Wednesday 30 October 2013

सुधा कहानी लहू भरी लिखती हूँ जो अ'श'आरो

Sudha Raje
Sudha Raje
बेशक मेरा नाम नहीं पहचान
नहीं अखबारों में ।
लेकिन जब जब जो देखेगा
कहे पली अंगारों में ।
मँझधारों का रूख मैंने भी मोङा बिन
पतवार लिये ।
गाज़ा नहीं लहू है दिल का लबो दहन
रूख़सारों में।
देख आईने सहम न
जाना इतनी तीखी तब्दीली ।
बुनियादों की ईंटेँ लेकर फिरते हम
बंजारों में।
कलम चलाना भी कुदाल भी आग
जलाना बंदूकें
छाती से बच्चे बाँधे है जूझे भी तलवारों में।
हम अपने वीरान खंडहर मन वन रोज़ जिये ऐसे ।
जैसे संदल शजर महकते साँपों के संग ख़ारों में
एक न इक दिन कोई तो आकर
पुर्जे दिल के पढ़ लेगा ।
सुधा""कहानी लहू भरी लिखती हूँ मैं
अशआरों में ।।।
©सुधा राज
May 24

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