Friday 18 October 2013

रात गये

रात गये .

Sudha Raje
जाने किससे मिलने आतीं '
सर्द हवायें रात गये

बस्ती से आतीं हैं सिसकती
दर्द कराहें रात गये

दूर पहाङों के दामन में
छिपकर सूरज रो देता

वादी में जलतीं जब
दहशतग़र्द निग़ाहें रात गये


चाँद को लिख्खे चिट्ठी
ठंडी झील बरफ के
शोलों पे


ख़ामोशी से कोहरे की
फैली जब बाँहे रात गये

परबत के नीचे तराई में
हरियाली चादर रो दी


फूलों कलियों की गूँजी
जब गुमसुम आहें रात गये

कितने आदमखोर मुसाफिर
रस्ते से गुजरे होंगे

मंज़िल तक जाने से डर गयीं
लंबी राहें रात गये

पेङ तबस्सुम नोंच के खा गये
नाजुक नन्ही बेलों के

धरती रोती शबनम भरके
मौत की चाहें रात गये

प्यार वफ़ा के गाँव में
अमराई
पर लटकी लाशें थीं


सुधा" मुहब्बत छोङ के चल
दी
पीपल छाँहे रात गये
©®¶©®¶SudhaRaje
Jan 23।2012/

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