स्त्री और समाज

पुरुष वर्ग का बहुसंख्यक
जो चाहता था वही हो रहा है ।
बङी संख्या में क्लोन मरदानी औरतें
पैदा हो रही हैं आधुनिकता के नाम पर ।
और बिना ये महसूस किये कि शातिर
मर्द उसके सिर पर जब हाथ फेर रहा है
तो यकीन जीतने के लिये ताकि कानून से
बच सके!!!!!!
स्त्री और पुरुष
दोनों में भूख प्यास है
यौनसंबंधों की सेक्स डिजायर बहुतायत
पुरुष में जहाँ नितांत दैहिक मामला है
स्त्री में
वहीं प्रेम और
सिक्योरिटी स्थायी पार्टनर
की चाहत है ।
स्त्री जहाँ हम उम्र और मैच्योर्ड पुरुष
पर रीझती है वहीं
पुरुष अकसर अपनी आयु से अधिक से अधिक
छोटी लङकी को ही भोगना चाहता है
स्त्री
को बहुतायत पुरुष केवल एक शरीर
ही समझता है ।
जिसमें उभार और गहराई है ।
जिन पर अकसर नजर बहत्तर गज
कपङों के बाद भी अटक अटक जाती है ।
स्त्री जब
पुरुष से बात करती है तो नजर पुरुष के
शरीर पर कम ही होती है सबसे
ज्यादा रीझती है उसकी बातों और
विचारों पर ।
वे विचार जो उसको एहसास कराते हैं
कि वह किसी पुरुष के लिये महत्तवपूर्ण
है नारीदेही होने से वह हीन
नही बल्कि कोई समझता है कि वह मन में
दुख रखती है और वह केवल शरीर
नहीं बल्कि उसके सपने है और नींद भूख
प्यास सम्मान है ।
प्रेम
वहीं क्रियेट होता है जहाँ अक्सर
स्त्री सुंदर और
पुरुष करूणा ममता दया और सुरक्षा के
भरोसे से स्त्री को जीत लेता है और
शरीर की बजाय मन से संबंध बनाता है ।
उपलब्ध स्त्री को भी भोगने की तेजी के
बजाय मन को राहत देकर साबित
करता है कि उसका पुरुषत्व
स्त्री को केवल मांस पिंड
नहीं व्यक्ति मानता है और वह उसके
करीब एकांत में
भी अपनी ही इच्छा की स्वामिनी है
उसको पहल का भी हक़ है औऱ वह
उसकी सहमति पाने के लिये कपट
नहीं रच रहा बल्कि संयम से
ही उसकी भी मर्यादा की रक्षा करते
हुये आजीवन उसका है ।
स्त्री देह भी है मन भी
औऱ
ये तब तक नहीं पिघलती जब तक कि वह
साथ वाले पुरुष पर
पूरा भऱोसा नहीं करती ।
यहाँ स्वार्थ और लालच के लिये
बिना मानसिक समर्पर्ण के जो दैहिक
संबंध बनाये जाते हैं वहाँ स्त्री केवल
अपने स्त्री शरीर को एक चैक की तरह
भुना रही होती है या रिश्वत की तरह
इस्तेमाल कर रही होती है ।
नारद मोह
की कथा के अनुसार जब स्त्रियों के सबसे
सुंदर समूह अपसराओं ने भी नारद में
विकार नहीं पैदा कर पाया तब विष्णु
ने कहा अभी तुम सावधान थे
कि विचलित नहीं होना नहीं होना है
सो,,,,,,वे कामिनियाँ थीं
अब तुमको अपने दैहिक बल पर घमंड है अब
देखना """"ये गृहवासिनी है
और विश्वमोहिनी के सामने
सारा धीरज विकलता में बदल गया!!!!!!!
बहुतायत पुरुष
वेश्या के कामबाण से नहीं रीझते ।
परंतु
अनजाने ही आम
गृहवासिनी की अनायास क्रियाओं पर
अकुला विकला जाते हैं ।
किंतु ये कोई कुदरती नहीं ।
सामाजिक अभ्यास है कि
बहुतायत पुरुष
हर आती जाती स्त्री को घूरते हैं विशेष
कर वक्ष और कटि स्थल ।
अकसर बहुतायत पुरुष स्त्रियों पर
छेङछाङ फिकरेबाज़ी और कोहनी हाथ
कमर से छूने की चेष्टायें कर चुके होते है
कभी ना कभी तब जबकि उस लङकी से
ना तो विवाह करना है ना प्रेम
ना ही आगे कभी कोई नाता बनने
की संभावना है ।
अजीब सोच है!!!!
मतलब कि एक स्त्री पर हर तरफ से
कामबाणों
सेक्स डिजायर भङकाने वाले स्पर्शों ।
दैहिक लिप्सा से भरे आमंत्रणों
और
नापतौल कर फिदा होती नजरों ।
यौन संकेतों की बरसात होती रहती है
वह स्त्री है यह बचपन से समझ जाती है
। और समझा रहा है बहुतायत हर आयु
का पुरुष कि उसे कभी भी कहीं भी दैहिक
हमले और यौन शोषण का शिकार
बनाया जा सकतावहै ।
वह अगर कपङे उतारने को तैयार है
तो बहुतायत पुरुष वर्ग उसको दैहिक
संबंध बनाने के लिये कतार से तैयार
है!!!!!!!!! फिर भी
फिर भी
??????
वह अखंड समाधि लगाये हुये
अपने सतीत्व की रक्षा करती रहे
यौन विचार ना लाये
और
विवाह के
अलावा कभी किसी को ना देखे
"""उस"""नज़र से!!!!!
ना ही कभी भावी पति के
अलावा किसी को छुये ना सपना देखे
ना खयाल करे!!!!
मन
कर्म
वचन
से कुमारी रहे तब तक जब तक
कि उसको पिता और भाई काका खोजकर
एक पुरुष के हवाले परमानेंट
शय्याशायिनी के रूप में सौंप नहीं देते???
स्त्री
महामानवी!!!!
स्त्री हर दैहिक उत्तेजना भङकाने
बहलाने फुसलाने और ललचाने रिझाने
आकर्षण और विचार से पूरी तरह मुक्त
रहकर
साबित करे
कि वह कुलटा नहीं!!!!
क्योंकि हर पल बहुतायत पुरुष
परीक्षक हैं
कि उसके भीतर सेक्स डिजायर है
कि नहीं?
वह भङकने बहकने को तैयार है कि नहीं?
वह लालच में आती है कि नहीं?
वह सेक्स की इच्छा को दबा पाती है
कि नहीं??
सब जगह
हर लङकी हर आयु
की स्त्री की परीक्षा ली जा रही है
हर पल!!!!!!
महामानवी
देवी
महासंयमी
वही स्त्री है जो विवाह पर
पति की सेज पर पहुँचने के बाद भी उस
पुरुष की पहल करने तक भी ।
जरा भी न बहके न कोई विचार खयाल
पहल बात व्यवहार दैहिक
इच्छा का लाये???
जबकि
कुदरत ने स्त्री में पुरुष के समान ही भूख
प्यास नींद संवेदना भरी है!!!
और
स्त्री का तो ऋतु चक्र भी है जब हर
महीने कुछ खास दिनों के बाद लगभग हर
स्त्री के भीतर डिजायर बढ़ती है और
खत्म होती है!!!!!
ये सब सोशल प्रैक्टिस है कुदरत नहीं ।
कि बहुतायत पुरुष वर्ग ये
तमन्ना करता है कि स्त्री हर पल
लजाती शरमाती रहे और हर तरफ
कामी लोलुप मँडराते रहें!!!!
हर तरफ से स्त्री पर ""वचन देह
दृष्टि और विचार से कामबाण बरसाये
जाते रहें तब भी ""समाज
की नैतिकता शुचिता और
मर्यादा बनाये रखने
की जिम्मेदारी स्त्री की है ।
बखूबी
निभातीं भी हैं बहुतायत स्त्रियाँ इस
मानसिक वाचिक देहिक और वैचारिक
हमलों लालचों के बीच से भी अपने
आपको सिकोङ कर बाँधकर
कभी डरती डरती कभी लङती झगङती जू
कभी रो धोकर । बचा लेती हैं खुद को ।
बनी रहती है
अतिप्राणी
महामानवी
देवी और संयम की शिला ।
किंतु
यह सवाल आज समाज के हर चेतन
व्यक्ति के सामने हम रखना चाहते हैं
कि ।
"""क्या यह मानवाधिकार की दृष्टि से
न्याय है? क्या यह व्यक्ति और जीव
प्राणी रूप में स्त्री के साथ इंसाफ
है?????????????
कि हर पल हर जगह हर उम्र में
स्त्री पर हर आयु का बहुतायत पुरुष ये
चेष्टा करता रहे कि वह """सहमत है वह
तैयार है """
और
अगर वह संयम ना रख सके तैयार और
सहमत हो जाये तब उसको कुलटा और
पापिनी कहा जाये????
महानुभावो!!!!
ये तो कहो कि अगर समाज को पवित्र
पत्नियाँ और मातायें चाहिये तो
बंद
करे ये
हर
तरफ से
कामबाणों की बर्षा!!!!!
बहकाने फुसलाने बहलाने ललचाने भङकाने
की चेष्टा हमले और प्रचार!!!!!!!
क्या सामाजिक
नैतिकता
केवल स्त्री की ठेकेदारी है!!!
और जब जब कहीं कोई स्त्री पुरुष के
बहकावे में आकर डिग गयी तब तब
कुलटा????
क्या पचास वर्ष
की स्त्री को विवाहिता को सत्रह
साल के युवक को पटाने बहकाने फुसलाने
का हक़ है??
क्या दो जवान
बच्चों की माता या दादी को किसी पुत्
पौत्र की आयु के लङके को दोस्त और
बॉयफ्रैंड और प्रेमी और
शय्या भागीदार बनाने का हक
है???????
अगर ऐसा कोई बङी उम्र
की विधवा तलाकशुदा स्त्री भी करती है
कि पुत्र की आयु के युवक को पटाने
रिझाने बहकाने और सहमत करने के बाद
छोङ देती है तो क्या कहता है समाज
उसको?????
कुलटा!!!
हवसी!!!
और
यही बात उलट दीजिये
एक सत्तर अस्सी साठ पचीस चालीस के
किसी भी पुरुष का ।
किसी भी आयु की पुत्री पौत्री तक
की समवयस्क स्त्री पर डोरे
डालना रिझाना ललचाना उसकी भावन
जगाने की चेष्टा सहमति लेने
की सारी साज़िश!!!!!
तब जबकि आईन्दा जीवन उसके साथ
नहीं बिताना जोङी में??????
बस पटाया सहमत
किया बहकाया भोगा और चलते बने ।
बाद में अगर लङकी प्रेगनेंट
हो गयी या बात खुल गयी तो
केवल
लङकी बदचलन?????
ये बदचलन बनाने वाले बरिष्ठ विद्वान
बुजुर्ग और अनुभवी विवाहित विधुर
या तलाकशुदा की कोई
गलती नहीं बनाने में????
कौन
तैयार कर रहा है बदचलन लङकियाँ???
कौन तैयार कर रहा है कुलटायें???
जब हर तरफ इतनी अश्लीलता यौन
विचार यौन नजरिया यौन व्यवहार
और चेष्टायें फैली पङी है तब
???
तब कैसे रहेगी समाज में चरित्रवान
स्त्रियाँ???
कहा जाता है
कि अगर आप नहीं चाहते
कि आपका बेटा सिगरेट पिये तो घर में
और उसके संपर्क में कोई सिगरेट स्मोकर
नहीं होना चाहिये ।
हम
इसे यूँ कहते हैं कि चेत जाओ!!!!!!!
अगर
समाज को अब चरित्रवान पत्नी और
पवित्र कन्यायें और
ममतामयी चरित्रवान मातायें चाहिये
तब
हर तरफ से ये कामबाणों की बरसात
रोको!!!!
रोको ये यौन विचारों का प्रहार और
चेष्टायें छूने की घूरना बंद
करो स्त्रियों को बेलना बंद
करो स्त्री की यौनिकता पर मत सुनाओं
यौनेच्छायें भङकाने वाले शब्द!!!!!
वरना वह दिन दूर नही
जब हर तरफ सिर्फ कुलटायें ही बचेंगी ।
सदियों की साज़िश कामयाब
हो जायेगी ।
और खत्म
हो जायेगी नैतिकता की सारी कहानिय
सतूतिव पवित्रता के सारे चित्र खत्म
हो जायेगी लज्जा और झिझक ।
पहल करेगी औरतें और हर तरफ पुरुष पर
काम बाण बरसाती मिलेगी कुलटायें और
कोई गाली नहीं रह जायेगी स्त्री के
लिये बाकी ।
समाज की लङकियाँ सब
की जिम्मेदारी है कि उन पर यौन
वाचिक दैहिक वैचारिक हमले रोकें ।
केवल
लङकियाँ कैसे इस
जिम्मेदारी को उठायेगी???????
एक बच्ची स्कूल जा रही है अभी कोई
कपोल खींच देता है??
क्यों?
एक लङकी मंदिर जा रही कोई गले के
भीतर हाथ डाल देता है!!
क्यों?
एक स्त्री खेत खलिहान दफतर
जा रही है ।
कोई पेन्ट पाजामा खोल कर अपना बदन
दिखाने की घिनौनी हरकत करने
लगता है???
क्यों ।
कोई स्त्री दफतर स्कूल कॉलेज अस्पताल
कहीं भी जा रही है ।
बस
ट्रेन
मेट्रो ऑटो टैक्सी कहीं भी
कोई भी किसी भी आयु का
सीने को कमर को पीठ
को जांघों को जानबूझकर नोंचने छूने
घिसटकर निकलने की कोशिश करने
लगता है ।
काम काज करते जरा सा गला पीठ पेट
पिंडली
दिख
गयी कि लगा टकटकी लगा घूरने???
क्यों??
मानव है औऱ मानव तो नग्न ही पैदा हुआ
भी है और चमङी ही कुदरत
का दिया आवरण है!!!!!
जब जोङी नहीं बनानी उस स्त्री के
साथ
परिवार नहीं बनाना उस स्त्री के साथ
तब
जो जो भी जानबूझकर ऐसी हरकतें
करता है
वही वही पुरुष कुलटा पापी दुष्ट और
सामाजिक राक्षस है ।
जब
वह लङकियों पर लङकी होने की वजह से
हेयता वाले चुटकुले
गढ़ता सुनता सुनाता है वह सामाजिक
पापी है ।
जब वह लङकियों पर लङकी होने मात्र
की वजह से सामान्यीकृत व्यंग्य
या फिकरे कसता है
कि ""लङकियाँ तो ऐसी होती हैं ""जब
वह विवाहित होते हुये
भी किसी भी आयु
की स्त्री को """सहमत """करने
की चेष्टायें करता है ।
जब वह केवल पुरुष होने मात्र से
स्त्री पर नियम बनाने लगता है
जबकि ये कार्य उसका प्रोफेशन नहीं ।
वह एक सामाजिक राक्षस है।

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