कविता:जानबूझकर मौन

Sudha Raje
जानबूझकर मौन रहा जो वही समय
का पापी है ।
और बताने वाला खंडित सच को केवल
हत्यारा ।

छुपा लिया है जिसने सच का दस्तावेज़
किताबों में ।
सुधा देखना घर से दर- दर धुँआ
बनेगा अंगारा ।
मौन जानकर मौन रहा जो नेत्रहीन
लोचनवाला
वही देखना वही नोंच लेगा अपने दृग
दोबारा ।
काल कर्म की कठिन कसौटी केवल
निर्मम सत्य सुधा ।
मृत्यु उन्हें भी तो आयेगी समर
अभी बाकी सारा
Copy right
सुधा राजे
©®

Comments