सुधा राजे का लेख- भरोसे की जङ में अविश्वास का मट्ठा।(भाग-2)

कई बार लङकियाँ सहेलियों के साथ कहीं भी आने जाने से कतरातीं नहीं हैं
सर्वधर्म समभाव की भावना वाले परिवार ऐसे
""सखी सहेली पन पर कोई ऐतराज भी कैसे करें ""

किंतु हम में बहुत से लोग ये बात जानते हैं कि भीतर ही भीतर
''कई दुष्ट ताकतें विदेशी और देशी मदद के चंदे से इस बात पर सक्रिय हैं,
कि अधिक से अधिक मूर्ति पूजक हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराया जाये ।
ईसाई चाहते हैं सारी दुनियाँ ईसाई हो जाये ।
मुसलिम चाहते है संसार का हर आदमी मुसलमान ही हो ।
कमोबेश ""सनातन हिंदू को छोङकर सभी धर्म साम दाम दंड भेद से 'हिंदू धर्म
पर चुपके चुपके या ज़ोर जबरिया या बरगला फुसला ललचा और ""प्रेम विवाह
"आदि या सत्ता के भय और रोजगार रोजी रोटी इलाज के लिये "
धर्म परिवर्तन कराते रहे हैं ।

सबसे सॉफ्ट तरीका है प्रेमजाल में फँसाकर धर्म परिवर्तन कराना ।

क्योंकि
मुसलिम लङकी अगर ग़ैर मुसलिम से शादी करती है तो हराम है शादी बच्चे सब
होने पर भी और वह किसी भी स्तर पर विवाहिता नहीं मानी जायेगी
अगर उसका विधर्मी प्रेमी धरिम परिवर्तन करके मुसलमान बन जाये तो ही उसकी
शादी "जायज है इसलामी कानून से ""

इसी तरह कोई दूसरे धर्म की लङकी अगर मुसलिम से शादी करना चाहे तो उसको
""हर हाल में इसलाम कुबूल करना होगा ।

अनेक
हिंदू लोगों ने बहुविवाह के लिये इसलाम अपनाया कागज़ में और व्यवहार में
हिंदू बने रहे ।

यहाँ तक कि दरग़ाह ले जाकर मुराद पूरी कराना फाल निकलवा कर "घरेलू
समस्याओं पर मौलवियों से ताबीज गंडे और तागे धागे बँधवाना "

एक किताब कही से पतली सी हाथ लगी थी जिसमे """हजरत मोहम्मद को "कल्कि
अवतार घोषित करके ""

एक ही ईश्वर है घोषित किया गया ''


औऱ उपदेश दिया गया कि अनेक भगवान पूजने वाला आदमी उस बीबी की तरह है जो
सबको शौहर मानती हो ।

ऐसे तर्क

कच्ची बुद्धि के लङके लङकियों को बरगलाते है ।

कारण कि गहराई से हिंदू धर्म को उन लङके लङकियों को पढ़ाने समझाने की डोर
टू डोर घऱ घर व्यवस्था नहीं है ।


वे लङकियाँ जो घर से कुछ पीङित और अपने धर्म के बारे में कम जानकार और
सपने बङे कमजोर आर्थिक हालात
वाली होती हैं ।

उनको छोटी मोटी सुविधायें मदद और आर्थिक सहायता

से रिझाना मामूली बात है ।
अनुयायियों की संख्या का विस्तार हिंदू सनातन वैदिक धर्म के अलावा लगभग सभी धर्मों
की मुख्य नीति है ।

और आज ये काम मदद सहायता शिक्षा इलाज दोस्ती के नाम पर करने वाले लगभग
सभी धर्मों में सक्रिय हैं ।

खतरनाक
हर बार नहीं भी होता है मामला किंतु


भारतीय स्वाधीन प्राचीन संस्कृति के खिलाफ तो है ही ।

ऐसी बातें डर पैदा करती हैं ।
लोग दूसरे धर्म की लङकियों लङकों के साथ बेटे बेटियों को पढ़ने और दोस्ती
करने देने से डरने लगेंगे ।

एक बार हमारी सहेली की बेटी ने किशोरावस्था में उर्दू पढ़ने की इच्छा की,

कुछ पङौसी मुसलिम लङकियाँ सतर्कता से कानाफूसी में पूछने लगीं क्यों?
क्या मुसलिम बनना चाहती हो?
वे खुश हो गयीं कि एक हिंदू लङकी को मुसलिम बनाने का मौका है ।
सहेली ने मज़ाक में कह दिया सब एक ही परमात्मा है हिंदू क्या मुसलमान
क्या, हम तो इसलाम की भी उतनी ही इज्जत करते है जितनी अपने धर्म की


एक
लङकी बुलायी उर्दू पढ़ने को
तो वह हर पेज के बात ""इसलाम की खूबियाँ और हिंदू धर्म की बुराईयाँ बताने लगती ।

पढ़ने से पहले वुजू करने को कहती ।

और कानों कानों ये बात फैल गयी कुछ हाफ़िज़ों तक कि एक परिवार को इसलाम
में बहुत रुचि है वह कुरान पढ़ना और उर्दू सीखना चाहता है ।

इन सब बातों से अनजान वह बच्ची उर्दू पढ़ती रही ।
पढ़ाने वाली ने एक दिन उसको "नमाज़ " अदा करना और स्त्री पुरुष के नमाज़
के तौर तरीकों का अंतर भी सिखाया ।

टीचर लङकी उस लङकी को शॉपिंग के बहाने एक मौलवी के पास भी ले गयी
आशीर्वाद देकर शाबास देते हुये मौलवी ने पढ़ने वाली लङकी की पीठ पर जिस
ढंग से हाथ फेरा वह उसको बुरा लगा ।

घर आकर उसने सारी बात माँ को बतायी ।
माँ ने अगले दिन टीचर को डपट दिया कि तुम्हें पढ़ाने को रखा था कि बरगलाने को?

कोई उर्दू पढ़ने या नमाज़ का अर्थ और अदा करने का तरीका सीखने से मुसलमान
नहीं हो जाता ये तुम्हारी मूर्खता है कि तुम सोचती हो कि इस तरह तुम किसी
लङकी को मुसलमान समझने लगो कि वह नमाज सीखने के लिये कलमा बोल देती है और
सिजदा करना सीखती है!!!

दफा हो यहाँ से । तुम जैसी लङकियाँ ही भेदभाव डर अविश्वास और घृणा फैलातीं हैं ।



उर्दू मुसलिमों की जागीर नहीं एक भाषा है भारत में बनी है और किसी भी देश
की किसी भी भाषा को सीखने से किसी का

""इरादा धर्म बदलने का है ये कोई सोच सकता है तो वह कुछ भी सोच सकता है ।

जितने मुसलिम संस्कृत पढ़ते है वे हिंदू बनना चाहते हैं?
या जितने मुसलिम इंगलिश पढ़ते बोलते हैं वे "
"क्रिश्चियन "
बनना चाहते हैं?

बात बीत गयी

तब से वह माँ सावधान रहने लगी कि कहीं कोई मुसलिम लङका लङकी सहेली दोस्त
न बने उसके बेटे बेटियों के ।

©सुधा राजे।

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Sudha Raje
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