Monday 16 December 2013

तीसरी नस्ल और समाज -(1)

Sudha Raje
स्कूल दो प्रकार के होते हैं
लिंगभेद की दृष्टि से
1-कन्या विद्यालय
2-विद्यालय
तीसरी नसल का स्कूल
होता नहीं अव्वल तो पढते
नही या फिर समझौता करके
कन्या या बालक में छिप जाते हैं
एक समस्या
जिसपर लोग कम ही सोचते हैं
ये तीसरी नस्ल के लोग कब तक
नाचने गाने और
परायी शादी परायी औलाद के
जश्न पर निर्भर रहेंगे????
कब तक रेलगाङियों तीर्थों और
आवागमन से दूर बस्तियों में समाज
से कटकर रहेंगे????
मजाक गाली और परिहास के
पात्र!!!!!!
क्या किसी की यौनशक्ति ही मानव
होने की पहचान है???
तो लाखों छिपे कायर लोग
जो धोखा देकर विवाह कर लेते हैं
फिर निभा नहीं पाने पर
अत्याचार या फिर अनाचार
का कारण बनते हैं
केवल इसलिये कि समाज में लिंगभेद
चरमसीमा पर रहता रहा
स्त्रीवेश में
अतिवादी नारी अभिनय करते ये
लोग क्या समाज के किसी काम के
नहीं???????
पढ़ लिखकर रोजी रोटी कमाने
का इनको हक नहीं???
ये किनकी संताने हैं????
क्या उन परिवारों ने
इनको निकाल दिया???
या एक असामान्य
बच्चा पैदा होते ही फेंक
दिया जाता है चुपचाप????
या कोई गिरोह लगा है
जो अपहरण करके
बच्चों को असामान्य
बनाता है????
ये लोग अप्राकृतिक नहीं
क्योंकि प्रकृति ने बनाया है
किसी फैक्ट्री में नहीं बने
इनकी माँ रही होगी बाप
रहा होगा
कैसा आधुनिक काल????
आज भी लाखों की आबादी का एक
वर्ग केवल गाली का विषय है
एक शोध पूरी चाहिये
इनको शिक्षा और सम्मान ताकि
चोरी की जिंदगी जीते पुरूष बने
या स्त्री बने इन असामान्य
लोगों को मुख्यधारा में
जोङा जा सके औऱ कोई
अपनी संतान फेंकने को केवल
इसलिये मजबूर ना हो जाये कि वह
खुद माँ या बाप नहीं बन
सकता या किसी विवाह
जैसी संस्था का भागीदार नहीं
अज़ीब
हालात हैं ये कुछ
Mar 4 ·Mar 4
Sudha Raje
सवाल है स्त्री या पुरूष
की सीमा परिभाषा में बाँटे गये
करोङों लोगों में लाखों ऐसे
भी शामिल हैं जो माँ नहीं बन
सकते
या बाप नहीं बन सकते
या विवाह नहीं किया
या वैवाहिक रिश्ते नहीं रख सकते
या साधु हैं पागल है भगोङे है!!!!!
तब गाली क्यों?????
सबसे निरापद इंसान
क्या कलाकार वैज्ञानिक मजदूर
किसान सरकारी सेवक नहीं बन
सकता?????
ये पृथा यूरोप में नहीं है
ऐसे लोग वहाँ नहीं हैं क्या!!!!
वे पार्लर चलाते है स्कूलों के
चौकीदार है पुलिसमैन है ड्राईवर
माली दरबान है
व्यापारी और दुकानदार है
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