इस
कदर लेस्बियन समझा जाने लगेगा ।
और तब माता पिता पर एक और तलवार
लटकती रहेगी कि लङकी लङकी कहीं आप
में इस तरह की कोई दैहिक विकृति से न
ग्रस्त होकर भटकने लगे ।
बिलकुल इसी तरह लङके
को लङकों की ही संगत से
बचाना नया संकट होगा ।
सारे के सारे समलैंगिक लोग यौनवुकृतांग
हीनांग या कमजोर नहीं होते । अनेक
लोग स्वस्थ होते हुये । केवल
संगति कुसंगति के कारण अपनी आदते
ऐसी कर लेते हैं ।
उत्सुकता भ्रांति और अनगढ़ कल्पनायें
विचार ये गलतियाँ करवाते चले जाते है

कल ही एक स्त्री के पति ने
उसको पहली ही रात भीषण रेप के साथ
कुकर्म का शिकार भी बनाया और जब
पीङिता ने हनीमून छोङकर पुलिस
की शरण ली तो फरार हो गया!!!!!!!!
ये प्रेम नहीं है
ये विवाह भी नहीं है
ये परिवार का गठन का आदर्श रूप
भी नहीं है ।
ये पश्चिमी ब्रह्मचर्यवाद के खिलाफ
एक अभियान के रूप में
फैलायी गयी सामाजिक विकृति है।
जहाँ स्त्री उपलब्ध नहीं वहाँ नॉर्मल
लोग तक
बङी संख्या में नौकर जूनियर और
बच्चों पशुओं
तक का विपरीत कुकर्म करते हुये
अपराधी पाये जाते रहे है।
वे लोग जिनके बच्चे हैं पत्नी है और उनमें
कोई पौरूषीय कमी नहीं नहीं है ।
वे तक इस विकृति के प्रभाव में
दोस्तो और मातहतों का दैहिक पुरुष
पुरुष बलात्कार करते पकङे गये ।
अनेक स्त्रियों पर नॉर्मल होते हुये उनके
पतियों तक ने दैहिक कुकर्म किये और ऐसे
मामले परिवार की सीमा में कैद ही रह
जाते हैं।
व्यापक मूवमेंट के नाम पर जिस
समलैंगिकता की दलील दी जा रही है
वह ।
कितनी खतरनाक है सोचने के लिये केवल
चिकित्सक की ही सलाह आँखे खोल
सकती है ।
भोजन ग्रहण करने और अपशिष्ट पदार्थ
विषैले तत्व आदि जिस्म से बाहर फेंकने
वाले अंग किसी भी व्यक्ति के स्वयं के
लिये सुख दायी कतई नहीं हो सकते ।
ऐसे संबंध एक के लिये यातना और दूसरे
को बरबरता के ही रूप में परिभाषित
किये जा सकते हैं ।
इनका अप्राकृतिक कहना सही है ।
क्योंकि प्रकृति ने अगर नेत्रहीन बधिर
मूक किया है किसी को तो वह
चिकित्सा करवाकर देखने सुनने लायक
बनाया जाये यही उपाय है ।
किंतु समाज भर को वह प्रतिशोध में
अंधा बनाये ये कतई प्राकृतिक नहीं है ।
एक विकृतांग व्यक्ति
किसी ऐसे पुरुष के लिये सिवा कुसंगत के
कुछ भी नहीं जो नॉर्मल है बच्चे
पत्नी परिवार पाल सकने में सक्षम है ।
लोग अपने यौनांगो से नहीं कमाते
हाथ पैर दिमाग से आँख आवाज कान से
कमाते है ।
विकृतांग लोग भी सब कुछ बन सकते है जैसे
नेत्रहीन लोगो ने ब्रेल सीखकर महारत
के काम कर डाले!!!!!
महान संगीत कार हुये और
बेथोवेन जैसे बधिर व्यक्ति उदाहरण है ।
कला संगीत साहित्य लेखन अभिनय
व्यापार शिक्षा विज्ञान
राजनीति दर्शन की तमाम
महाविभूतियाँ है जो आजीवन
अविवाहित रहीं और समाज को राह
दिखाती रहीं ।
यह कहाँ की सोच है कि विकृतांग
व्यक्ति महान व्यापारी कलाकार
डॉक्टर इंजीनियर आदि नहीं बन
सकता???
बेशक सबको प्रायवेसी का हक है ।
सुना आपने प्रायवेसी का ।
समाज में हर तरह के लोग हैं । जीओ और
जीने दो ।
चाहे जोङा समलैंगिक हो या नॉर्मल
पारंपरिक विपरीत लिंगी
समाज की मर्यादा संस्कृति और समाज के
कानून कायम रहने ही चाहिये ।
नग्नता अश्लीलता औऱ
विद्रूपता को बच्चों स्त्रियों और आम
समाज से पृथक करना ही पङेगा ।
केवल वयस्कों के लिये ही जो बातें हैं वे
केवल बंद कमरों बंद संस्थानों में
ही होनी चाहिये । जहाँ बच्चे ना हो ।
जहाँ रिश्तों की सीमा का उल्लंघन
ना होना हो
पति पत्नी के बीच की बाते
पिता पुत्री माता पुत्र या भाई बहिन
के सामने नहीं आनी चाहिये ।
नियम तो बनाने ही होंगे
जब पुराने नियम टूटेगे
तो नये बनाने होगे
जो अपराधी है वे उत्पीङक है ।
जो निर्दोष हैं उनको भी सामाजिक
मर्यादा की सीमा पर ही कायम
रहना होगा ।
नाबालिग बच्चे परिवार से माँ बाप से
अलग नहीं होने चाहिये
किसी को जबरन किन्नर
नहीं बनाया जाना चाहिये भले ही वह
विकृतांग है परंतु वह डॉक्टर
क्यों नहीं बन सकता?
सवाल और भी हैं
सेहत और सामाजिक लाज शरम को कायम
रखना
व्यवस्था की बात है
तंबाकू जहर है
तो और भी सेहत को हानिकारक चीजें हैं

संसद नियम बनाये किंतु बच्चे और पुरुष
लङकों की दैहिक शोषण की अपराधिक
वेश्यावृत्तिक प्रवृत्ति पर भी सख्ती से
रोकथाम करे
सहमति से ड्रग्स लेना जायज
नहीं हो जाता
ना ही रिश्वत लेना
लोगों की रोजी रोजी तो चोरी भी है
और सुपारी लेकर हत्याये
करना भी जेबकतरी है आतंकवाद भी है
और बच्चे
चुराना बेचना भी©®सुधा राजे
Dec 12
से नहीं चलता ।।।।लोग
पसंद तो रेप और यौन शोषण भी करते है।
लोग पसंद तो शिशु हत्या भी करते है।।
लोग पसंद तो बालिका वेश्या भी करते
है।।।सैकङो राक्षस अपनी बेटी को रेप
करना भी पसंद करते हैं।।।।समाज पसंद
से नहीं कर्त्तव्य बलिदान त्याग कष्ट
सहकर मर्यादा निभाने वालों के दम पर
चलता है।।जो समाज को कुछ दे नहीं सकते
वे समाज पर बोझ है ।।।
उनको उनकी माननी पङेगी जो समाज
को कंधों पर उठाते है ।।समाज
यौनस्वछंदता वादियों की पसंद पर
नहीं छोङा जा सकता ।।।ये मानसिक
रोग है शरीर तो और भी विकलांगतायें
रखता है

कोई बीबी छोङकर भाभी पसंद करे और
पति छोङकर जेठ देवर तो पाप है ।।।।
वैसे ही ।।।नॉर्मल होकर भी ।।।
विकृतियाँ रखना गुनाह है।।।भले
ही लोग लाखों में अपराधी है परंतु
अपराध ।।मान्य नहीं हो सकता ।।।

सारे भिखारी चोर किन्नर चूहे और
शरणागत किसकी दम पर?????? कौन
उठाता है इनके खरचे???? गृहस्थ!!!!!
परिवार!!!!! तो फिर परिवार
को हानि पहुँचाने वाली सब चीजें नियम
से सीमित की जानी ही चाहिये ।।।।
जो लोग परजीवी है वे
कभी चयनकर्त्ता नहीं हो सकते ।।।।आगे
बढ़ो मजदूरी करो बहुत नाच लिया और
भीख माँग ली
Dec 12

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