Wednesday 16 October 2013

तिमिर नेह का भूखा।

Sudha Raje
तिमिर नेह का भूखा
रोज बुलाता तारे
दीप देहली पर धर धरके
साँझ सकारे
लेकिन भोर चले जाते
एकाकी करके
दिन भर कालकोठरी
रोता तिमिर हहर के
कभी न होगा तम
की पीङा का निर्वाचन
उजियारे का अभिनंदन है
तम का क्रंदन
जब गिरोह भर कर प्रकाश
अँधियारा लूटे
स्वस्तिवचन करते सूरज
का पंछी झूठे
दुर्लभ कुंद खिले तम के आँचल
में रोते
सदियाँ हुयीं अँधेरे अब तक
लानत ढोते
सुधा अँधेरों ने लिख्खी
सच की तहरीरें
झूठ भऱे आलोक शोर में डूबी पीरें
तम के होंठ सिंये रहते हैं
नन्हें तारे
चंदा सूरज दीप कहें ना
गरब के मारे
©®SUDHA Raje

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