Friday 25 October 2013

रो बैठे

सबके ग़म की भीङ में अपना दर्द भुलाकर
रो बैठे ।
इक अंजानी बच्ची पथ पर गले लगाकर
रो बैठे ।
लबे सङक हर उजङी कुटिया आप
कहानी बयाँ करे ।
जले गाँव में सब घर की तसवीर दिखाकर
रो बैठे ।
रात रात भर पके "खथा' से दूखे नयन
नहीं सोये .(Foda)
भोर पहरुये बस्ती को झकझोर जगाकर
रो बैठे ।
सुधा जहाँ तक नज़र सोचती मिले
कारवाँ दर्दों के ।
दिल के दुखते घाव बदन
की पीर छिपाकर रो बैठे ।
©®SudhaRaje
जंगल जंगल खबर फैल गयी जब जब आये
शिकारी कुछ।
चंद रोज़ बच्चों को दाने नीर चुराकर
रो बैठे
Sunday at 8:24pm8-8-2013

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