सुधा राजे का लेख -""सवाल पापी पेट का""।

भारतीय ""मनीषी बहुत पहले
ही मांसाहार को केवल ""सैनिक
का भोजन आपातकाल में कहकर ""मौन
हो गये ।
आज
जीवहिंसा का भयंकर दुष्परिणाम
सामने है ।
सींक कबाब मूलतः सैनिक
का ही भोजन है ।
जब कुछ न मिला तो पशुवत शिकार
करके कुछ भी अपनी तलवार पर बेध
कर पिरोया और आग पर भूनकर
खा लिया ।
सवाल है
उनको विवशता थी
किंतु जो गृहस्थ हैं जिनको विकल्प में
बेहतर आहार उपलब्ध है वे """जीभ के
लालच में ""
किसी के प्राण लेकर तङपा तङपा कर
किसी की हत्या करके फिर
उसको सदा के लिये मिटाकर
खुद आनंदित होना!!!!!
को क्या गलत कहा है विद्वानों ने
""""
किम् दया मांसभोजिनः???
आज आवश्यकता है शाकाहार की कीमत
समझें और पशु संरक्षण को बढ़ावा दे ।
सैनिक को भी जब विकल्प हो तब
मांसाहार न करे ।
यह केवल आपातकाल की व्यवस्था है ।
मांसाहार का बढ़िया विकल्प है
चना सोयाबीन सूरन कांदू रतालू
कटहल कमलमृणाल और घुईयाँ
(सुधा राजे)

--
Sudha Raje
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