Thursday 24 October 2013

रस्ते पर मर जाना है

Sudha Raje
रिश्तों की दुनियाँ से आगे बढ़ कर देख
ज़माना है ।

मरना सीख लिया हो जिसने उसने
जीना जाना है ।

नफ़रत के बदले में नफ़रत प्यार के बदले प्यार करे ।

हमसे पूछो क़ातिल का घर दिल से रोज़ सजाना है।

सिर पर छत हो पेट में रोटी पैरों के नीचे धरती ।

तो फिर तुमने किया नया क्या
बस दिल को बहलाना है ।

जंज़ीरों का नाम नया था कंगल पायल नथ बिंदिया।

दीवारों से परे कोहकन साँसों से पिघलाना है।

बस्ती बस्ती वही मुहब्बत की झूठी बातें सुनकर ।

सपने देख जल गयी तितली
जंगल को कट जाना है ।

सूखे सूखे फूल महकते वरक वरक़ पर दरक उठे ।

नम आँखों की बूँद से कल तक ये अक्षर धुल जाना है।

रुको अभी वो बात बतानी थी जो शब्द नहीं कहते
अंगारों पर फूल खिले हैं और मुझे मुस्काना है।

जाने कैसे पा गये वे सब अपनी मंज़िल
बस यूँ ही

हमने राह बनायी थी पर रस्ते पर मर जाना है ।

सुधा समय की रेत ही नहीं क़िस्मत के
पत्थर पर लिख।
बाक़ी सोज़
दिलों की जिंदा जलता वही तराना है।
©®™सुधा राज

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