Thursday 17 October 2013

हम औरत है घूरा

Sudha Raje
Sudha Raje
Sudha Raje
थोङा थोङा रोज़ मरे
तो कभी मर गये पूरा
हम औरत हैँ मुरदा बाबू
हम कूङी और घूरा
शहर रहे तो रहे फूलदान से
भये देहात बिटूरा
हम औरत है मुरदा बाबू
हम कूङी और घूरा
काहे का ये
का रोना धोना
पेट मरें या मरे बिछौना
मार मार कर मरे न मरती
मुई मौत भी करे खिलौना
औरत के मरते क्या रोना
जी जंजाल धतूरा
हम औरत हैं मुरदा बाबू हम
कूङी और घूरा
किलस किलस कर
पाली जावै
बिन माँगे जनमे जी जाबे
बढ़ै हाङ सी ताङ न चाहैँ
कितना बचा खुचा ही खाबै
मरन मरन की मन्नत खुद
ही माँगे
जिये अधूरा
हम औरत हैं मुरदा बाबू
हम कूङी और घूरा
पकङे इकले जबर कलाई
नोंचे खाबे स्यार कसाई
बाहिर रखते कुकुर खसोटें
भीतर मूस दूर के भाई
गुँथे हुये आटे सी किस्मत
सेंक जले भरपूरा
हम औरत है मुरदा बाबू
हम कूङी और घूरा
हमरी इज्जत का है?
बताशा!!!
जो भी खाये करे तमाशा
बाहर का जो लूटे कोई
चाहे शौहर तोङे आशा
धूल में मिलना मिलके
होना बूरा चकनाचूरा
हम औरत हैं मुरदा बाबू हम
कूङी हम घूरा
कोख हमारी खेत खतौनी
संताने परगेह पठौनी
नाम गाम क्या है
हमरा जी
परदेशी की पर घर
की होनी
ना माटी ना धान
ना गहना ना गुरिया ना धूरा
हम औरत हैं मुरदा बाबू
हम कूङी और घूरा
जीने का हक़ है का हमको
माँगे जो भी पूत बलम को
गंदा घर का साफ करें हम
ढोयें जुलम को सङे नियम
को
फेंकें बाबुल परदेशी घर
वो राखै मज़दूरा
बाबू
हम
कूङी
हम
घूरा
बाबू
आज मर गये पूरा
©®¶©®
Sudha
Raje
Dta★Bjnr
Feb 12

No comments:

Post a Comment