बच्चे समाज और बचपन

बच्चे 13-लेखमाला
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सग़ीर और रानू दोस्त हैं दोनों की ज़ाति मज़हब और आर्थिक स्तर एकदम अलग
है । किंतु समानता है दोनों की आपबीती में । जब सग़ीर और रानू बच्चे से
युवक हुये तो सबसे पहला अपराध किया बीङी शराब सिगरेट गुटखा पान और सुलफा
पीने का ।
इसके बाद दूसरा अपराध किया पिता की पिटाई करके घर छोङ देने का अपराध।
अज़ीब हाल था पिता का । कभी दहाङे मार कर रो रो कर मुहल्ले भर को फ़रियाद
सुनाते कि इस बेटे के लिये उन्होंने क्या क्या नहीं किया । पीरान कलियर
गये वैष्णोदेवी की यात्रा की तब तो तीन बेटियों पर एक बेटा हुआ और दूध
बादाम से लेकर हर ख्वाहिश पूरी करते रहे । पढ़ने को दो दो ट्यूशन लगाये।
कभी मारा पीटा नहीं । तो कभी आगबबूला होकर कहते फिरेगा कमबख्त मारा मारा
जायेगा कहाँ आ जायेगा धक्के खाकर । मगर आज दस साल हो गये दोनों का कोई
पता नहीं ।
हजारों बच्चे घर से भाग जाते हैं । कोई फेल होने पर पिटाई के डर से कोई
हीरो बनने । कोई जमकर कमाई करने ।तो कोई घर से लङभिङ कर ।
लेकिन सबकी जङ में एक ही वज़ह थी घर में पुरुष अभिभावक की भीषण हिंसक छवि ।
हमारे किरायेदार का बेटा इसलिये मुंबई भागकर ट्रक क्लीनर बन गया क्योंकि
पिताजी रोज पढ़ाते समय भीषण मार लगाते और नंबर कम आने पर तो मार मार कर
बिछा देते । माँ का देहांत हो गया था दीदी बस कभी कभार आ जाती ससुराल से
तीनों भाई सब घरेलू काम करते और पिटाई खाते ।
एक चिरईमामा मिले थे कहीं उन्होंने बताया कि उनके पिता उनकी माँ को शराब
पीकर बहुत पीटते थे और माँ अकसर चोटों पर बिना मरहम पट्टी के रोती कराहती
काम काज में लगी रहतीं । पिताजी से बदला लेने की भावना बलवती होती गयी जब
तक बच्चे थे थरथराते रहे एक दिन उठाकर पटक ही तो दिया बाप को और खूब माँ
बहिन की गालियाँ दी फिर घर छोङ दिया और यायावर जीवन जीने लगे । माँ की
वजह से कभी कभी घर चले जाते थे फिर एक दिन माँ चलबसी तब से दुबारा नहीं
गये । बाप का दाहसंस्कार बरसों बाद सबसे छोटे भाई ने किया था और वही
बताता रहता था कि पिताजी ने फिर कभी माँ को पीटने की हिम्मत नहीं की हाँ
व्यंग्य जरूर करते रहे कि अब तू खुश होगी ना मेरा दुश्मन तेरा बाघबेटा जो
जवान हो गया।
रानू का किस्सा भी लगभग ऐसा ही है पिता शराब पीकर माँ को पीटते और आतंक
मचाये रखते । रानू की जबरदस्ती शादी अपने दोस्त की बेटी से तय कर दी और
इनकार करने पर जायदाद से बेदखल करने की धमकी दे दी । रानू शादी के सारे
कार्ड बाँटने के बहाने निकला तो कभी नहीं लौटा। सग़ीर को अब्बू ने इतना
ख़ौफज़दा कर दिया था कि वह घर में अब्बू की उपस्थिति में माँ तक से बात
नहीं करता । जबरदस्ती बेकरी पर काम पर लगा दिया। बस वहीं से भाग गया।
आपकी जानकारी में भी ऐसे नमूने जरूर होंगे । पुत्र की तमन्ना तो हर पिता
को होती है परंतु वह शायद ही कभी इस बात पर ग़ौर करता हो कि बेटा सबकुछ
हूबहू आपका कहा हुआ नहीं सीखता वह वॉच करता है निगरानी रखता है आपके
समग्र मन काय वचन कर्म व्यवहार सिद्धांत और यथार्थ पर।
माँ उसकी माँ है । माँ का हर आँसू उसके दिल पर तेज़ाब की तरह गिरता है।
वह पिता का आदर तभी तक करता है जब तक पिता उसकी माँ के सुख और प्रसन्नता
की वज़ह है । हमने अपनी सास को नहीं देखा किंतु महसूस किया कि हमारे ससुर
और उनके पुत्र के बीच कुछ अज़ीब सी दीवार है । हालांकि ससुर जी की सू सू
पॉटी तक सब साफ की हम दोनों ने उनके मरने तक परंतु अनकहा जब सामने आया जब
पिता के मरने पर रोते बिलखते हुये एक वाक्य निकला "पिताजी काश आप अम्माँ
को इंसान समझते तो मैं आपके होते हुये अनाथ नहीं महसूस करता "
ऐसे लाखों पुत्र होंगे जो माँ और पिता दोनों को प्रेम करते हैं किंतु इस
प्यार में कई ज़ख़्म जाने अनजाने घरेलू हिंसा के तेज़ाब से मिलते रहते
हैं । अमूमन हर तीसरे चौथे भारतीय परिवार में स्त्री पर पति का उत्पीङन
बात बात पर मारपीट शराब और धूम्रपान जारी है।
और परिणाम स्वरूप जहाँ पुत्र बलवान होने लगता है और आत्मनिर्भर होता जाता
वह माँ के प्रति पिता की क्रूरता को भुला नहीं पाने के कारण माँ का रक्षक
बनकर उठ खङा होता । अनेक परिवारों में ये कार्य बेटियाँ करतीं हैं । जिस
को लोग जमाना और नयी पुरानी पीढ़ी का अंतराल कहकर कोसते हैं दरअसल वह खुद
घर का ही बोया विषवृक्ष होता है । ऐसा रेयरेस्ट ऑफ रेयर केसेस में होता
है जब कि पिता शराब सिगरेट नशा नहीं करता माँ बहिन बेटी की गाली नहीं
देता और तब भी बेटा शराब पीना गाली देना नशा करना सीख गया हो ।
ठीक इसी तरह माँ पर ज़ुल्म ढाने वाले पिता से हृदय से प्रेम करने वाला
पितृभक्त पुत्र होना भी लगभग असंभव है।
तो अगली बार जब भी आप कोई ओवररियेक्शन करें याद रखें कि बच्चे केवल देख
सुन ही नहीं रहे महसूस कर रहे हैं और आगे की योजना भी बना रहे हैं ।
©®सुधा राजे
क्रमशः जारी "'''''''

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