सुधा राजे का एक विचार:- ""धिक्कार""

कहाँ चली जाती है तुम्हारी आस्था?
नैतिकता
धर्म
और परमात्मा
जब एक ही मजहब धर्म के लङके
लङकियों का पीछा करते हैं, '
जब उनको सीटी बजा कर आँखें
मिचकाकर, गंदे इशारे करके, और अंग
छूने की जबरन हरकर करके कपङे
खींचकर, गंदे शब्द बकते हैं, '
???
थर थर काँपती है जब माँ ट्यूशन स्कूल
अस्पताल बाजार और दफ्तर भेजते, '
जब हिंसक पिशाच की तरह ये लङके
अपने ही मजहब की लङकियों से
जानबूझ कर वाहन टकरा देते हैं और वे
भरे बाजार शर्मिन्दा होकर
रो पङती है,
थर थर काँपता है
बूढ़ा पिता युवा बेटी को कहीं भी साथ
लाने ले जाने से, '
तब खून क्यों नहीं उबलता मेरे
मुरदा नगर का?????
मैं पूछना चाहती हूँ, 'सब
आस्तिक धार्मिक दीनदारों से
कि तुम्हारे घर की लङकियों के
सिवा बाकी सब क्या तुम्हारी हवस
काम वासना के लिये
पैदा की गयीं माँस
की पुतलियाँ हैं??????
तो तुम ही हत्यारे हो अपने घर
की लङकियों के सपनों और हुनर के ????
तुम उनके लिये निर्मित करते हो नये
राक्षस ???
तब कहाँ चला जाता है
'तुम्हारा पुरुषत्व??????
जानते
हो तुम्हारी घिनौनी हरकतों से
कमजोर परिवारों की होनहार
लङकियाँ डर कर घर
बिठा दीं जातीं है??
बेमेल शादियाँ कर दीं जातीं है
असमय??
और
कितनी ही तो आत्महत्या कर लेती है
या आजीवन कारावास में बंद कर
दीं जातीं है??
धर्म के नाम पर पौरुष???
और नैतिकता के नाम पर???
क्या है तुम्हारे मुरदा ज़मीरों में??
लाशें नोचने वाले गीध से भी गये बीते
हो तुम
लानत्त, '
उस दीन धर्म मजहब पर
तुम पर
उस परिवार पर
जिसमें ऐसे भयानक राक्षस जन्मते
पलते हैं ।
©®सुधा राजे।

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Sudha Raje
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