सुधा राजे का लेख- भरोसे की जङ में अविश्वास का मट्ठा।(भाग-3)(revised)

सभी धर्मों के बुद्धिजीवियों को आगे आकर हालात सँभालने चाहिये ',
क्योंकि ये कोई दबी छुपी बात नहीं है कि ऐसी दुष्ट लङकियाँ लङके मदरसों
में बहकाये जाते हैं कि जाओ और किसी को धर्म परिवर्तन कराओ ।

प्रेम विवाह और धर्म परिवर्तन के लिये लङकी फँसाना दो अलग अलग बाते है ।

सबसे बङा खतरा और आशंका है पारस्परिक विश्वास की नींव हिल जाने की ।

क्या समझते हैं आप लोग पुलिस वकील या नेताओं की टेंटें पर यकीन करते हैं??

बि लकुल नहीं
क्योंकि ऐसी घटनायें जब जब होती है लोग अपने बच्चों पर बंधन बढ़ा देते
हैं और उनके दोस्तों सहेलियों कलीग के मित्रों को दूर करने लगते है धर्म
के आधार पर ।

ये बुरी बात का संकेत है ।

दोस्ती और पासपङौसवाद का ही विश्वास उठ गया तो कौन कैसे सुकून से जी सकेगा ।

क्या आपको लगता है कि अब कोई भी ऐसा परिवार जो यह समाचार जानता है "किसी
मदरसे में पढ़ाने भेजेगा अपनी बहू बेटी को?

ये बङी निराशाजनक स्थिति है हम सबके लिये ।
बच्चे मिल जुल कर खेलें पढ़ें और सहयोग बढ़े सुख दुख में यही आदर्श स्थिति है ।

ऐसा तो कभी नहीं होगा कि दुनियाँ का हर आदमी एक ही धर्म का हो जाये और सब
पेङ जैतून के!!!

क्योंकि
और भी तमाम धर्म हैं जो ऐसे ही दुष्ट विचारों से चुपके चुपके धर्म
परिवर्चन पर काम करते रहे ।


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Sudha Raje
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Fatehnagar
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Bijnor
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