Monday 28 October 2013

हमारे मर्ग़ पे भी आँख नम नहीं रखता

Sudha Raje
हर एक शख़्स मोहब्बत का दम
नहीं रखता।

दर्द आमेज़ राह पर क़दम नहीं रखता ।

वो एक शै कि जिसे इश्क़ कहा करते हैं ।

ख़ुदा के बाग़ में हव्वा अदम नहीं रखता।

जिसे है कुछ भी तमन्ना ज़हां में पाने की।

वो अपने दिल में युँ क़ाफ़िर सनम
नहीं रखता।


ये लौ है ऐसी बुझाओ तो औssर भङके है ।

विसाले यार की हसरत ये ग़म
नहीं रखता ।

कहाँ वो शख़्स जिसे ज़िन्दग़ी सुधा समझा।

हमारे मर्ग़ पे भी आँख नम नहीं रखता।

वफ़ा की ज़िद में कोई आग़ से नहाये ज्यूँ ।

दुआ को जिसके कोई है वहम नहीं रखता ।
©®सुधा राजे
Sudha Raje
at 7:59pm
Jun 29

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