Saturday 12 October 2013

आपदाएँ और हम : कितने तैयार??? कितने लाचार ??? कितने लापरवाह ???

Sudha Raje with Sunil Chhaiyan
23--06--2013//11:01AM//
आपदायें और हम :::कितने तैयार???? कितने
लाचार???? कितने लापरवाह??
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पाठशालाओं में पहले एक सहायक
प्रशिक्षण हुआ करता था । एन
सी सी यानि नेशनल कैडैट कोर ।और
दूसरा एन एस एस यानि नेशनल सर्विस
स्कीम ।
ये दोनों प्रशिक्षण सैनिक सेवाओं और
सैनिक सेवाओं के प्रशिक्षण होते थे ।
तीसरा था स्काऊट एंड गाईड ।
ये सब कक्षा पाँच से स्नातक तक आज भी हैं
किंतु अब केवल शासकीय स्कूलों में रह गये
हैं । शासकीय स्कूलों की हालत किसी से
छिपी नहीं है ।
इन पाठशालाओं में मोटी तनख्वाह पाने
वाले शिक्षक तैनात तो हैं किंतु
उनका अधिकतम समय मिड डे मील और
वज़ीफा जनगणना और मतदाता गणना ।
चुनाव में ड्यूटी और मतगणना ।
तथा इन सब
कामों का लेखा जोखा काग़जों में लिखने में
जाता रहता है ।
क्लर्क तंत्र!!
भारत में हर विभाग पर हावी है ।
सबकुछ सुबूत कागज़ पर बोलता है ।
तो लाल हरे नीले तूस के कपङों में
बँधी फाईलों में ये तीनों सेवा प्रशिक्षण
भी बोलते हैं कि चल रहे हैं ।
जबकि मौके पर इनका केवल एन
सी सी तो सचमुच दिखता है
कहीं कहीं सैन्य अधिकारियों के दख़ल के
कारण बाकी एन एस एस और स्काऊट
गाईड छोटे नगरों और कस्बों गाँवों और
परिषदीय शासकीय स्कूलों में बस
अतिरिक्त कमाई का ज़रिया बन कर रह
गये हैं ।
बजट में दिखा दिया जाता है
कि इतना समाज सेवा कार्य
किया गया ।
जबकि इनके कैम्प के नाम पर सिर्फ चंद
नाच गाने भाषण और किसी नेता और
प्रशासनिक अधिकारी को मुख्य
अतिथि अध्यक्ष बनाकर
मोमेन्टो बँटवाना भर रह गया है ।
मेरा व्यक्तिगत सुझाव है और यह
ज़रूरी भी है ।
कि हर स्कूल मदरसे कॉन्वेन्ट
पाठशाला आश्रम और पब्लिक
शिक्षा एकेडमी आदि में
""अनिवार्य समाज सेवा आपदा प्रबंधन
सैन्य प्रशिक्षण और राहत बचाव
पुनर्वास प्राथमिक
चिकित्सा स्वच्छता साक्षरता और कुशल
स्वयम् सेवा ""
को अनिवार्य किया जाये ।
क्योंकि सारे बच्चे एक दिन युवा होकर
देश के नागरिक होंगे और
किसी भी विभाग बिजिनेस
या कला सेवा या व्यवसाय में
रोजी रोजगार पायें वे सब एक देशभक्त
मानवतावादी और आपात्परिस्थितिय
ों से निबटने में पूर्व प्रशिक्षित
व्यक्ति होंगे ।
आप देखें कि जो लोग कभी एन एस एस एन
सी सी या स्काउट गाईड में बचपन
कैशोर्यावस्था में शिक्षाकाल में ट्रेनिंग
सचमुच किये हुये होते हैं वे
कहीं भी हों बजाय बोझ बनने के स्वयम्
सेवा में सबसे कुशल वॉलेन्टियर साबित
होते हैं ।
और जिन लोगों ने शिक्षाकाल में
पाठशाला से या अलग से ऐसा कोई
प्रशिक्षण नहीं लिया होता है वे आपात
परिस्थियों में केवल शिकार तमाशाई
या दूसरे वालेन्टियर्स पर अतिरिक्त
बोझ बने होते हैं ।
बचपन ही ऐसा समय है जब
आपका खर्चा प्रायः अभिभावक उठा रहे
होते हैं । पढ़ने के अलावा तभी कुछ जीनव
रक्षक गुण कलायें ट्रेनिंग और
हौसला जल्दी सीखना आसान रहता है ।
तैरना रस्सी की मदद से चढ़ना उतरना ।
चोट अस्थिभंग सदमा दौरा हृदयाघात
और विष दंश आदि का अस्पताल पहुँचने से
पहले ही उपचार ।
स्टेचर
बनाना खपच्ची बाँधना रस्सी बटना आग
बुझाना । भूकंप बाढ़ बाऱिश और बम
विस्फोट का पूर्वानुमान लगाना और
निबटने के लिये उपलब्ध संसाधनों से
ही बचाव कर लेना । असहायों की मदद
ग्रुप में काम करना । तेजी से
बिना घबराये अचूक और कारगर उपाय
एहतियात बरतना ।
ये सब इन प्रशिक्षणों की अनिवार्यता से
काफी ज्यादा सीखा जा सकता है ।
ये टी वी के विज्ञापन
या सरकारी अपीलें कभी उतनी कारगर
नहीं हो सकतीं जो कक्षा पाँच से स्नातक
तक की शिक्षा के बीच में लिये गये
आपदा बचाव सेवा और चिकित्सा के
प्रशिक्षण करते हैं ।
ऐसा प्रशिक्षण प्राप्त युवा प्रौढ़
किशोर हर जगह एक सैनिक के समान
जूझकर दूसरों की ज़ान तो बचाता ही है
आपदा को कम से कम प्रभावी होने
देता है ।
पिछले बर्ष एक नाव हादसे में बिजनौर के
किशोरों ने सात
को जिंदा बचा लिया जबकि चार डूब मरे
। मेरठ अग्निकांड में ऐसे युवक युवतियों ने
सैकङों की जिंदगी बचायी जबकि खुद जल
कर मर गये ।
ऐसे उदाहरण भरे पङे हैं
कि सरकारी दमकल विभाग एंबुलेन्स
सिपाही पुलिस गोताखोर बहुत देर
हो जाने पर पहुँच पाते हैं ।
क्योंकि सूचना और यातायात के साथ
सरकारी अनुमति का मकङजाल
इनको उलझा कर रखता है ।
बाढ़ के बाद के समाज सेवी दौरे में हमने
कुछ घरों में कुछ सामान देखे ।
:
हवा भरी बस के पहिये की ट्यूब
लंबी लंबी नायलोन और नारियल
की रस्सियाँ ।
फूस बाँस का बनाया बेङा ।
लंबे मजबूत दरजन भर बाँस ।
मोमबत्तियाँ टॉर्च और लालटेनें ।
पॉलिथीन की चादरें ।
लाईटर ।
दवाईयों का डिब्बा ।
कैंची चाकू ब्लेड ।
बरसाती कोट ।
पानी टाईट पैक बंद करके रखने हेतु पीपे

वाटरप्रूफ बरतन ।
ये एक आम बाढ़ ज़ोन का प्राऱंभिक
सामान है ।
लेकिन मेरा सवाल अब उस विभाग से है
जिसे ""आपदा प्रबंधन और सिंचाई और
नदी नहर बाँध विभागों के रूप में अक़सर
सुना जाता है देखा नहीं जाता ।।
क्या ये लोग लंबे अरसे तक मुफत तोङिये
सफेद हाथी मात्र नहीं है???
मई से सितंबर तक बाढ है ।
मार्च से मई तक भयंकर अग्नि कांड होते
हैं ।
विवाह मंडपों में । खेतों में । अवैध गैस
किट लगे वाहनों में ।
क्या ये विविध विभाग
सामान्य समय में कभी आम और खास उन
संस्थाओं और घरों का दौरा मुआयना करके
इन सब अहितकर आपदाओं से निबटने के
लिये जरूरी सामान रखना और निबटने के
लिये प्रशिक्षण देना पसंद करते हैं??
कितनी नगर पालिकाओं जो नदी के
किनारे बसी नें जीवन रक्षक नौकायें हैं??
अग्निशामक यंत्र फायर एक्सटिंग्विशर
कितने होटल
ढाबों टैंटहाऊसों विवाहमंडपों धर्मशाला
शो रूम्स और कपङा फरनीचर तेल पेंट
आदि की दुकानों पर हैं???
सीढ़िया बहुमंजिली इमारतों में किस
तरह की है क्या ये चैक की जाती हैं??
बिजली ऐसे आफत के समय ठप्प
हो जाती है । तब कितने संस्थानों में
वैकल्पिक प्रकाश और निकास
की व्यवस्थायें हैं???
संचार का साधन आज मोबाईल पर
निर्भर है और मोबाईल
बिजली की बैटरी पर । बिजली हर
आपदा में खत्म होने और आपदा बढा देने
वाली पहली शै है । तब संचार
का खतरनाक इलाकों में क्या वैकल्पिक
उपाय है जो बिजली के बिना भी चल
सकता हो???
कई पीङितो का देहान्त ऑक्सीजन समय
पर मिलने से हो गया था ।
तब जनसंकुल इलाके में कितनी एंबुलेन्स
हैं???
और उन एंबुलेनस में प्राथमिक
चिकित्सा की क्या आपात्सेवायें हैं??
हर कस्बे में अस्पताल में इमरजेन्सी इलाज
करने को कितना स्टाफ मौजूद
रहता है???
कितनी वैकल्पिक ऊर्जा ईंधन यातायात
सूचना और शमन व्यवस्थायें हैँ और
कितनी होनी चाहिये???
क्या मानक निर्माण हो रहे हैं सङक
होटल और जनसुविधा के भवनों के???
हरिद्वार में भीषण आग लगी थी ।
क्या सबक लिया
मनसा देवी पर भूस्खलन और भगदङ
हुयी क्या सबक लिया । कुंभ में भगदङ
हुयी क्या सबक लिया । रतनगढ़
माता पर अचानक सैकङों लोग बह गये
क्या सबक लिया । नौ चंदी मेरठ में
भयंकर अग्निकांड हुआ क्या सबक लिया ।
उत्तरकाशी में वारणावत पहाङ भूकंप से
ढहा था क्या सीखा । मानसरोवर
यात्रा में सैकङों यात्री दब गये थे
क्या सीखा ।
आये दिन होटल और बहुमंजिली इमारते
ढहती रहती हैं । कुछ साल पहले
मुख्यमंत्री के जाते ही लखनऊ का मंच ढह
गया था । तब हम वहीं थे बाल बाल
बचीं ।
एक राजनेता के साङी वितरण में
लाखों कुचले मरे थे क्या सीखा ।
हर आपदा
मानवीय भूल का ही दुष्परिणाम है ।
आप अभी इंटरनेट खँगालिये ।
देखिये कि भारत में भूकंप के खतरे वाले
इलाके सुनामी के खतरे वाले इलाके और
बाढ़ के खतरे वाले इलाके कौन कौन से हैं ।
इतिहास गूगल पर सर्च कीजिये कि आज
तक कब कब कहाँ कहाँ बाढ़ भूकंप बादल
फटने और सुनामी की दुर्घटनायें
हुयीं हैं!!!!!
लाल रेखा से इंगित खतरे वाले मानचित्र
पर निर्माण के मानक चिह्नित कीजिये
। देखिये कि ऐसी ज़ोन में रहने वाले
लोगों को भवन और सङक नालियाँ और
बिजली फिटिंग में क्या क्या शर्तें
पूरी करनी चाहिये!!!!
तो कैसे ये अवैध निर्माण चलते रहते हैं?
ये देश कमीशन खोर प्रशासक और
लालची पूँजीपतियों के राजनैतिक
संहठनों और सुप्तचेतना जनता का शिकार
है ।
सोचो आप पर आज शाम तक आने
वाली आपदा के लिये आप औऱ आपका हर
महक़मा कितना तैयार है???
क्या अब भी आप नहीं चाहते कि हर
नागरिक एक कुशल प्रशिक्षित
सिपाही बने?????
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Sudha Raje
सुधा राजे
Jun 23
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