Sunday 27 October 2013

जिंदगी कोई गुलाबी खत नहीं

ज़िन्दग़ी तेरा गुलाबी ख़त नहीं सपना नहीं ।


तल्ख़ियों ने ये सिखाया है कोई अपना नहीं ।


चाँदनी के छोर पर जलता हुआ तारा नहीं ।
सिर्फ़ शब ख़ेज़ी नहीं है वक़्त उजियारा नहीं ।

ज़िन्दग़ी कोई सुनहरा पर नहीं ना शायरी ।


लब सिले जलती हुयी आतश में पहली डायरी ।

जिंदग़ी धङकन नफ़स या ज़िस्म की हरकत नहीं ।

आँसुओं से तर ब तर वालिश पे ग़ुम बरक़त नहीं ।

अब सुधा कहना भी कहना सा मेरा कहना नहीं ।
जिंदग़ी कोई ग़ुलाबी ख़त कोई सपना नहीं ।
©®™ all the rights ®सुधा राजे 1:20AM

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