Friday 20 December 2013

स्त्री और समाज

कन्या दान
और
पति
ये दो शब्द

अब पुनर्विचारित
और पुनर्सृजित होने चाहिये


जैसा कि प्राचीन
गृह्यसूत्रों और संहिताओं में लिखा गया था

धन स्वर्ण और पशु दास दासी सहित
जो कन्या रजस्वला ना हो उसको ""दान ""करता है वह पिता एक महायज्ञ का
पुण्य पाता है ।

अब

कन्या नाबालिग का विवाह ग़ैर कानूनी है

और

कन्या ""दान ""की वस्तु नहीं

तब यह शब्द और परंपरा हटायी जानी चाहिये

जिसमें लङकी के पिता माता दिन भर उपवास रखकर ।
लङकी को धन सहित गोद में बिठाकर
लङके को "दान "कर देते हैं


यहीं स्त्री शोषण के बीज दबे हैं

स्वयंवर
की स्वस्थ परंपरा लुप्त हो गयी
और प्रेम विवाह अमान्य नीति

कन्या वर

वचन जो देते है
उनका भी पुनर्वचन और संशोधन होना जरूरी है

लग्नपत्रिका है क्या?

निक़ाहनामा ही तो है!!!

जिसमें
वर कन्या की जन्मतिथि
परिवार का नाम समय विवाह के सारे मुहूर्त रहते है

इसका
संशोधन होना चाहिये

अब
लग्नपत्रिका में वर कन्या की फोटो अटेस्टेट होकर चस्पां होनी चाहिये

शारीरिक स्वस्थ होने की घोषणा
और मतदाता या आधार परिचय पत्र संख्या
परिवार के दोनो पक्ष के पाँच पाँच गवाहो के हस्ताक्षर
शैक्षणिक योग्यता की सत्य शपथ पर घोषणा
और विवाह को निभाने के सात सात या जितने भी जरूरी है उतने वचन और शर्तें
भी लिखी होनी चाहिये ।
जो कोई आठवीं पाँचवी पास कथावाचक की बजाय संस्कृत के स्नातक पंडित की
हस्तलिपि या प्रोफेसर द्वारा लिखी जानी चाहिये
या फिर
प्रिटेड कॉलम फॉर्म हो और वर कन्या खुद ही भरें
सारी जानकारी
और
या दोनों के पिता माता

क्योंकि
कन्यादान के सिवा

भी
संस्कृति और धर्म दोनों की रक्षा
हो
सकती है
स्वयवर
वैदिक परंपरा है
जिसमें स्त्री को खुद ही वर चुनने का अधिकार ""समन "नामक उत्सव और प्रेम
या प्रतियोगिता द्वारा है ।

पति?
ना तो राष्ट्रपति

और

ना ही
स्त्री का पति

ये मालिक
और दास

का नाता नहीं

कोई कहता है अर्धांगिनी

तब
उपहास सा लगता है

पति
की
दासी संपत्ति तो हो सकती है
कब्जाधारक
स्वामी
किंतु
अर्द्धांगिनी नहीं

जीवनसाथी की
तरह
का कोई

शब्द
भाषाविद्
गढ़ें
ताकि
लोकस्वीकृत
हो
सके

शेष फिर

©®सुधा राजे

पुस्तक
स्त्री और समाज
कितने कितने ग्लेशियर
के अंश

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