Wednesday 18 December 2013

स्त्री और समाज

Sudha Raje
दो चार बङे मगरमच्छ फँसते
ही बिलबिला गया पुरुष समाज!!!!!!!!
निर्भया एक्ट से?????
लोग बातें करने लगे कानून के दुरुपयोग
होने की!!!!!!!!!
सदियों तक सती प्रथा में
जलायी गयी बालिका विधवायें!!!
सदियों से बच्चियों को तिगुनी उमर के
पतियों के रेप और दासता भोगकर
मरना पङा!!!!!!
सदियों से होती आ रही हैं दहेज
हत्यायें!!!!!!
सदियों से शराबी पति पिता पुत्र भाई
के जुल्म और आतंक की यातना सहकर
विवश घुटती रही स्त्री!!!!!!
आज भी मुंबई की भीङ में यू पी के जुलूस में
सरेआम भीङ के बीच लङकियाँ गुंडे
मवाली नोंचते खसोटते रह जाते है और
मीडिया वीडियो बनाता रह
जाता है!!!!
आज भी जर्नलिज्म के नाम पर औरत
को ही चाहे वह राजी ना हो उसे
पता ना हो फोटोशूट करके कोई खबर
का हिस्सा बनाकर मैगजीन अखबार पर
सजा दिया जाता है ।
कोई बङी बात नहीं रही अभी डी एन ए
टेस्ट के पहले तक तो अगर शादी के दस
दिन पहले रजस्वला होकर पहले
ही महीने
गर्भवती हो गयी स्त्री तो शादी के
नवें माह पर पैदा बच्चे को शक की नजर
से ही देखकर पति ठुकरा देता रहा।
कई घरों में परंपरा रही कि विवाह के
बाद जब तक स्त्री रजस्वला होकर
स्नान न कर ले तब तक सास ननद के साथ
ही सोती रही ।
अपमान पर अपमान और बदनामी औरत
की ही हर बार ।
पति ने त्याग दिया??
जरूर तमीज की रसोई
नहीं पकाती होगी या बदचलन
रही होगी ।
पिता भाई नहीं पूछते जरूर मायके वाले
इसकी हरकतों से तंग आ गये होंगे।
लङके ने छेङा?? जरूर
ऐसी वैसी लङकी होगी।
पति ने पीटा? जुबान चलाती होगी।
औऱत पर ज़ुल्म की ग़वाही कोई
दूसरा कब हुआ????
ससुराल में दस के बीच अकेली
मायके में नादान बचपन
दफतर बाजार मंदिर में
कहीं भी सिवा अँधेरे की गवाही के कौन
गवाह रहा??
जब तक मेडिकल जाँच का तकनीकी साधन
नहीं था तब तक औरत किसी से
कहती तो लोग कुलटा कहकर जलाते रहे
क्या प्रमाण है कि कोशिश की?
क्या प्रमाण है ?
कई बार तो स्त्री पहचान तक
नहीं सकती थी तमपिशाच कौन कौन थे।
आज बङे मगरमच्छ पकङे गये गिने चुने ।
तो कानून पर सवाल मंत्री संतरी सब
उठाने लगे?
सदियों से तलाकशुदा विधवा और कुरूप
स्त्री को पशु बराबर भी न समझने
वाला समाज बस इतने से बौखला गया।
गाँव कसबों तक तो आने दो कानून
अभी तो महानगर में ही अटका है
परायी स्त्री को दीदी कहना सीख लो
©सुधा राज

No comments:

Post a Comment