सुधा राजे का लेख --""तेरे पास जीने केलिए क्या है लङकी??""(भाग सात)

एक बहुत बङे कार्यकारी संपादक हैं कई लेख बढ़िया लगे ।
परंतु हमने उनको फेसबुक पर "अनफ्रेंड दिया "

केवल ये विरोध जताने के लिये कि
उनके लेख """"महिलाओं को जॉब नहीं करनी चाहिये घर पति बच्चे सँभालने चाहिये ""

के कुतर्क के लिये घोर विरोध पर """""क्योंकि ये ""
"महिलाओं के लिये ये होना वो होना नहीं होना चाहिये """वाला फतवा ही
दुनियाँ बनने के दिन से आज तक की दुर्दशा का जिम्मेदार है """
""जब कोई औरत विधवा हो जाये तो कहाँ से अचानक जॉब मिलेगी??
दस हजार रुपये की मामूली विधवा राहत तक को प्रधान और विधायक चेयरमेन खा जाते हैं ।
पाँच सौ रुपये की मामूली विधवा पेंशन बनवाने तक को रिश्वत माँगी जाती है ।

पति ससुर अचानक धकेल भगायें तो किस टप्पर के नीचे रात बितायें?

पति दूसरी तीसरी कर लें तो किसके घर शरण माँगे??

मायके में किसी की माँ विधवा होकर बेटों पर बोझ तो कहीं बाप बूढ़ा बीमार
बहू का मोहताज??

किसी के भाई है ही नहीं तो किसी के भाई को बहिन फूटी आँखों नहीं सुहाती??

किसी की जीजी ही दुश्मन तो किसी का जीजा चाचा मामा फूफा ही आबरू की भूखा
प्यासा पिशाच??

फिर इतनी मँहगाई में पति की मामूली कमाई से कैसे ""निजी मकान बनवायें ""
कैसे कार खरीदें? कैसे इनवर्टर जेनरेटर और एयर कंडीशनर वाशिंग मशीन
खरीदें मिक्सर ग्राईंडर ओवेन गैस और सबमर्सिबल लगाये??

अगर
नहीं खरीदें तो कैसे जीयें लज्जित शर्मिन्दा और चक्की सिलबट्टा मूँगरी
लकङी और राख के सहारे आधुनिक पङौसियों के बीच??

या केवल सबको पुश्तैनी महल ही मिल जाते है विवाह के साथ??

और क्या सब पीढ़ी दर पीढ़ी धनिक ही धनिक रहें गरीब गरीब ही रहें??

आज बच्चों का भविष्य केवल परवरिश की अच्छी खुराक बढ़िया रहन सहन और कपङे
जूते खिलौने बसते किताबें तीन चार ट्यूशन बढ़िया स्कूल कॉलेज और मँहगी
व्यवसायिक शिक्षा पर ही निर्भर है ।
तब?? क्या बच्चों का काम केवल दूध पिलाने और पोतङे धोने वाली माँ से चल जायेगा??

आज बहुत मायने हैं धन के "एक ऐसा घर जिससे कोई उस स्त्री को धकेल कर
मारपीट अपमानित या कानूनी बेदखल करके न निकाल सके ।
एक घर जिसको वह अपने जीवन यापन, बुढ़ापे की पेन्शन और प्रौढ़ावस्था के
बचे खुचे अरमान पूरे करने के लिये किराये पर कुछ कमरे देकर एक न्यूनतम
निश्चित धन प्राप्त करती रह सके ।
एक घर जो हो उस स्त्री के ही नाम पंजीकृत । जिस घर में उसका अपना एक निजी
कक्ष हो जिसमें उसके लिये मेज कुर्सी ईजी चेयर और टॉयलेट सैट हो । बेड हो
और पर्याप्त आलमारियाँ हो खिङकियाँ रोशनदान बालकॉनी और पढ़ने लिखने के
लिये पर्याप्त एकान्त भी हो ।

विवाहित होने का अर्थ हर समय कमरे में मँडराता डिस्टर्ब करता और हुकूमत
चलाता खर्राटे भरता या सामान बिखेरता पति झेलते रहना कतई नहीं है ।
पति पत्नी के दो अलग अलग कमरे होने से दोनों जब अपने लिये लिख पढ़ सोच
सकते हैं और निजी चीज़ें प्रबंधित व्यवस्थित रख सकते हैं । एक "पर्सनल
स्पेस "सृजनात्मक लोगों को मिलता है और कलह की गुंजाईश और थोङी कम हो
जाती है ।
ये निजी कमरा न तो संतान को देना चाहिये न पति को न मेहमान को ।
चाहे बङा घर हो या छोटा ।
स्त्री को स्त्री के नाम से घर कैसे मिले? सरकारी नौकरी वाले पुरुषों और
मंत्री विधायकों के सिवा बहुत कम पुरुष होते हैं जो मकान ज़मीन पत्नी के
नाम से खरीदना पसंद करते हैं ।
दहेज प्रथा में एक नया ट्रैण्ड आया है ऊँची जॉब वाले ग्रामीण लङके दहेज
में ससुर से नगर महानगर में प्लॉट या फ्लैट खरीदने की माँग करने लगे हैं
और चाहते हैं कि बैनामा लङके के नाम ही किया जाये जबकि लङकी वाले मकान
बेटी के नाम लेना पसंद करते हैं ।
सोचो!!!!!!!!!
जब होने वाले पति की शर्तों में दहेज बङा है पत्नी मामूली बात तब तो जरूर
सोचो कि आर्थिक संकट के समय वह पैसे का भूखा परिवार कितना साथ दे सकता है

पहली बात तो व्यक्तिगत तौर पर हम मानते है कि दहेज जो माँगे उससे शादी
करनी ही नहीं चाहिये ।
दूसरी बात ये कि तब भी कर रहीं है तो ""अपना हाथ जगन्नाथ "
मानकर चले अपना पृथक एकाउंट पृथक लॉकर पृथक आलमारी और स्टोरेज के अलावा
आर्थिक सुरक्षा का विशेष खयाल रखें ।
पति कोई सुपर मैन नहीं न ही कोई भगवान होता है । वह बीमार पङ सकता है
घायल हो सकता है नौकरी छूट भी सकती है और स्वभाव बदलने पर विवाह टूट सकता
है या आर्थिक संकट पर परिवार मुसीबत में पङ सकता है ।
बच्चों के लिये भी अनेक माँओं को पिता और माता दोनों ही बनना पङता है ।और
बच्चे बङे होने उनकी शादियाँ होने नाती पोते होने से भी जीवन पूरा नहीं
हो जाता ।
अगर किसी स्त्री की वृद्धा वस्था सत्तर से सौ साल पार तक की लंबी हो जाये
तो कष्ट झेलकर पाली संतान भी ऊब जाती है ।
किंतु ""मोटी पेंशन और स्त्री के नाम मकान है तो वह बुढ़ापा चैन से कटता
है । वह अपने लिये सेहत मंद भोजन दवाईयाँ और रहन सहन जुटा सकती है ।
इसीलिये हमारी सबसे पहली सलाह रहती है "पहले जॉब फिर शादी "और जॉब कभी मत छोङो ।
पहला बच्चा भी शादी के दो साल बाद
करो । ताकि सब कुछ समझ में आ जाये परिवार जॉब समाज अपनी पोजीशन और बच्चा
होने पर आने वाली ज़िम्मेदारिया ।
एक से दूसरे बच्चे में पाँच साल का अंतर भी जरूरी है ताकि बङा बच्चा
स्कूल जाने लगे और खुद के सब कामकाज खुद करने लगे ।
अगर बच्चे के दादा दादी नाना नानी या अविवाहित बुआ है तब परवरिश आसान हो
जाती है किंतु अगर ग्रैण्ड पेरेण्ट्स नहीं हैं तब जॉब और बच्चे की
ज़िम्मेदारी "
"पति को भी सौंपें "
वैसे भी विज्ञान घोषित कर चुका है जो पिता बच्चे की परवरिश में माता की
तरह बच्चे के काम करते हैं वे लंबी आयु तक जीवित रहते हैं ।
स्वालंबी होना
न केवल अपने लिये वरन् पति बच्चों और समाज के लिये भी जरूरी है ।आप को
प्रकृति ने कुछ हुनर दिये हैं उसको प्रकाश में लाना आपकी भी बल्कि आपकी
ही जिम्मेदारी है ।

©®सुधा राजे

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Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

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