Tuesday 29 October 2013

परछांई

Sudha Raje
2 minutes ago ·
अंतस के नटरंगमंच पर सब आ आ कर चले गये

बचे खुचे थे दीप यवनिका के गिरने तक जले
गये ।
छले गये जो ढले आँसुओं में अभिनय
की माया है ।
©®™सुधा राजे
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Sudha Raje
11 minutes ago ·
मेरे साथ सदा ही चलता रहा निराकृत
एकाकी।
अनाहूत निर्लिप्त हृदय में कौन
कहाँ टिक पाया है ।
©®™सुधा राजे
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Sudha Raje
16 minutes ago · Edited ·
वो मेरी परछांईँ थी या ये मेरी परछांई
है ।
मैंने तो हर बार स्वयम को निराकार
ही पाया है ।
©®™सुधा राजे
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