लेख::-""स्त्री और समाज।""

।।।।।मेरे पिता मेरे भाई मेरे
काका मेरे चाचा की सीमा से ऊपर
सोचो ।।।।।हर स्त्री के भीतर सेक्स
डिजायर होती है ।।।।हर पुरुष में
भी।।।।।कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं
जिनको देखकर माँ बेटे ।।भाई बहिन ।।
पिता पुत्री ।।।बुआ भतीजे।।।
मामा भांजी ।।।दादा पोती और
नाना दोहिती वाला प्यार
सद्भावना उमङती है ।।।।वह वात्सल्य
एक पुरुष में अनेक रिश्तों के लिये होता है
।।।।किंतु सब स्त्रियों के लिये
नहीं ।।।।याद रहे यहाँ हम बात
किसी एक नाम की नहीं कर रहे ।।।मगर
जैसे हर स्त्री किसी खास पुरुष के स्पर्श
से बहकने लगती है वैसे ही ।।।सब
पुरुष ....किसी स्त्री के साथ ममता स्नेह
पितृत्व भ्रातृत्व महसूस करते है तो ।।।
किसी लङकी को देख छू सुन कर
कामभावना से भर उठते हैं ।।।।।
भारती आमतौर पर बच्चे को माँ बाप
डबल बेड पर बीच में सुलाते है ।।।
स्त्री पुरुष आधी नींद में भी एक दूसरे के
स्पर्श से बहकने लगते है और अगर
इन्ही पलों में बच्चा जाग जाये तो ।।।
पापा हो मम्मी दोनों की सब
उत्तेजना एकदम खत्म ।।।और दोनों सब
भूलकर बच्चा सँभालने में लग जाते
हैं।।।।।ये हर घर हर
दंपत्ति की कहानी है।।।एक कमरे में
जवान बेटियाँ सोयी है दूसरे में माँ बाप
।।।।दोनो अपने भावना में लीन है ।।।
तभी बगल के कमरे से बेटी पुकारती है
।।।औऱ सब भूलकर ।।
पापा मम्मी तत्काल सपने में डर
गयी बच्ची को थपकने लगते हैं ।।।।हम
सबका बचपन ऐसा ही रहा ।।।
आधी रात में उठकर
भैया भाभी का दरवाज़ा पीट डालते थे
हम ।।।डरावना सपना आने पर और
दोनो अपने बीच में सुला लेते ते
कभी भाभी से चिपक कर सो जाते
कभी भैया के कंधे पर चिपक जाते
बङी उम्र तक ।।।।परंतु हर पुरुष सब
औरतों को एक ही बहिन
बेटी माता की भावना से समझे ये
जरूरी नहीं ।।।। याद रहे ये बात
घटना के संदर्भ में नहीं है
आदमी का आभामंडल किये गये कृत्य जब बङे
होते हैं तो लङकी के भीतर उठी शक
की लहर अपने में एक लहर की तरह
समझाईश बनकर रह जाती है ।मसलन कल
तक नारायण साई आसाराम तेजपाल
पादरी जैकब जज गांगुली और
मौलाना कशमीरी पर कोई शक तक
नहीं कर सकता थी ।हर
स्त्री कहीं लगा जरूर
होगा कि कहीं गङबङ तो नहीं मगर
दबा दिया अंतरात्मा की आवाज़ को ।दस
हजार में एक सगा पिता और
नजदीकी नातेदार चाचा मामा फूफै
मौसा देवर जीजा ससुर ननदोई जेठ ऐसे
ही अवसर का दुरुपयोग करते है ।जैसे खुद
उस स्त्री अपना दिल
नहीं करता कि पाँच सौ में एक
प्रेमी दोस्तो को बेच देगा? पति एक
दिन पार्टी में सौंप देगा
एक नयी बहू घर में आती है सौ में एक
ही सही परंतु किसी के देवर किसी के
ससुर किसी के जेठ किसी के ननदोई
की नीयत खराब है कहीं बॉस
तो कहीं कलीग डोरे डाल रहा है!!!!!!!!
स्त्री सब महसूस करती है किंतु अगर वह
पति से कहती है तो भाई भाई खून
खराबा!!!! पिता पुत्र खून खराबा!!!
या नौकरी गयी और हालात के संघर्ष
या फिर तमाम बदनामी और आरोप
कि ""तू शक्की है तेरी सोच गंदी है ""अब
वह सावधान रहकर ही धर में दफतर में
और सफर में रहती है । उसी पर अविश्वास
भी और रिश्ता जारी रखने
की मजबूरी भी । आधी से ज्यादा औरतें
केवल उन लोगों की ही शिकार है
जिनकी सामाजिक इमेज बढ़िया थी उनसे
करीबी मित्रता या नाता था और शक
होकर भी साथ रहना हालात
का तक़ाजा कि """अरे भले ही नीयत
खराब है मगर ऐसे कोई थोङे ही भरे
समाज में अपनी प्रतिष्ठा दांव पर
लगाकर शोषण करेगा!!!!!!!!!और ये
-""सहमति ""शब्द ही बङा क़ातिल है ।
एक दोगुनी आयु का पुरुष बेटी की उमर
की लङकी से संबंध बनाकर कह देता है
सहमति से हुआ ।।।
मान लो लङकी निहायत गिरी हुयी है
तब भी ये बाबा पापा की उमर के
लोगों की कोई
जिम्मेदारी ही नहीं??????
क्या जिम्मा है??? लङकी सहमत तो गिर
पङो??? अगर
नानी दादी की माँ की उमर की औरत
किसी लङके को ऐसे ही सहमत करे तो???
"""""""""""क्या कहेगा समाज?? नैतिक
दैत्य जवाब दैंगे??
©®sudha raje

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