Thursday 12 December 2013

बच्चे समाज और बचपन।

आज सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377IPCके
तहत समलैंगिंग संबंध वयस्कों में अवैध
घोषित किये ।
इनकी जङे बाल यौन शोषण
की विकृति से भरे समाज में छिपी हैं।
यूपी के जनसंकुल
कस्बों नगरों हैदराबादी इलाकों और
कश्मीर की घनी बस्तियों मुंबई
दिल्ली की झोपङबस्तियों से लेकर देश के
तमाम घने बसे जनसंकुल गरीब और
जरा कम गरीब तबकों में एक विद्रूप
गाली है ""बच्चा बाज़"
ये बच्चा बाज़ी कितने गरीब बच्चों पर
यातना दायक जीवन थोपती है एक
रिसर्च का बिषय है ।
होटलों में झाङू पोंछा करते बच्चे ।
बङे मनोरंजन संस्थानों में नाचते गाते बैंड
बजाते बच्चे।
चाय वाला बबलू
ट्रक पोंछने वाला मोनू।
साईकिल पंक्चर ठीक करने
वाला अक्की।
कचरा बीनने वाला
कबाङ का फेरी वाला ही नहीं।
ये भयानक हिंसा फैली है बॉयज हॉस्टल
तक ।
खेल सुरक्षाबल इंजीनियरिंग
मेडिकल किशोर जेल पागलखाने
अनाथालय तक के कतिपय
संस्थानों के भीतर तक जहाँ सीनियर के
रौब दाब धौंस और कैरियर चौपट करने
की धमकी के दवाब में ऊपर से सब कुछ
ठीक दिखते संस्थानों के तह में दुबके
मगरमच्छों के जबङे में विवश कम उम्र
लङके और जूनियर ।
ये भयंकर हिंसा ही है ।
इससे शोषित का कोई भला नहीं न
ही कोई दैहिक संबंधसुख है।
भय पैसा देकर मजबूर
करना बालवेश्या वृत्ति और
मानवाधिकार का शोषण मौलिक
मानवीय मूल्यों की हत्या है।
""बच्चाबाज़ी"
में कई अफसर संत
पादरी मौलवी नेता और बङे ओहदेदार
तक इनवॉल्व रहते पकङे गये ।
लेकिन अब तक इसपर रोकथाम का कोई
समुचित उपाय कारगर नहीं हुआ ।
ऐसे अपराधी स्त्री पर रेप
की धारा की ही तरह दंडित होने
चाहिये ।आई पी सी में ये दंडनीय
अपराध हैं भी।
क्योंकि ये भी कम खतरनाक अपराध
नहीं हजारों बच्चे प्रतिवर्ष इस
यातना प्रद जीवन में धकेले जाते है और
सैकङों ऐसे अप्राकृतिक बलात्कार के
कारणमर जाते या जबरन मार डाले जाते
है और बच्चे यौन रोगी और मानसिक
विकृत होकर जीते है और जीवन भर एक
अप्राकृतिक व्यक्ति की तरह रहने पर
विवश रहते हैं
अब तक कानून की जानकारी कम है
लोगों को और फिर बच्चाबाजी पर
कङी सजायें ना समाज पंचायत औऱ
अदालतों ने दी है कि लोगों तक साफ
साफ संदेश जाता। न
ही जागरूकता बच्चों की इस
यातना की सच्चाई पर गौर है समाज
परिवार का।
अपराधी जहाँ लङकी के मामले में जान
मान और कानून का रिस्क महसूस
करता है वहाँ लङकों को शिकार
बनाता है अगर
पकङा गया तो जरा सी मारपीट
पैसा और तू तू मैं मैं से ही अकसर पीछा छूट
जाता है।
जरूरत है जनजागरूकता की बच्चे बचेगे
तो भविष्य का भारत सुंदर होगा।
©®सुधा राजे
मिसेज एक्स वाई जेड का बेटा कोचिंग
छोङकर बीच में आ गया ।
बीमार रहने लगा ।
उसे पाईल्स हैं कह कर दवाई लेने
लगा लेकिन हालत बिगङ ही गयी ।
जब लगातार शौच के वक्त भयंकर खून आने
लगा ।
पता चला उसका अप्राकृतिक रेप हुआ
था । जान तो बच गयी मगर उस बच्चे
की मानसिक और शारीरिक हालत
इतनी गयी गुजरी हो गयी कि वह अब
घर से दूर कहीं रहकर न पढ़ना चाहता है
न कुछ लक्ष्य ।
ये जोंकें कहाँ दस में से एक के दो के रूप में
बच्चों के इर्द गिर्द मँडरा रही हैं
पहचानना मुश्किल है।
बचपन में शोषित बच्चे खुद बङे होकर
मगरमच्छ बन जायें तो क्या पता ।
चेतना फैलाने के सिवा कोई
दूसरा रास्ता है तो सख्त से सख्त
सज़ा और कठोर कानून शीघ्र न्याय ।
लोग लङके का मामला होने पर अदालत
तक अक्सर नहीं जाते ।
परिवार संस्था केवल परिवार ही एक
बच्चे को नमूना समाज नमूना देश
नमूना शासन न्याय और अनुशासन देते हुये
भी प्यार ममता वात्सल्य और
सुरक्षा सहयोग क्षतिपूर्ति दे सकते हैं ।
वजह है माँ । पेट फाङकर
बच्चा हो प्राकृत प्रसव पीङा से
नौ माह कोख में रखने का जो अनुभव है
पल पल रात दिन सारे मौसम । और सब
हालातों में । वह कोई
भी व्यक्ति संस्था या गवर्मेंटल निकाय
कभी नहीं बन सकता ना ही कोई एन
जी ओ या गोद लिये हुये संरक्षक उस हद
को छू भी सकते हैं ।
दूसरी कतार में
पिता चाचा बाबा नाना मामा बङे
भाई
दादी काकी नानी मामी मौसी बुआ
बङी दीदी भाभी ।
जैसे रिश्ते वैकल्पिक रूप में मौज़ूद होते हैं
माँ की मदद के लिये ।
माँ के दस हाथ बनकर परिवार में पाँच
रिश्ते मिलकर बच्चा सँभालते है ।
जो कोई बेबी सिटर या आया नहीं दे
सकती ।
एक व्यवहारिक अध्ययन किया जाये
तो यही सच सामने आता है कि विवाह
भले ही स्त्री पुरुष के बीच होता है ।
परंतु वास्तव में लगभग सौ से पचास नये
रिश्ते उस विवाह से जुङ जाते हैं । जब
तक सब ठीक है सब ठीक रहता है । किंतु
परंपरा जो रही है उसके मुताबिक संकट
काल में इन सौ परिवारों में से कोई
तो आगे बढ़कर साथ देता है ही हर
खुशी हर गम में । हर भटकन पर
टोकता और हर हार पर तसल्ली देता ।
कभी दीदी तो कभी जेठानी कभी भाई
तो कभी साला कभी काका तो कभी माम
तो कभी परिवार के पुराने दोस्त ।
ये सब रिश्ते दवाब भी हैं नैतिक रहने
का और लगाम भी है उन्नति के साथ
समाज को जोङे रखने को।
बच्चा इस छोटे से मकान से पूरे कुटुंब
का सदस्य होकर हर तरह
की प्रेरणा और शिक्षा पाता है ।
ये सब कोई अनाथालय और आश्रम नहीं दे
सकता है।
सपने में डरने पर गले लगाना और
गलती पर पीट देना रोने पर सिरहाने
बैठकर थपकना ही नहीं रात दिन बच्चे
पर ही सोचना क्या खाया?
क्या पहना क्या पिया? कैसा महसूस
किया।
बच्चा अकेला कहीं नहीं महसूस करता तब
भी जब वह अकेला खेल रहा होता है ।
कोई वॉचिंग कर रहा होता है।
आखिर जन्म देना एक माँ के
अलावा फिलहाल संभव तकनीक नहीं है ।
लैब के परखनली मिक्सिंग के बाद
भी आखिर कार माँ का पेट चाहिये
परवरिश को नौ महीने और माँ के दूध से
बङा कोई पोषण वैक्सीन या पेय नहीं।
माँ के स्पर्श से बङा कोई आसरा नहीं।
ये कोरी भावुक बातें नहीं हैं । साईंस
कहता है। शोध कहती है।
तब सवाल यही है कि विवाह केवल
दो व्यक्तियों के बीच दैहिक संबंध और
यौनाचार का लायसेंस मात्र नहीं है ।
एक परिवार गठन की प्रक्रिया के
सैकङों भागों में से एक महत्तवपूर्ण भाग
है।
ये भारत है । यहाँ ऐसे लाखों परिवार हैं
जहाँ एक
युवा स्त्री विधवा हो गयी और संतान
के पालन पोषण पर पूरी कामनायें
कुरबान करके परिवार
चलाती रही अवसर और दवाब के होने
पर भी दूसरा विवाह नहीं किया ।
ताकि बच्चे के बाबा दादी चाचा ताऊ
ताई बुआ ना छूट जायें ।
ये हिंदुस्तान है जहाँ लाखों परिवार
विवाह के तुरंत बाद अलग अलग शहरों में
रहने लगते हैं पति फौज में है अरब देश में
मजदूर है मेट्रोपॉलिटन सिटी में काम
करने चला जाता है । साल में एक महीने
को रहने आता है फिर भी विवाह कायम
है कायम है जोङे की अवधारणा और
दंपत्ति की संतान परिवार में पलती है।
यह वह देश है जहाँ सेक्स प्रधान नहीं है
विवाह की अवधारणा में
बल्कि परिवार गठन की एक
प्रक्रिया का अंग है। जहाँ लाखों जोङे
महीनों तक एक दूसरे की सूरत
भी नहीं देखते फिर भी प्रेम करते है
वफादारी कायम रहती है और तमाम
परेशानियाँ झेलकर भी परिवार कायम
रखते हैं।
यानि???? विवाह के पूरे औसत पच्चीस से
पचासी तक के औसत सफर में दैहिक संबंध
अमूमन लाखों जोङों के बीच
दसवीं बारहवी नंबर की वजह बन जाते
है समय के साथ । रस्में कस्में और
परंपरा धर्म और भरोसा फिर
भी निभाया जाता है।
विकलांगता बीमारी जेल जाना और
कमाने जाना ये सब हो जाये
तो भी विवाह परिवार कायम रहता है

यानि?
भारतीय विवाह केवल और केवल दैहिक
संबंध पर एकमात्र नहीं टिके रहते हैं।
बच्चे बङे और विवाह
की गरिमा भी अपनी पूरी ठसक दमक
और धमक के साथ विवाह कायम रखने
परिवार बनाये रखने की वजह होते हैं।
परिवार का कोई विकल्प ही नहीं ।
आप हार कर आओ या जीत कर
जरा सी खटपट के बाद परिवार आपके
साथ धमनियों शिराओं की तरह मौजूद ।
एक बच्चा इसी अटूट महासंजाल में
ही कूदता खेलता जीवन की पाठशाला से
फिर नया परिवार गठित करता है।
किंतु,,,,,,,,,
सब बच्चे नॉर्मल बच्चे नहीं होते ।
कुछ मंदबुद्धि
कुछ जन्मांध
कुछ मूक बधिर
कुछ विकलांग पंगु
कुछ मानसिक विकृत
कुछ रोगी
कुछ यौन विकलांग और नपुंसक
या उभयलिंगी या यौन असमर्थ ।
किंतु कोई बात नहीं ।
परिवार है न!!!!!!!!!!
रो धो कर पलेगें परंतु फिर सबको आदत
हो जायेगी और परिवार की छाया में ये
कटे वृक्ष भी कोंपल कोंपल फल फूल ही लेंगे

इलाज प्यार देखभाल और साथ सब
मिलेगा परिवार है न!!!!!!!!!!
एक बच्चा जब तक बालिगता को प्राप्त
नहीं कर लेता वह नहीं जानता कि उसमें
स्त्रीत्व है या नहीं । उसमें पुरुषत्व है
या नहीं । उसकी रूचि विपरीत लिंग के
प्रति है या नहीं ।
रहा प्रेम । तो माँ पिता भाई बहिन
बाबा नाना दीदी ताई काकी बुआ
मौसी वाला प्रेम तब तक जब तक वह
परिवार के साथ है बना रहता है ।
कहीं मुखर कहीं मौन मगर रहता जरूर
है।
अगर कोई दूसरा यौन'विकलांग
या समलैंगिक व्सक्ति उस बच्चे के बालिग
होने तक उसके संपर्क में कभी नहीं आता है
। और ना ही कभी उसको ऐसा भी कुछ
होता है कि जानकारी देता है ।
वह एक सामान्य पारिवारिक जीवन
जी रहा होता है ।
समय के साथ उसे अहसास हो जाता है
कि वह पौरुषविहीन है
या स्त्रीत्वविहीन । तब परिवार
साथ होता है । वह विवाह
नहीं करता है तब भांजे भतीजे और
बाकी बहिन भाई रहते है ।
लाखों लोग ऐसे है जिन्होंने ऐसे
कारणों से विवाह नहीं किया और
परिवार के साथ बुढ़ापे तक आराम से एक
मुख्यधारा का जीवन जिया।
उनके अलावा ऐसे विकृतांग बच्चे हैं
जिनकी पहचान बचपन में
ही हो जाती है कि वे स्त्री होकर
स्त्री नहीं । या पुरुष होकर पुरुष
नहीं । या दोनों ही हैं ।
तब भी परिवार है न!!!!!!!!!!!
अगर कोई समलैंगिक व्यक्ति उनके संपर्क
में ना आये तो तमाम विकलांग
पोलियोग्रस्त और नेत्रहीन मूक बधिर
आदि बच्चों की तरह ये विकृत यौनांग
बच्चे भी परिवार के साथ
मुख्यधारा का सामान्य जीवन जी सकते
हैं। और टीचर डॉक्टर वैज्ञानिक
किसान मजदूर लेखक पत्रकार दुकानदार
वकील दरजी कुछ भी काम करते हुये
परिवार के साथ आराम से बुढ़ापे तक रह
सकते हैं ।
तो समस्या क्या है????????
अकसर तमाम कुतर्कों के बाद समलैंगिक
जोङे दीर्घकाल तक कायम नहीं रहते ।
किंतु तमाम आधुनिकताओं के बाद
भी भारतीय परिवार अनंत काल तक
कायम रहते हैं । बहुत कम मामलों में
तलाक होता है ।
तलाक के बाद भी जैविक
पिता माता की संपत्ति पर बच्चे
का हक रहता है । और
बाबा नाना दोनों तरफ का परिवार
जोङा अलग होने के बाद भी बच्चे के कुटुंब
के रूप में मौजूद रहता है।
जबकि समलैंगिक जोङे के साथ साथ रहने
का इकलौता और एकमात्र कारण
होता है यौनाचार ।
ये यौनाचार ही सबसे बङा संबंध और
इसके लिये जोङी बदलती रहती है
एक समलैंगिक के कितनों से दैहिक संबंध
जोङा बनाने से पहले बने और जोङा टूटने
के बाद कहना मुश्किल है ।
हो सकता है अपवाद स्वरूप कोई
जोङा मिल जाये जिसके संबंध पारंपरिक
भारतीय विवाह की तरह आजीवन
स्थायी और एकनिष्ठ रह सके हों ।
किंतु अकसर समलैंगिक जोङा बनाने के
बाद सबसे पहला काम होता है
जन्मदाता परिवार से सदा को संबंध
तोङकर अलग और गुप्त
दुनियाँ बसा लेना।
ये जोङा समाज के बीच एक परिवार
कुटुंब विहीन यौनाचारी जीव के
सिवा कुछ नहीं समझा जाता ।
यहाँ ध्यान देने वाली बात है
कि बुढ़ापा सबको आता है और
जहाँ निसंतान दंपत्ति के कुटुंबी साथ
होते हैं वहीं समलैंगिक जोङे के पास दूसरे
समूह समलैंगिक दोस्त ।
और जब दैहिक ताकत खत्म हो जाती है
तब जो भी करीब आता है पैसा पाने के
लालच में आता है ।
प्रेम की परादैहिक और बिना दैहिक
संबंध बनाये भी प्रेम करने
दोस्ती निभाने की रीति शायद ही ऐसे
समलैंगिक जोङों के समूह में मिल पाये।
ये भारत है जहाँ खुशी के अवसर
मुख्यधारा के समाज में किन्नर आकर
वापस जाकर गुम हो जाते हैं
अपनी दुनियाँ में ।
हर समय ओवर स्त्रीपन!!!!!
हर समय केवल सेक्स टॉकिंग!!!!
हर समय केवल आक्रामक खानपान रहन
सहन!!!!!
क्या पुरुष पुरुष का एक समलैंगिक
जोङा एक कन्या शिशु को गोद लेकर एक
सही परवरिश दे सकता है????????
क्या स्त्री स्त्री का समलैंगिक
जोङा एक कन्या या पुरुष शिशु
को सही परवरिश दे सकता है????
पेट से दर्द लेकर बच्चे को दूध पिवाकर
पाले बिना क्या ममता वात्सल्य
की अलौकिक अदृश्य डोर से समलैंगिक
परिवार में जहाँ पिता पिता ।
या माता माता है ।
वहाँ
बहिन भाई दादी नानी मौसी बुआ
मामी काकी ताई
दीदी भाभी चाचा ताऊ
नाना बाबा मामा फूफा मौसा जीजा क
पूरी थीम केवल कल्पित माने गये
नातो के आधार पर
खङी की जा सकती है????
सवाल और भी हैं कि जिस जोङे
का सारा प्यार ओरल सेक्स एनल सेक्स
और एक मान लिये नर मान
ली गयी नारी के कल्पना पात्र के
अभिनय पर टिका हो वहाँ बच्चा गोद
लेकर कब तक असुरक्षित नहीं????
क्या पुरुष पिता पुरुष माता का अभिनय
करके बच्चे को वैसा माँ बाप जैसा उसके
स्कूल के दोस्तों के है दे सकेगे????
क्या किसी दिन
बच्चा ही ऐसी ही समलैंगिग
वृत्ति का प्रवृत्ति का या । कल्पित
पिता पुरुष या माता पुरुष
की ही वासना का शिकार
तो नहीं हो जायेगा?????
मानना पङेगा कि समाज में अपराध
परिवार में हो रहे हैं । कितु
बच्चा जैसा कि हमने पहले भी कहा एक
पूरा कुनबा कुटुंब परिवेश पङौस में
जुङता है और अगर अपवाद से पीङित
होता है तो परंपरा से राहत और
अपराधी को दंड भी दिया जाता है ।
किंतु जहाँ अभिभावक समलैंगिक
हों वहाँ पूरी पूरी आशंका रहती है
कि बच्चा सामान्य स्वस्थ होने पर
समलैंगिगकता की आदतों का शिकार
होकर वही फिर परिवार विहीन होने
की दौङ में शामिल हो जायेगा ।
और एक बात कि बच्चा गोद लेकर
पिता माता की तरह पालने
का दावा करने वाले समलैंगिक जोङे
क्यों भूल जाते हैं कि बच्चे कोई न कोई
माँ पैदा करेगी तभी तो होंगे!!!!! और
तभी गोद लिये जा सकेगे!!!!!! और
बच्चा पैदा होने के लिये एक सर्वांग
स्वस्थ स्त्री पुरुष जोङा तो जरूरी है ।
चाहे परखनली विधि से हो या सीमेन
और एग डोनेशन से या सेरोगेसी से ।
तब यह तय हुआ कि दुनियाँ चलाने के लिये
एक स्त्री एक पुरुष तो जरूरी है ही ।
चाहे वे दैहिक संबंध कभी न बनाये परंतु
संतान के लिये उनके अंडे और बीज चाहिये
ही
ये एक मातृत्व पितृत्व की पजेसिव
भावना "मेरा बच्चा "
यहीं इसी बीज सृष्टि नियम से
ही जुङी है। और शकल गुण आदतों के
जेनेटिक कोड भी
तभी कोई खुद अपने बच्चे
को कभी नहीं कह पाते जाने किस
की औलाद है किसका खून किसकी नसल
किस हालत का रोपा कि ऐसा निकल
गया
कोई स्त्री इतना मेकअप गहने और शरीर
उछाल उछाल कर हर समय केवल सेक्स
टॉक करती समाज के बीच
बच्चों परिवार जनों बङो के बीच
नहीं रहती ।
ना ही हर वक्त पति पत्नी बेडरूम में
लिपटे पङे रहते हैं ।
जीवन में समाज की मरयादा है और
संतान मूक बधिर हो तब
भी पिता माता की सेवा बुढ़ापे में करते
देखी जाती है तनहा सिंगल लोग
भी नौकरी मजदूरी करके पेट पालते और
परिवार का बोझ उठाते है ।
स्त्री पुरुष विवाह की तरह गै विवाह
को परिवार नहीं माना जा सकता वह
सिर्फ यौनसंबंध का स्थायी पार्टनर है
क्योंकि वह पुरुष या स्त्री जोङा अपने
अपने माँ बाप परिवार और समाज
की जिम्मेदारी नहीं उठा रहा है ।
वह पूरा कुनबा केवल इसलिये छोङ
देता है कि उसको लगता है कि वह आम
लोगो की तरह दैहिक संबंध
नहीं बना सकता!!!!!!!
क्या सब नॉर्मल लोग हर दिन हर समय
केवल दैहिक रिश्ते की दम पर
ही परिवार में रहते है!!!!!!
अंधा गूँगा बहरा लँगङा बीमार और
पागल बच्चा भी परिवार पालता ही है
फिर
ये यौनविकृत लोग क्यों नहीं रह सकते
परिवार में????
लाखों स्त्रीपुरुष है
जिनकी शादी नहीं हो पाती ।
या साथी की मौत के बाद
पूरी जिंदगी परिवार के लिये विवाह
ही नहीं करते ।
ये कमरे के भीतर की बात है
कि लाखो जोङे साल साल भर तक
कभी एक साथ नहीं हो पाते
किसी किसी का साथी पाँच साल दस
साल तीन साल पर परदेश से आता है।
कोई बीमार है या दुर्घटना में दैहिक
ताकत खो चुका है परंतु लोग रहते है जोङे
में परिवार में ।
हर वक्त यौनसंबंध ही नहीं जीवन
को संचालित करते हैं ।
लोग बेशक सेक्स से जुङकर ही परिवार
शुरू करते है किंतु केवल सेक्स ही परिवार
की हर समय की वजह नहीं ।
क्या करते है लोग नौकरी पर जाते है
बच्चे पालते है ।समाज
सेवा कला साहित्य और
राजनीति वित्त और बच्चे वास्तु और
पर्यटन सब पर जीवन जहाँ जैसी जरूरत
हो खरच करते है ।
किंतु बहुत बनावटी और बहुत
ही दिखावा परक हर समय केवल
स्त्री न होने या पुरुष न होने की वजह
से मात्र बेड बेड बेड बर्राना
कहीं भी मानवता नहीं । समाज में
सबको जीने का हक है ।
चाहे वह नर हो किन्नर
हो नारी हो और चाहे दैहिक
विकृति प्राप्त विकलांग मनुष्य हो ।
किंतु समाज के नियम है ।
सार्वजनिक अश्लीलता फैलाना गुनाह है
अनैतिक है । और किसी बच्चे
को किसी दैहिक कमी के कारण माँ बाप
परिवार से छीनकर अनाथ कर
देना महापाप है ।
कोई बच्चा केवल इसलिये किसी किन्नर
या गे कम्युनिटी को पैदा होते
ही नहीं कदापि नहीं सौंपा जाना चाह
कि वह पुरुष या स्त्री नहीं है ।
वह परिवार में ही रहे ।
परिवार में रहकर पढ़े और हुनर सीखे
रोटी कपङा मकान कमाकर खुद खाने और
पिता माता आश्रितों तक को भी अपने
साथ हमेशा रखकर खिलाने सेवा करने
का ।
दुकान खोले या कारीगर बने ।
पच्चीस तीस साल तक पहले हाथ पैर
दिमाग का इस्तेमाल करे ।
यौनांग ठीक है या नहीं इनका नंबर
जॉब रोजगार और पढ़ाई लिखाई के बाद
का सवाल है ।
बालिग होने तक और जॉब कैरियर
रोजगार पा लेने तक हर बच्चे
को पिता माता परिवार संरक्षक के
ही देखरेख निगरानी प्यार
ममता छाया में रहने देना चाहिये ।
रहने का हक़ है ।
कौन सा इंसाफ है कि जैसे
ही पता चला बच्चा यौनांग विहीन
या विकृत है उसको त्याग देना????
या छीन ले जाना??? या चुराकर बच्चे
जबरन विकृत बनाना????
अरे!!!!! उसके हाथ पाँव आँखे
उंगलियाँ नाक कान गला आवाज और
दिमाग तो सही सलामत है न!!!!!
वह क्यों नहीं कमा खा सकता????
जब बालिग हो जाये तो अगर वह महसूस
करता है कि वह किसी पुरुष पुरुष
या स्त्री स्त्री जोङे में ही सुखी रह
सकता है तो वह ऐसा करे या न करे ये
सवाल बहुत बाद का है ।
पहले सवाल है कि क्या मेडिकल साईंस में
कोई इलाज संभव है??
अगर है तो परिवार सरकार इलाज
मुहैया कराये ।
अगर लाईलाज विकृति विकलांगता है
तो भी लाखों मूक बधिर विकलांग
परिवारियों की तरह वह
व्यक्ति भी परिवार के साथ ही रहे ।
किंतु जैसा कि विवाह सबका होता है
माई बाप के सामने आँगन में खाट डालकर
कोई औलाद नहीं पङा रहता ।
इन सब लोगों को भी परिवार
की मर्यादा तो रखनी ही होगी ।
और समाज
की भी मर्यादा रखनी ही होगी ।
प्रेम अगर कोई शै है
तो किसी को भी किसी से हो सकता है

एक दोस्त पर बहिन भाई धर्म भाई
बहिन बेटे बेटी तक पर लोग जान
लुटा देते हैं ।
विकृतांगी भी प्रेम कर सकते है किंतु जैसे
कि विवाह का मूल कांसेप्ट परिवार
की नयी यूनिट का गठन है ।
ऐसे लोगों के जोङे बनाने
की प्रक्रिया में क्या मूल बात
होगी?????
परिवार बढ़ाना नही संभव है । और ऐसे
जोङे
का बच्चो बेटियों स्त्रियों की तरह
संयमित मर्यादित घर की बहू ससुराल
जाती हुयी विदाई कराके अपने
पति ""के घर ससुर सास जेठ देवर ननद के
रसोई और सेवा में पकाती खिलाती घर
सँभालती रहना संभव है????
अगर है पति के जो कि एक जोङा ऐसे
लोगो का अभिनय करता है एक पति एक
पत्नी बन जाता है ।
तब पति के कपङे धोने से बिस्तर सजाने
भर से तो परिवार नहीं बनेगा ।
पति के पिता माता की सेवा कौन
करेगा???
पति की बहिन
को बुलाना विदा करना कौन करेगा ।
पति के भाई
भाभी की हारी बीमारी ब्याह
बारात भात की रसोई कौन तपेगा???
पानी रोटी गोबर
सानी कूङा खेती कूचा बरतन
लीपना पोतना गहाना फटकना पीसना
करेगा ।
सब शहर शहर है क्या???
गाँव के किसी किसान का बेटा मजदूर
का बेटा अगर विकृत यौनांग
हो पैदा तो क्या करें???
सङक पर फेंक दें?? या सौंप दें किसी गै
किन्नर कम्युनिटी को??
जैसा कि कई केस सुनने में आये
कि बच्चा अगर नॉर्मल
नहीं तो किसी जमाने में लोग अनाथालय
में छोङ आते थे या किन्नर समूह बधाई के
समय ही लङ झगङ कर छीन ले जाते थे!!!
अब ऐसा कुछ तो सुनने में नहीं आता है
किंतु यदा कदा ही सही ।
कुछ अपराध इस तरह के सुनने को मिल
जाते हैं कि साथ साथ नाचने गाने बजाने
वाले किसी स्वस्थ युवक को जबरन
या धोखे से नपुंसक बनाकर किन्नर
बनाया गया ।
अगर ये एक भी अफवाह सच है तो ये
भयानक जुर्म है । जो केवल उन
लोगो द्वारा किया जाता है
जिनकी किसी विकृति के लिये आम
परिवार दोषी नहीं है।
हजारो स्त्रियाँ तथाकथित
अति आधुनिकता की दौङ में । विवाह
ना कर पाने
की मजबूरी या अपनी आजादी ना खत्म
हो जाये इस खयाल से अगर सही सलामत
होते हुये भी स्त्री स्त्री दैहिक संबंध
की तरफ मुङती है तो ये एक विकृति है
विचलन है ।
दो लङकियाँ पक्की सहेली है ।
और पढ़ने या जॉब करने को लेकर साथ
रहती है उनकी मित्रता को कल से इस
कदर लेस्बियन समझा जाने लगेगा ।
और तब माता पिता पर एक और तलवार
लटकती रहेगी कि लङकी लङकी कहीं आप
में इस तरह की कोई दैहिक विकृति से न
ग्रस्त होकर भटकने लगे ।
बिलकुल इसी तरह लङके
को लङकों की ही संगत से
बचाना नया संकट होगा ।
सारे के सारे समलैंगिक लोग यौनवुकृतांग
हीनांग या कमजोर नहीं होते । अनेक
लोग स्वस्थ होते हुये । केवल
संगति कुसंगति के कारण अपनी आदते
ऐसी कर लेते हैं ।
उत्सुकता भ्रांति और अनगढ़ कल्पनायें
विचार ये गलतियाँ करवाते चले जाते है

कल ही एक स्त्री के पति ने
उसको पहली ही रात भीषण रेप के साथ
कुकर्म का शिकार भी बनाया और जब
पीङिता ने हनीमून छोङकर पुलिस
की शरण ली तो फरार हो गया!!!!!!!!
ये प्रेम नहीं है
ये विवाह भी नहीं है
ये परिवार का गठन का आदर्श रूप
भी नहीं है ।
ये पश्चिमी ब्रह्मचर्यवाद के खिलाफ
एक अभियान के रूप में
फैलायी गयी सामाजिक विकृति है।
जहाँ स्त्री उपलब्ध नहीं वहाँ नॉर्मल
लोग तक
बङी संख्या में नौकर जूनियर और
बच्चों पशुओं
तक का विपरीत कुकर्म करते हुये
अपराधी पाये जाते रहे है।
वे लोग जिनके बच्चे हैं पत्नी है और उनमें
कोई पौरूषीय कमी नहीं नहीं है ।
वे तक इस विकृति के प्रभाव में
दोस्तो और मातहतों का दैहिक पुरुष
पुरुष बलात्कार करते पकङे गये ।
अनेक स्त्रियों पर नॉर्मल होते हुये उनके
पतियों तक ने दैहिक कुकर्म किये और ऐसे
मामले परिवार की सीमा में कैद ही रह
जाते हैं।
व्यापक मूवमेंट के नाम पर जिस
समलैंगिकता की दलील दी जा रही है
वह ।
कितनी खतरनाक है सोचने के लिये केवल
चिकित्सक की ही सलाह आँखे खोल
सकती है ।
भोजन ग्रहण करने और अपशिष्ट पदार्थ
विषैले तत्व आदि जिस्म से बाहर फेंकने
वाले अंग किसी भी व्यक्ति के स्वयं के
लिये सुख दायी कतई नहीं हो सकते ।
ऐसे संबंध एक के लिये यातना और दूसरे
को बरबरता के ही रूप में परिभाषित
किये जा सकते हैं ।
इनका अप्राकृतिक कहना सही है ।
क्योंकि प्रकृति ने अगर नेत्रहीन बधिर
मूक किया है किसी को तो वह
चिकित्सा करवाकर देखने सुनने लायक
बनाया जाये यही उपाय है ।
किंतु समाज भर को वह प्रतिशोध में
अंधा बनाये ये कतई प्राकृतिक नहीं है ।
एक विकृतांग व्यक्ति
किसी ऐसे पुरुष के लिये सिवा कुसंगत के
कुछ भी नहीं जो नॉर्मल है बच्चे
पत्नी परिवार पाल सकने में सक्षम है ।
लोग अपने यौनांगो से नहीं कमाते
हाथ पैर दिमाग से आँख आवाज कान से
कमाते है ।
विकृतांग लोग भी सब कुछ बन सकते है जैसे
नेत्रहीन लोगो ने ब्रेल सीखकर महारत
के काम कर डाले!!!!!
महान संगीत कार हुये और
बेथोवेन जैसे बधिर व्यक्ति उदाहरण है ।
कला संगीत साहित्य लेखन अभिनय
व्यापार शिक्षा विज्ञान
राजनीति दर्शन की तमाम
महाविभूतियाँ है जो आजीवन
अविवाहित रहीं और समाज को राह
दिखाती रहीं ।
यह कहाँ की सोच है कि विकृतांग
व्यक्ति महान व्यापारी कलाकार
डॉक्टर इंजीनियर आदि नहीं बन
सकता???
बेशक सबको प्रायवेसी का हक है ।
सुना आपने प्रायवेसी का ।
समाज में हर तरह के लोग हैं । जीओ और
जीने दो ।
चाहे जोङा समलैंगिक हो या नॉर्मल
पारंपरिक विपरीत लिंगी
समाज की मर्यादा संस्कृति और समाज के
कानून कायम रहने ही चाहिये ।
नग्नता अश्लीलता औऱ
विद्रूपता को बच्चों स्त्रियों और आम
समाज से पृथक करना ही पङेगा ।
केवल वयस्कों के लिये ही जो बातें हैं वे
केवल बंद कमरों बंद संस्थानों में
ही होनी चाहिये । जहाँ बच्चे ना हो ।
जहाँ रिश्तों की सीमा का उल्लंघन
ना होना हो
पति पत्नी के बीच की बाते
पिता पुत्री माता पुत्र या भाई बहिन
के सामने नहीं आनी चाहिये ।
नियम तो बनाने ही होंगे
जब पुराने नियम टूटेगे
तो नये बनाने होगे
जो अपराधी है वे उत्पीङक है ।
जो निर्दोष हैं उनको भी सामाजिक
मर्यादा की सीमा पर ही कायम
रहना होगा ।
नाबालिग बच्चे परिवार से माँ बाप से
अलग नहीं होने चाहिये
किसी को जबरन किन्नर
नहीं बनाया जाना चाहिये भले ही वह
विकृतांग है परंतु वह डॉक्टर
क्यों नहीं बन सकता?
सवाल और भी हैं
सेहत और सामाजिक लाज शरम को कायम
रखना
व्यवस्था की बात है
तंबाकू जहर है
तो और भी सेहत को हानिकारक चीजें हैं

संसद नियम बनाये किंतु बच्चे और पुरुष
लङकों की दैहिक शोषण की अपराधिक
वेश्यावृत्तिक प्रवृत्ति पर भी सख्ती से
रोकथाम करे
सहमति से ड्रग्स लेना जायज
नहीं हो जाता
ना ही रिश्वत लेना
लोगों की रोजी रोजी तो चोरी भी है
और सुपारी लेकर हत्याये
करना भी जेबकतरी है आतंकवाद भी है
और बच्चे
चुराना बेचना भी
©®सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
7669489600
sudha.raje7@gmail.com

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