Wednesday 30 October 2013

हवा शरमाई सी क्यूँ है

Sudha Raje
कि जैसे छू लिया तूने ।
हवा शरमायी सी क्यूँ है ।
ख़ुमारी तेरी आँखों में अभी तक
छायी सी क्यूँ है ।
बहुत आहिस्ता गुंचा- बर्गो -शाखो-ग़ुल
को छूती है।
चमन में आई तो तेरी तरह
अलसायी सी क्यूँ है।
नज़र लब ज़ुल्फ़ अबरू पै इशारे ये तबस्सुम
ज्यूँ
लगे तेरी तरह मयनोश ये घबरायी सी क्यूँ
है ।
बहक़ कर लग्जिशे पा फिर सँभल कर
गुनगुनाती सी ।
अदा भी है अदावत भी ले यूँ
अँगङाई क्यूँ है।
""सुधा ""वो शोख बातें
सरसराती गोशबर
ख़ुशबू ।
तेरे आग़ोश में ग़ुम कसमसाती आई सी क्यूँ
है।
©सुधा राजे Sudha Raje
Dta-Bjnr
May 23

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