Wednesday 27 August 2014

सुधा राजे का लेख ---"""संगठित सामाजिक आपराधिक षडयंत्र ::और स्त्रियाँ ::- एक नज़र।।""""

संगठित सामाजिक आपराधिक
षडयंत्र ::::::::और स्त्रियाँ ::एक नजर
★★★★★सुधा राजे ★★★★★★
आदिमानव गुफाओं में रहता था और और
पशु पक्षियों की भाँति ही शिकार
करता घर की जगह गुफा और
झोपङी बनाता नग्न रहता जोङे
बनाता संतान उत्पन्न करता और
परिवारों के समूह में रहता ।आज
भी भारत
अफ्रीका अमेरिका ऑस्ट्रेलिया में ऐसे
अनेक कबीले यूँ ही रहते हैं ।जिसमें
स्त्रियाँ भी वैसी ही और
उतनी ही स्वतंत्र और अधिकार
सम्पन्न है जितने कि पुरुष
बल्कि संतान की वजह से कुछ अधिक
ही सुरक्षा और अधिकार पाने
की अधिकारिणी हैं ।
किंतु जैसे मानव सभ्य होता गया, वह
संपत्ति और रहन सहन के नियम
रचता गया, एक शक्तिशाली संपन्न
व्यक्ति का आचरण प्रेरक बनकर दूसरे
शक्ति पाने के इच्छुक सब लोगों ने
बिना सोचे समझे
अपना लिया जो रूढ़ि और
परंपरा रीति और रिवाज़ बन गया,

आज का भारत, विविध संस्कृतियों के
मिश्रण से टूट बिखर कर
रचा बसा भारत है जिसमें, वर्तमान
में एक ओर तो स्त्रियों को संविधान
में विशेष अधिकार और
विधि विधायन में विशेष संरक्षण
प्राप्त है तो दूसरी ओर, पूरा देश
स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों से
त्राहि त्राहि कर रहा है ।
लङकियाँ अंतरिक्ष में हैं,
लङकियाँ पायलट है ड्राईवर है,
खिलाङी है, शार्पशूटर हैं सर्कस में है
जिमनास्टिक में हैं सैनिक हैं जासूस हैं
पत्रकार लेखक वकील जज डॉक्टर
नर्स शिक्षक व्यापारी मैनेजर
वैज्ञानिक इंजीनियर कलाकार फिल्म
निर्माता निर्देशक
अभिनेत्री नृत्यांगना कलाकार
""""""सबल और स्वावलम्बी सब कुछ
हैं,,
तो दूसरी ओर आज भी ""घरेलू हिंसा,
पर्दाप्रथा, दहेजप्रथा,
कन्याभ्रूणहत्या 'बालविवाह,
कौमार्य पवित्रतता की अवधारणा,
छेङछाङ, रैगिंग बुलीईंग, बेटी बेटे के
पालन पोषण में भेदभाव,
लङकी वालों को दयनीय हीन समझने
और वंश दीपक, पिंडदान, कुलगोत्र
का नाम चलाने, गैंग रेप,, अपहरण
करके बलात्कार और वेश्यावृत्ति के
लिये बेच देना, भीख मँगवाने और
नाचगाने, खाङी देशों में पैसों के बदले
हरम में भेजने और बेटा न पैदा करने पर
घर पर अत्याचार दहेज न देने पर घर
पर मारपीट और अपमान से हाहाकार
करती तसवीर पर
अत्याचारों की कलंकगाथा की पात्र
हैं ।
सामूहिक बलात्कार 'एक नया और
घिनौना अपराध है
जो मानवजाति पर
ही नहीं प्राणि मात्र पर
बदनुमा कोढ़ है, 'कैसे कोई
व्यक्ति सबसे पहले
तो किसी स्त्री की इच्छा के
विपरीत उसे
रोता तङपता चीखता बचाव
को मदद माँगता देखकर भी यौन सुख
महसूस कर सकता है!!!!
उस पर भी जिस मानव समाज में
जाति, धर्म, भाषा, कुनबा, और
क्षेत्र तक पर कोई एक व्यक्ति दूसरे
से सहमत नहीं हो पाता, विवाह
करना मना कर देता है वहाँ,, कुछ
स्त्रीभक्षी नरपिशाच आपस में
योजना बनाकर साजिश रचकर
किसी स्त्री को जबरन अपहृत करके
उसको सामूहिक बलात्कार करने पर
राज़ी हो जाते हैं!!!! तब न घिन
लगती है न दया न पाप का डर न
अल्लाह ईश्वर य़ीशु ख़ुदा गुरू और
परमात्मा के दंड नर्क दोज़ख हेल्ल
की परवाह!!!! एक दोस्त दूसरे दोस्त
का मजहब जाति अलग होने पर
जूठा पानी पीने से इंकार कर देता हैं
जिस देश में वहाँ अलग अलग जाति और
मजहब पंथ के लोग एक अलग
जाति की स्त्री का बलात्कार करने
को सहमत ही नहीं प्राण और मृत्युदंड
आजीवन कारावास और सामाजिक
बदनामी से भी नहीं डरकर, क्रूर से
भी क्रूरतम अपराध पर उतर आते है!!!
कोई भी, मन मस्तिष्क
वाला व्यक्ति हत्या 'चोरी 'डकैती '
लूट 'जेबकतरी 'वेश्यावृत्ति 'तक
को हालात परिस्थिति के मद्देनज़र
जस्टीफाईड कर सकता है ',किंतु
'सामूहिक बलात्कार, बलात्कार,
छोटी बच्चियों से बलात्कार घर
की बहिन बेटी बहू 'भांजी'
भतीजी 'साली 'भाभी, सास, बुआ,
आदि से बलात्कार को कैसे जस्टीफाईड
कर सकता है!!!!!
यह क्रूर से क्रूर से क्रूरतम अपराध है
और हर मज़हब हर धर्म हर संविधान
में वर्जित निंदित दंडनीय पाप भी है

लोग आज मजहब को लेकर तनाव बढ़ाते
हैं, झुंड के झुंड निकल आते हैं मसज़िद के
नाम पर मंदिर के नाम पर
कब्रिस्तान के नाम पर श्मशान के
नाम पर, जुलूस 'माईक लाउडस्पीकर
और धार्मिक यात्रा प्रदर्शन के
नाम पर, ' किंतु दामिनी कांड के
पहले तक कभी किसी तरह का विरोध
प्रदर्शन पूरी ताकत से "बलात्कार के
विरुद्ध "भारत में तो क्या एशिया के
किसी भी देश में नहीं हुआ, '
भारत विभाजन में तो नफरत ज़ाहिर
करने का बर्बर तरीका ही यही सबसे
अधिक
रहा कि परधरमी स्त्रियों का बर्बर
बलात्कार और क्रूरतम तरीके ये
यौनांगों को काट डालना और
तङपा तङपा कर मारना ',!!!
ये सब घिनौने वीभत्स तरीके ईज़ाद
किसने किये????निःसंदेह पशु
पक्षी कतई ऐसा नहीं करते
उनका ऋतुकाल होता है, और
जोङा बनाने की नैसर्गिक
प्रक्रिया होती है, कुछ जोङे बदलते
रहते है हर ऋतु काल में तो अनेक पशु
पक्षी आमरण आजीवन सदैव एक
ही जोङे में तक रहते पाये गये और एक
परिवार कुनबा समूह बनाकर जीवन
यापन करते हैं '
तब? नर बलात्कारी को पशु
कहना पशु का भी अपमान है ।
स्त्री के प्रति वाचिक यौन हिंसा से
मनोग्रंथि ग्रस्त लोग।
ये एक सामान्य बात नहीं है कि कुछ
पुरुष बालिग और नाबालिग एक
योजना बनाकर स्त्री अगवा करके
सामूहिक रेप करके बर्बर तरीकों से
मार डालते हैं यातनायें दे देकर
''सवाल उस मानसिकता उस परिवार
के माहौल उन दोस्तों के शौक पेशे और
परवरिश पर भी उठता है ।
जैसा कि हर
बलात्कारी किसी स्त्री की संतान है
स्त्रियाँ उसके घर कुनबे और पास
पङौस में है । ऐसे अपराध को केवल
दैहिक कामवासना का चरम
नहीं कहा जा सकता,
क्योंकि भूखा मनुष्य भी मानव माँस
नहीं खाने लगता जब तक
कि वैसी मांस भक्षी मानसिकता के
लिये अनुकूल माहौल में न पला हो और
वैसा होता देखा सुना न हो ।
मतलब??
मतलब ये कि जितनी अधिक
हिंसा बच्चा माता बहिन
भाभी दादी काकी मौसी बुआ पर
की जाती हुयी बचपन से देखता है
परिवार के पुरुषों द्वारा वह "नर
"होने के कारण मात्र से स्त्रियों पर
हिंसा करना सही मानने लगता है ।
जिस परिवार में रोती पिटतीं मार
खाती तङपतीं और
बङों की गुलामी करतीं स्त्रियाँ
अधिक नारकीय जीवन जीती है, उनके
बच्चे "नर "होने के बोध से उतने
ही अधिक पाशविक मानसिकता से भरे
जाते हैं । बचपन में
पिता बुरा लगता है माँ पर
दया आती है किंतु जैसे जैसे
मनमानी करने के अवसर मिलते जाते
है, पुरुष होने की सुविधायें सेवायें
मिलती जाती है, हिंसक भावनायें
बुरी नहीं लगतीं और जब एक से दो एक
जैसे लङके मिलते हैं वहीं संस्कार
नैतिकता कमजोर पङ जाती है ।
जितनी अधिक खबरें सूचनायें और
आपराधिक
वारदातों की कहानियाँ ऐसे
लङकों की जानकारी में
बढ़ती जाती है बजाय मन सिहरने और
स्त्री मात्र को बचाने की भावना के
',ऐसे नरपिशाच कुभाव से भरे पुरुष, खुद
को बचाने वाले की बजाय
'बलात्कारी की भूमिका में कल्पित
करने लगते हैं ।नशा, और निठल्लापन,
शिक्षा की प्रॉपर तरीके से पूरी न
होने की समस्या और
अमीरी गरीबी की खाई के कारण
मिली हीनभावना या श्रेष्ठता की
अहंकारिता काष्ठ पर पेट्रोल
छिङकती रहती है ।इसी पर पोर्न
फिल्में जो अब मोबाईल पर ही देख
लेना उपलब्ध होने लगा है,
सीडी डीवीडी गाँव गाँव कसबे नगर
महानगर सब जगह उपलब्ध है और
तो और टीवी सिनेमा सब जगह
बलात्कार के दृश्य आम बात है और पत्र
पत्रिकाओं सीरियल और पोस्टर पर
हर जगह नग्नता से भरे मॉडल्स के
चित्र और विज्ञापन ''पेट्रोल
भीगी लकङी को आग दिखाने का काम
करते हैं ।
नशा किया मौज के लिये, गैंग
बनी नशा और खाना पीना फिल्म सैर
सपाटे के नाम पर, अब
भङकी हुयी जुनूनी कामवासना के लिये
चाहिये बस लङकी, सबसे आसान
शिकार लङकी दोस्त की गर्लफ्रैण्ड,
घर पङौस की लङकी,
अकेली दुकेली देर
रात्रि की यात्री कलीग
या सहकर्मी, और आप आँकङे देखें
कि अधिकांश बलात्कार, एक
या दो की संख्या में अकेली पाई
गयी लङकी, का परिचितों ने
किया है, या कस्टडी में ऐसे अपराध
जो स्त्री अभिरक्षक थे 'पिता,,
शिक्षक,, वार्डन,, जेलर
या सिपाही,, थानेदार या स्टाफ,,
डॉक्टर कंपाऊण्डर या बार्ड बॉय,,
ड्राईवर कंडक्टर या क्लीनर,,
दुकानदार,, हैल्पर,, या कारीगर,,
दंगों में भी सामूहिक बलात्कार
ही सबसे जघन्य अपराध के रूप में
सामने आते हैं और
बहाना मजहबी प्रतिशोध
घृणा रहती है किंतु यह साबित हुआ
बार बार कि दंगों में दो तरह के
अपराध करने वाले ""पहले से ही मन
मस्तिष्क से अपराध के लिये तैयार
रहने वाले आपराधिक मानसिकता के
मौकापरस्त लङके थे, जो घर जलाने के
बहाने कीमती सामान लूटकर ले
जाना,
विरोधी की रोजी रोटी का जरिया
मकान दुकान मशीन लूटकर
जलाना और
लङकियों औरतों को बलात्कार करके
विरोधी का अपमान करने और
बदला लेने की हिंसा करने
की पैशाचिकता से भरे हुये थे ।
मुजफ्फरनगर में एक एक्नानबे साल
की जर्जर वृद्धा का बलात्कार पोते
की आयु के युवक ने
किया वृद्धा बिस्तर पर
पङी पङी कुछ दिन बाद मर गयी ।
हरिद्वार में एक हाथ वाली सत्तर
साल की वृद्धा का बलात्कार पुत्र
की आयु के युवक ने किया हर
की पैङी पर, दामिनी के
बलात्कारी अलग अलग जाति मजहब
और गाँवों के लोग थे जिनमें सबसे क्रूर
पिशाच नाबालिग था, मुंबई पत्रकार
का बंद पङी मिल परिसर में
बलात्कार करने वाले में भी अलग अलग
मजहब और जाति के लङके थे जिनमें एक
नाबालिग ही सबसे क्रूर
अपराधी था । अनेक नाबालिग
अपराधी बच्चियों के
बलात्कारी पाये गये और अनेक बूढ़े
भी बलात्कारी पाये गये भोपाल में
सगा नाना, गुजरात में सगा मामा,
केरल में पिता भाई चाचा, बैंगलोर में
शिक्षक, और मुंबई में बस ड्राईवर,
"""""""न कोई रिश्ता विश्वसनीय
रह गया न कोई आयु,, इमराना के
ससुर ने रेप किया और पति से तलाक
दिलवा दिया मौलवियों ने,,
बिजनौर में चाची कहने वाले पङौस के
लङकों ने छप्पन साल
की स्त्री को घास काटते समय रेप
करके मार डाला, शेरकोट में गैंग रेप
करने के बाद
लङकी का वीडियों बनाकर
फैला दिया, सुहागपुर में स्कूल
जाती लङकी खेत में खीचकर रेप करके
मार डाली, """मेरठ में ट्यूशन से
लौटती लङकी कार में खींचकर रेप
करके सङक पर फेंक दी, ""गाजियाबाद
में चार पाँच साल की बच्ची जिसे
मामा कहती उसी ने तीन और
लङकों के साथ रेप किया और प्राईवेट
पार्ट्स में प्लास्टिक की बोतल ठूँसकर
गला घोंट दिया तहखाने में
"""मोहनलाल गंज में लहू का पैशाचिक
वीभत्स कांड देखने के बाद,, कैसे कोई
चाहेगा कि उसके घर
बेटी पैदा हो??????????
स्त्रियों का व्यापार आज
भी जारी है और लाख उपाय करने
कानून बनाने के बाद भी प्रतिवर्ष
लगभग एक लाख बच्चे घरों से
'विद्यालयों से, अस्पतालों से,
बाजारों, मेलों, हाटों, मन्दिरों,
दरगाहों, जुलूसों, बसों, रेलगाङियों,
आदि से चोरी या अपहृत हो जाते हैं
या खो जाते हैं, 'जिनमें से बावन
प्रतिशत से भी अधिक केवल
लङकियाँ ही होतीं हैं और कुल
बच्चों में से बयालीस प्रतिशत
बच्चों का कभी कोई सुराग
नहीं लगता! एक सनसनीखेज खबर के
मुताबिक कुछ गाँव जहाँ हाईवे है और
टूरिस्ट्स आते जाते हैं वहाँ नगर
महानगर की बजाय छोटे
कसबों गाँवों में, कुटीर उद्योग
की तरह वेश्यावृत्ति की जाती पाई
गयी जो नाबालिग लङकियाँ अपहृत
करने वाले अपराधियों से
लङकियाँ खरीद कर
दवाईयाँ हार्मोन्स दे देकर
उनको जल्दी जवान बनाते हैं और, आस
पास पब होटल डाकबंगलों ढाबों पर
ठहरने वाले यात्रियों को सूचना और
बुलावा देकर ग्राहक फँसाकर लाने
वाले दलालों के माध्यम से चलाये जाते
हैं, कुछ कुटीर वेश्यालय तो सामाजिक
संस्था, या दिन में कोई भला कार्य
करने वाली कार्यकारिणी जैसे दिखते
हैं । लङकियाँ विदेश भी भेजी और
बेची जाती हैं जिसका माध्यम
समुद्रयात्रा हवाई यात्रा और
नेपाल बांगलादेश पाकिस्तान जैसे
पङौसी देशों के माध्यम से
भी होता है। सवाल उठता है संभव
कैसे है?? क्या पुलिस कस्टम
कोस्टगार्ड ट्रैफिक कंट्रोल और
जासूसी संस्थाओं को भनक
भी नहीं लगती होगी??
यहाँ बिना सुबूत के कुछ कहना मुश्किल
है किंतु अनेक मामलों में, विधायक,
सांसद, पुलिस ऑफिसर व्यापारी,
पत्रकार, वकील, जज, बङे
अधिकारी तक, कालगर्ल के साथ
किसी होटल या बंगले पब या बार में
रँगे हाथ पकङे गये । चाहे ऐसे
लोगों की संख्या बेहद कम हो किंतु
इतना घोषित करने के लिये काफी है
कि कहीं न कहीं हर विभाग में कुछ
काली भेङें बनकर बैठे भेङिये हैं और
सूचनाये सुविधायें ऐसे भेङ
रूपी भेङियों से
ही अपराधियों को मिलती है । जब
तक कोई बङा खुलासा जनता,
मीडिया, या कोई विदेशी संचार
माध्यम या ईमानदार
कर्मचारी नहीं कर देता तब तक ये सब
जघन्य अपराध चर्चा तक में नहीं आने
दिये जाते, 'एन जी चलाने के दौरान
एक बच्ची डेढ़ साल
की रोती हुयी मिली कदाचित कोई
बुरी नीयत से लाया और उसी जगह से
महिला संगठन की टोली गुजरती देख
छोङ भागा, तमाम विज्ञापन और
तलाश के बाद असली माँ बाप
नहीं मिले, बच्ची किसी संपन्न
परिवार की थी, जो कार स्कूटर
की आवाज पर चौंकर
कहती ""पापा ""और कुछ
बोलना नहीं जानती थी । अब वह
बच्ची एक परोपकारी निम्न मध्यम
वर्गीय परिवार में इंटरमीडियेट में
पढ़ रही है । ऐसे कई केस सामने आये
"निठारी कांड लोग भूले
नहीं जहाँ चालीस से अधिक बच्चों के
कंकाल नाले में मिले, और अमीना कांड
जब एक एयर होस्टेस ने
बिकी हुयी लङकी को बूढ़े शेख के चंगुल
से छुङाया जिसे माँ बाप ने निकाह के
नाम पर बेच दिया था ।
बंगाल बिहार नेपाल और
पहाङी क्षेत्रों की अनेक
युवतियाँ विवाह के नाम पर वधू मूल्य
चुकाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश
हरियाणा और राजस्थान के रेतीले
इलाकों के उन
युवको बूढ़ों प्रोढ़ों को बेच
दी जाती है पत्नी के रूप में बंधुआ
मजदूर बनाकर रखने
को जिनकी शादी परिवार
की खराब छवि, लङके
की कुरूपता या विकलांगता, परिवार
में हुये अंतर्जातीय अंतर्धार्मिक
विवाह या लङके की शराब हिंसा और
आपराधिक आदतों या परिवार
की मोटी दहेजी रकम की आशा में
बढ़ती गयी आयु या पत्नी मरने पर
बच्चों की वजह से
हो ही नहीं पाती ।
ये
बिकी हुयी स्त्रियाँ पत्नी कहलातीं
तो हैं किंतु इनका सामाजिक सम्मान
कुछ भी नहीं रहता और मोल की बहू
का खिताब मुँह दबा दबाकर चाहे जब
सुना दिया जाता है । मायका बहुत
दूर और किराया बहुत अधिक होने
की वजह से न बाप भाई आ पाते हैं न
मोल की बहू कभी मायके
भेजी जाती है, यदा कदा दशक
दो दशक में कभी मुलाकात हो जाये
तो हो जाये,, किंतु इन मोल की बहुओं
की हालत बंधुआ मजदूर से भी बदतर
रहती है जिनको रात में बिस्तर पर
रौंदा जाता है दिन भर पशुओं
की कुट्टी चारा सानी पानी गोबर
उपले और घर की साफ सफाई के बाद
रसोई और बचा समय खेत पर
लगा दिया जाता है उस पर
बङा क्या छोटा क्या सब रौब झाङते
हैं । बोली और खानपान अलग होने से
सामाजिक उत्सवों पर ऐसी मोल
की बहुयें पृथक छोङ दी जाती है
उनको न
रसमों की जानकारी होती है न
गाना बजाना मेल का कि कोई
गा गवा सके,, ।
यातना दायी अकेलापन झेलने
को अभिशप्त ये मोल की बहुयें भयंकर
शारीरिक मारपीट और मानसिक
तानों टोंचनों का शिकार रहतीं हैं ।
न कोई घर की संपत्ति के मामले पर
विश्वास करता है न ही इनकी कोई
कीमत समझी जाती है एक काम काज
करने वाली कठपुतली से अधिक ।एक
लँगङ नामक पङौसी की पत्नी को बुआ
से सीखी रेसिपी पर पूरन
पोली "बखीर "और दही बङे भेज दिये
तो रो पङी, बोली काकी जी, कई
साल बाद खाई, यहाँ कोई
अपनी पसंद का खाना बनाने
ही नहीं देता ।ये मोल की बहुये
बहुतायत कैदी की ही तरह तरह
रहतीं है जिनके बाजार मेला मंदिर
समारोह में नहीं ले जाया जाता कई
साल तक, 'बाद में इनके बच्चे
भी दोयम दर्जे के ही समझे जाते है ।
बेचने खरीदने का काम 'दलाल पब
होटल और सरकस के लिये भी करते हैं
कई बार तो बच्चियाँ ही सब कुछ भूल
चुकी होतीं है और अपने खरीददार
या अपहर्ता को ही माता पिता
समझने लगती हैं पीढ़ी दर
पीढ़ी धँसी तो धँसी, फिर
दुबारा समाज की मुख्यधारा में
वापसी नहीं ।पता लग जाने पर
भी कदाचित ही कोई परिवार
हो जिसने स्वीकार कर
लिया हो कि "अमुक बदनाम पेशेवर
वेश्या उसकी बीस साल पहले अपहृत
हो गयी बहिन या बेटी है ",,और यह
सच सब बिक चुकीं लङकियाँ जान समझ
लेतीं हैं इसलिये जब एक बार फँस
जातीं हैं तब कीचङ से बाहर आने
की कोशिश करना ही बंद कर देतीं हैं
।सामने कोई परिजन पङ जाये
तो पहचानने से बचकर निकल जातीं हैं
।ये अपराध एक समाज स्वीकृत
अपराध है और तमाम कोशिशों के बाद
भी वेश्यावृत्ति और
स्त्रियों को तवायफ बनाकर
नचवाना बंद नहीं हो पा रहा है,
'अभी हाल में ही एक पुलिस ऑफिसर
जेल के भीतर मातहतों सहित
नर्तकियों के साथ नाचते नजर आये पूरे
हरियाणा और पश्चिमी उप्र में
वैरायटी शो कला के नाम पर राम
लीला रास लीला और तमाम जुलूसों में
नर्तकियाँ बुलवा कर
नचवायीं जातीं है, एक नेता तक के
प्रचार में कई बार
नर्तकियाँ दर्शकों को बाँधे रखने
को नचवायीं गयीं जैसा बागपत में एक
कथित किसान नेता के मंच पर हुआ
पाया गया,, ।
दहेज और घरेलू हिंसा
एक ही सिक्के के दो पहलू और सबसे
बङा सामाजिक संगठित अपराध जिसे
मान्यता मिली हुयी है ।लोग मजे से
एक कम दहेज देने वाले लङकी के
पिता की होङ में
नीलामी की बोली की तरह
बढ़चढ़कर अपनी बेटी बहिन
की शादी के लिये उसी परिवार
को लालच देते हैं कि आप को वह गरीब
क्या देगा मैं इतने लाख दूँगा,
और यह बढ़िया मौका होता है लङके
के परिवार के पास वह खुद हर आने
वाले लङकी वाले को बताता है
"फलानानगर वाले तो, 'पंद्रह लाख
नकद और पूरा सामान घर लाकर
कंपनी का देने को कह गये हैं, 'परंतु मेरे
बच्चे को लङकी पसंद नहीं आयी, 'अब
लङकी वाला नीलामी की बोली की
तरह बोली बढ़ाता है और
लङकी की दस बीस विशेषतायें
भी सोच सोचकर बताता है, 'तब
भी इतने जल्दी डील फाईनल
नहीं होगी, 'अभी और
प्रतीक्षा की और करवायी जायेगी,
लङकी वाले को फँसाकर देखने दिखाने
का कार्यक्रम मुफ्त की दावत सैर
सपाटा आवभगत और नगर पर्यटन रे
लिये तय करके नये लङकी वाले को आने
पर बताया जायेगा,,
""देखो जी अमुकशहर
वालों की लङकी भी पसंद है और दहेज
बीस लाख दे रहे है ऊपर से
शादी भी हमारे ही शहर आकर होटल
से करने को तैयार है बस
कुंडली नहीं मिल रही,अब आप
अपना टोटल ""एस्टीमेट ""बताओ,,,,,
ये सब कोई काल्पनिक बबात नहीं है,
हम में से अधिकतर भुक्तभोगी है बहिन
बेटी भतीजी या अपनी स्वयं
की शादी के अनुभव से । ये दहेज एक
बार की डील फिनिश एंड फाईनल
नहीं है ',भारतीय लङके वाले
किसी माफिया गिरोह के रेंसम
हफ्ता या रंगदारी की तरह
ब्लैकमेलिंग का सिलसिला बनाते है
सारा जीवन, ।लङकी की शादी के
चौथे दिन फिर
पहली होली पहली राखी पहली तीज
पहली करवा चौथ पहला गर्भ पर
गोदभराई पहली संतान का छठ छूछक
दसटोन, और गौना, वर विदाई,
समधी भेंट,, ये तो दुबारा एक और
शादी बराबर ही बैठ जाते हैं ।
फिर क्रमशः जितनी बार
भी लङकी को लिवाने जाओ सब
ससुरालियों को पैसे रुपये मिठाई कपङे
लेकर जाओ, जब लङकी को लिवाने
ससुराल वाले आयें तब लङके और उसके
परिवार तथा लङकी और उसके
बच्चों को कपङे रुपया सामान धातुयें
दो ।मतलब आये
तो क्या क्या क्या लाये मायके
वाले?? और जब बहू पत्नी भाभी के
मायके हम जायें तो क्या क्या दोगे??
इतना ही नहीं लङकी के ससुराल में
चाहे देवर ननद
की शादी हो या गृहप्रवेश नये मकान
का चाहे दादा ससुर और सास बुआ
की मृत्यु तब भी रस्म पगङी और
त्रयोदशी ग्यारवीं पर शुद्धि वस्त्र
रुपये हर बहू के मायके से जरूर आने
चाहिये,, यही नही कथा रामायण
पाठ भागवत या कोई धार्मिक
अनुष्ठान करवाया जाये तब भी बहू
पत्नी के मायके से
रुपया कपङा सामान अनाज
आना ही चाहिये ।जितना भी दे
दो मना महीं करेगे हक जो है असीम
अनंत सब कुछ दे दो भिखारी हो जाओ
तब भी परवाह किसे है """भई
जो दिया अपनी बिटिया बहिना को
हमें क्या?????? दोगे
तो सुखी भी तो तुम्हारी ही लङकी
रहेगी!!!!! मतलब साफ अगर नहीं दोगे
तो लङकी सुखी नहीं रहेगी, और ये
धमकी नहीं क्रूर सत्य है कि, अकसर
उन परिवारों की बहू
पत्नी भाभी पर भीषण क्रूर
मानसिक, शारीरिक और आर्थिक
अत्याचार किये जाते हैं जिनके मायके
से ""निरंतर धन दान का अविरल
प्रवाह लङकी के ससुराल की ओर
नहीं बहता रहता ""।
बात बात पर उसको जलील करके ताने
दिये जाते हैं और अहसास
कराया जाता है कि यह सब उत्पीङन
इसीलिये किया जा रहा है
क्योंकि उसका बाप भाई दुनियाँ के
सबसे गये गुजरे घृणित जीव है
जिनकी कोई औकात नहीं, इसलिये तू
होश में रह ये तेरे बाप का घर नहीं है
"बाप की औकात
होती तो सहीं क्यों आती किसी और
बङे घर में ना चली जाती, 'रही बात
माँगने की हम ऐरे गैरे नहीं जो माँगते
फिरें जिसको ज़मीर और कर्तव्य
का जरा भी अहसास है वह
बिना माँगे ही दे देते है तेरा बाप
तेरा भाई घोर नीच प्राणी हैं
जो कुछ नहीं देते और जो देते भी है वह
इतना नहीं कि तुझे इस घर में सम्मान
मिले """'"'"अब जिसके मायके में दम न
हो पैसा रुपया कपङे से कवच बनाने
की उसकी बिटिया की पीट पेट सिर
कमर तो लात जूते लाठी घूँसे और
दीवारों की मार से रक्त रंजित
होकर लाल नीले रहेगे ही,
बिना रीढ़ की स्त्री गिरकर
रहेगी ही नीचे और नीचे, ।'गजब
तो इस बात का है कि इस अत्याचार
अनाचार में एक कम रुपया लाने
वाली बहू पर ज्यादा कुपया लाने
वाली बहू भी हिंसक मानसिक
उत्पीङन ताने व्यंग्य छींटाकसी और
नीचा दिखाने पर लगी रहती है और
कम लाने वाली भी दूध
की धुली नहीं वह भी हर तरह से
कोशिश करती है कि उस धनवान
की जाई को फूहङ निकम्मी गुणविहीन
घोषित करदें, 'यही नहीं जिस सास ने
बहू रूप में तमाम दुख झेले होते हैं वह
भी अपनी बहू आते ही बहुतायत
मामलों में षडयंत्रकारी और शोषक
सामंत बनाम बँधुआ मजदूर
का सा अन्यायी व्यवहार करती है
',लङकी का परिवीर जब भी आये
दो फीट नीची गरदन के साथ, और
मिलने मिलाने का टैक्स चुकाये तब
लङकी से मिल सकता है । अनेक
मामलों में तो मायके जाना और मायके
वालों का आना दोनों ही बंद कर
दिये जाते है
",,लङकी की सलामती चाहते
हो तो दिल पर पत्थर रख कर सब कुछ
झेलो । जिस प्यार मुहब्बत
सुखी परिवार के सपने देखकर
लङकी मंगलसूत्र पहनती है वे बहुत कम
ही भाग्यवान लङकियों के साकार
हो पाते है ।
इस सबके बाद भी दहेज हत्यायें आज
भी हो रहीं है औऱ अपराधी अकसर
वकीलों की दलीलों और
ताऱीखों के जाल में पीङिता के मायके
वालों को उलझा कर ज़मानत पर छूट
जाते हैं और बहुत कम मामलों में
किसी को पूरी सजा और कम समय में
सही सजा मिल पाती है, अपील पर
अपील लङता बेटी बहिन वाला थक
जाता है किंतु पहले ही धन लूट खसोंट
कर भर चुका लङके वाला, समाज
को बुरा नहीं लगता अकसर दहेज
हत्यारोपी लङकों की भी शादी
फटाफट दूसरी किसी लङकी से
हो जाती है और अकसर दूसरा विवाह
भी माल असबाब से लङके का घर भर
देता है ।कभी तो समाज की इस
मानसिकता पर अचंभा होता है
कि जिस लङके के विवाह से तीन तीन
या चार तक भी पत्नियाँ रहस्यमय
कारणों से मर गयीं और
किसी पीङिता के पिता ने
मुकदमा ठोक रखा है फिर
भी लङकी वाला उस दुहेजू तिहेजू
की जाँच परख किये
बिना ही लङकी उस घर पटक कर
निश्चिंत हो जाते है, 'सबीना का एक
मामला आया हमारे सामने जिसमें
उसी के पङौस की लङकी मर गयी और
एक औऱ लङकी को तलाक दे कर
बेटी मायके वालों पर फेंक दी जिस
आदमी ने उसीसे सबीना के पिता ने
शादी करवा दी ये बात
सबीना को निकाह के बाद
पता चली और जब उसका भी आर्थिक
शोषण उत्पीङन होने लगा तब, एक
ही रास्ता बचा लङकियाँ लेकर
मायके आ पङना, और तब जब कई साल
तक उस
आदमी की पाँचवी शादी नहीं हुई तब
वह, अपनी बेटियाँ भी हल्ला गुल्ला
मचाकर ले गया, लेकिन उससे
पिछली बीबी की बेटी फिर
भी नहीं ले गया ।
हमारी बहिन
की सखी "भारती जुमनानी "की क्रूर
हत्या कर
दी गयी थी उसकी शिकायत पर
पहली बार माँ चाचा ने
समझा बुझाकर ससुराल भेज दिया, वह
कहती रही चाचा मुझे वे लोग मार
देगे, वह एक
सिन्धी शरणार्थी की बेटी थी
जिसका पिता बिछुङ
गया था चाचा और माँ ने भरपूर दहेज
भोपाल में ससुर डॉक्टर था,
पढ़ी लिखी बेहद सुंदर लङकी जिसके
गुरदे फट गये थे कि उसे "खल बट्टे
की लोहे की मूसली से पीटा गया और
जहर का इंजेक्शन देकर
जला दिया गया 'उसने
हट्टी कट्टी होने के कारण ससुर देवर
पति तीनों से जमकर संघर्ष किया और
जलते समय ससुर का हाथ पकङ
लिया ""अस्पताल में बयान देकर मर
गयी ""सत्ते चाचा!! मैंने कहा था न
कि वे लोग मुझे मार डालेंगे, ""।
वह लङकी हमेशा हमें आँखों में झाँककर
पूछती है "दीदी! वे लोग इतना मारते
हैं फिर भी सब लोग मुझे
वहीं क्यों भेजना चाहते है?
हमारी तयेरी जेठानी की लङकी, एक
और जेठानी की बेटी की ननद
दोनों को एक ही गाँव के
दो परिवारों ने अलग अलग समय पर
मार डाला और लंबी लङाई कई साल
चलने के बाद एक को सजा हुयी,
'दूसरा बरी और
शादी तो दोनों की हो गयी, 'जेल
जाने से पहले भरा पूरा परिवार
हो गया ', सजा किसे मिली?????
ये उत्पीङन केवल पुरुष करता है
ऐसा नहीं है, 'एक मामले में
कुँवारी बङी आयु की ननदों ने
अपना दहेज जुटाने के लिये जुल्म किये
छोटे भाई की पत्नी पर तो एक
मामले में सास
को पङी थी बङी पूँजी बङा घर
बङा आदमी बनने की ललक!!!! ये औरतें
अगर न चाहें ससुराल की तो दहेज
माँगना भी एक चौथाई मामलों में कम
हो सकता है, 'क्योंकि सास ननद
देवरानी जेठानी ननद के ससुराल बुआ
सास तक के उपहार दहेज में शामिल
रहते हैं '। और अगर सास ननद
जेठानी देवरानी बुआ सास
मामी सास मौसी सास कंपटीशन न
करें और रोकें हर दहेज से संबद्ध
उत्पीङन को तब तो निश्चित ही ऐसे
अपराध आधे तक कम हो जायेंगे, मतलब
ये "कहावत सबको याद इसीलिये
आती है स्त्री ही स्त्री की सौतन
होती है!!!!
स्त्रियों पर एक और भयंकर संगठित
सामाजिक अपराध जारी है और वह है
कन्या भ्रूण हत्या ':।
ये कन्या भ्रूण हत्या "अनेक कारणों से
होती है, जिनमें दहेज प्रथा,
बलात्कार और छेङछाङ का बढ़ता डर,
लङकी ससुराल चली जायेगी सब कुछ
लेतर तो वंश पुश्तैनी जायदाद और
गोत्र नाम पिता की संपत्ति सब
खत्म हो जायेगे, फिर कौन आगे याद
रखेगा किस "फलनवा "का गाँव
कसबा कौन सा था, ''? शास्त्रोक्त
विधि विधान से पिंड दान श्राद्ध
कर्म तेरहवीं और दाहसंस्कार के बाद
बरसों तक हर पितर पक्ष में
पानी खाना कौन करेगा?
लङकी की ससुराल में कैसे जाकर रहेगे?
कौन बुढ़ापे में रोटी पानी दवाई
देगा गू मूत उठायेगा? खानदान
की ताकत बेटियाँ पैदा होने से
कमजोर होती जाती है और बेटे
पैदा होने से बढ़ती जाती है? फिर ये
मकान ये सामान किसी गैर जात
मजहब वाले को बेचकर दामाद
तो अपने पिता का ही नाम
चलायेगा हमारा क्या? पूथ नामक
नर्क से मोक्ष कौन दिलायेगा?
बेटी के घर रहना खाना पाप है?
खेती 'दुकानरात बेरात बाजार
दवाई, पिता के मान अपमान
कर्जों के बदले बेटी कैसे करेगी?????
और माने चाहे न माने कही बङी हद
तक ये सब चिंतायें ही कन्या भ्रूण
हत्या की बङी वजह है । पहले जमाने
में जब सोनो ग्राफी और अल्ट्रासाउंड
तकनीक नहीं थे तब कन्या जन्मने के
बाद कुछ ही लोग "नाक ऊँची "रखने
को लङकी मारते थे,, वह तरीका खाई
नदी में फेंकना या तंबाकू गले में धरकर
खाट के पाये से
गला दबाना होता था "बाकायदा "
बिटमारो बुढ़ियाँ,, नियुक्त
रहतीं किंतु अघोषित गुप्त ।आज
बङी संख्या में
यूपी हरियाणा राजस्थान में हर
आठवीं दसवीं स्त्री की एक
या दो कन्या गर्भ में ही मार
डालीं जाती हैं । और ऐसा हिंदू सबसे
अधिक करते हैं जो खुद को ""दुर्गापूजक
कहकर कन्यायें पूजते है?? घोर
आश्चर्य!!!
ये गर्भपात चौथे महीने के बाद
होता है जब लङकी पूरी बनकर पेट में
साफ साफ दिखने लगती है और
जो तकनीक पेट के भीतर
की गङबङी दूर करके जाँच कर निरोग
रहने के लिये बनायी गयी थी शिशु
रक्षा के लिये, 'आज वही तकनीक
हत्यारे ""रेडियोलॉजिस्ट,,
हत्यारी नर्सों दाईयों डॉक्टरों और
कन्या न चाहने वाले हत्यारे
माता पिता के हाथों कंस की तलवार
बन कर रह गयी है!!!!! ये गर्भपात
माँ के गर्भ से
जबरदस्ती बच्चा खींचकर निकालने
की तकनीक अथवा गर्भ में नश्तर
डालकर काट कतर कर बच्चे के टुकङे
टुकङे करके निकाल कर गर्भ पात
किया जाता है ',जबकि हर
प्रसूति केंद्र और अल्ट्रा साऊंड सेंटर
पर लिखा रहता है ""भ्रूण
हत्या अपराध है, यहाँ लिंग की जाँच
नहीं की जाती, 'तो फिर ये
कन्या वध होता कहाँ है? कई गाँव ऐसे
हैं जहाँ गर्भपात का कार्य सफाई
करमी रही दाईयाँ करतीं है, परंतु वे
कन्या होने की जाँच नहीं कर सकती,
'वे केवल अनचाहा गर्भ गिरातीं है
जिसमें से एक तकनीक है पेट पर
दिया धरकर घङा रख देना जिससे
गर्भ टूट मरोङ जाये,
यातनादायी पीङा से ',
दूसरी ""सिटेंगल "नाम
की लकङी का टुकङा जो गर्भिणी के
सर्विक्स का मुँह जबरन खोलने के लिये
फँसा दी जाती है लकङी फूलकर कई
गुनी होकर सर्विक्स का मुँह खोलकर
रक्तस्राव जारी कर देती है ",।
ये सब यातनायें, 'उन
स्त्रियों को सहनी पङती हैं जो गाँव
कसबों में रहतीं है । नगरों तक
नहीं जाने दी जाती । किंतु ये
अपराध कोई गरीब अनपढ़ और
आपराधिक पृष्ठभूमि के खराब कहे जाने
वाले लोग नहीं करते ।ये सफेद
वस्त्रों में सजे धजे
फरिश्तों का अपराध है, । डॉक्टर
नर्स रेडियोलॉजिस्ट और माँ बाप
का सामूहिक अपराध है कन्या वध ।
और एक प्रसूति केन्द्र पर साल भर में
कितनी हत्यायें होती होगी??
सोचकर झुरझुरी छूट जाती है ।
हालांकि कानून की सख्ती से
कमी आयी है । किंतु अब अधिक
चालाकी से मामले निबटाये जाते है ।
पहले जो काम पाँच सौ में
होता था अब पाँच हजार से दस
हजार रुपये तक फीस वसूली जाती है
और अल्ट्रासाउंड करते वक्त परिवार
के किसी सदस्य को बिठाकर कोड
वर्ड कह दिया जाता है, '।
रेडियोलॉजिस्ट अपराध मुक्त समझ
लेता है खुद को क्योंकि इसका मतलब
ये तो नहीं कि वह कह रहा है जाओ
मार डालो? नर्स और
गायनोकॉलोजिस्ट कहती है गर्भ से
माँ की जान को खतरा था और हम
क्या जाने माँ बाप जाने, हम तो केस
सब्जेक्ट समझ कर काम करते हैं ।सोचने
और शर्मिंदा होने का वक्त
किसी डॉक्टर नर्स रेडियोलॉजिस्ट
और माँ बाप के पास नहीं । माँ सोच
लेती है मेरे जैसी नरक जिंदगी से
अच्छा तू अभी मर जा । और वर्तमान
भारत के स्त्री पर भीषण अत्याचार
को देखकर कभी न कभी हर
माँ को लगता है कि काश उसके
बेटी होती ही नहीं या पेट में
ही मार दिया होता!!!!!!!!!!
छेङछाङ, और रैगिंग, के नाम पर यौन
शोषण यौन हमले, एक और भयंकर रूप
लेता जा रहा संगठित सामाजिक
अपराध है जिसको कोई भी लङके
का पिता और यहाँ तक
कि माता भी अपराध मानते
ही नहीं 'जबकि इसी अगस्त में
ही हरियाणा में दो बहिनों ने रोज
छेङछाङ पीछा करने और धमकियाँ देने
से डरकर "आत्महत्या कर ली "।
सुसाईड नोट में उस मेधावी छात्रा ने
जो 98%अंकों से हाई स्कूल कर
चुकी थी, लिखा है कि ऐसे अपराध
रोको ताकि कोई और लङकी न मरे
मेरी तरह, '। मेरठ में आज
मीडिया जिस लङकी को शाबासी दे
रहा था कार सवार छेङछाङ करने
वालों से जूझकर बूढ़े पिता को पिटने
से बचाने के लिये,
वही मीडिया फोटो खींचने में मगन
था तब भी और तब भी जब विगत गणेश
उत्सव पर, एक टीनेज लङकी को लङके
ग्रुप बनाकर बीच में लेकर बुरी तरह
नोंच भँभोङ रहे थे ठीक सीने पर!!!!!
वहाँ पुलिस और बाकी भले भद्र लोग
चुपचाप तमाशा देख रहे थे? लखनऊ
हो या कानपुर गाजियाबाद
हो या मेरठ यूपी बिहार
हरियाणा मध्यप्रदेश महाराष्ट्र
कोई भी प्रांत हो "बस में
चढ़ती लङकी की छातियाँ नोंच लेना,
गाल पर सिर हाथ टिका देना, ऊँघने
का बहाना करके बगल की लङकी पर
लुङक जाना, पल्लू या दुपट्टा खींच
देना, भीङ में से निकलते समय जानबूझ
कर अपनी जाँघें हाथ कमर लङकियों से
घिसकर निकलना?प्रायवेट पार्ट छू
देना चिकोट लेना ?गंदे इशारे करना,
बीच की उंगली दिखाना, आँख
मिचकाना, हवाई चुंबन, गंदे गीत या डायलॉग बोलना सीटी मारना,फिकरे कसना,
चिट्ठी फेंक मारना, गंदी फिल्में और एसएम एस या एम एम एस लङकी का नंबर
खोजकर उसको भेज देना, बार बार फोन करके तंग करना, क्लास स्कूल या मुहल्ले
में उससे अफेयर की बदनामी करना, प्रेम होट गया दावा करना और गर्ल फ्रैंड
बनने को धमकाना, मेले बाजार अस्पताल स्कूल बस बस ट्रेन मेट्रो ऑटो
रिक्शा रेलगाङी, ट्र्क, कार कोई भी जगह हो, लङकी देखी और जुनून सवार
पागलों की तरह पेंट पाजामे के जोङ खुजलाने लगना, घूर घूर कर लगातार साशय
बुरे नजर इरादे से घूरना, ग्रुप बनाकर राह रोक लेना या ठहाके लगाकर मजाक
उङाना, फोटो खींच लेना, वीडियो बना लेना "पब्लिक टॉयलेट में गंदी बातें
लिखना अश्लील चित्र बनाना ""लङकियों के नाम गंदे संदेश सिंबॉल इमारतों
दीवारों पर लिखना "पेशाब करने जानबूझ कर सङक किनारे लङकी आती देखकर खङे
हो जाना और मुङ मुङ कर दोस्तों से बतियाना!!!!!!!!! क्या है ये सब?पागलों
के देश में रहते हैं हम सब? वीभत्स रूप से कामवासना से भरे घिनौने जीवों
के बीच
सेक्स का ऐसा वीभत्स रूप???
पाँच हजार साल पुरानी सभ्यता का दावा करने वालों के देश में आज तक
पुरुषों को "प्रेम करने लङकी को रिझाने और विवाह करके परिवार बसाने सेक्स
और सामाजिक समरसता स्त्रियों के प्राणी मानव होने के हक और स्वतंत्रता के
तौर तरीके लायक भी सलीका तमीज सभ्यता धीरज संयम नहीं!!!
पता है आज हर स्त्री मन ही मन सोचती है काश मैं भारत में न हुयी होती
या लङकी न होती

--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

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