सुधा राजे का लेख - " आखिर कब तक???"

कुछ लोगों को लगता है कि आर एस एस "मदरसों को बदनाम करना चाहती है इसलिये
धर्मान्तरण के मुद्दे जोर से उठाती है जबकि वे प्रेम विवाह होते हैं ।

और इसलाम में मजहब बदलना जोर जबरदस्ती से मना है ।

किंतु
इराक़ में यजीदियों पर जो अत्याचार हो रहे हैं वे क्या है?

भारत में इतने मुसलिम हैं क्या सब प्रेम से ही मुसलिम बन गये थे?

या इनके पूर्वजों को धमकाया सताया मारा काटा गया था?

क्योंकि ये सब विदेशी नहीं है और अशोक के काल तक कोई मुसलिम नहीं था भारत में!

आज स्वतंत्र भारत में डरा धमकाकर धर्म बदलना अपराध है और प्रेम विवाह को
कानून मान्यता देता है
परंतु
""मौलाना सिद्दीकी की किताब
*आपकी अमानत आपकी सेवा में *
जो पूरे पश्चिमी यूपी में वितरित
हो रही है ""
"किस आधार पर कहती है कि ''हजरत
मुहम्मद कल्कि अवतार थे "
????
हिंदुओं को किसी कल्कि अवतार
की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये
कल्कि अवतार तो हो चुका "
??
"ऐसी किताबें हिंदुओं को बाँटकर अरब
में नौकरी और बढ़िया धन दौलत
का लालच देने वाले कौन है?
ये लङके लङकियाँ हाफ़िज हैं
या मौलवी ?या जमाती?
या धर्मान्तरण हेतु प्रचार प्रसार
मिशन का सोद्देश्य हिस्सा?
अगर कोई
नज़र झाङने, करा धरा उतारने और
ताबीज माँगने जाता है इनके पास
तो "कारण "उसकी सदाशय मासूमी है
कि वह हिंदू और मुसलिम भगवान में
फर्क नहीं करता ।
किंतु उसे अपने पूर्वजों के धर्म के
खिलाफ बरगला कर उसको अपने
मजहब में लाने
को बहकाना फुसलाना भी कौन
सा भला काम हैं?
प्रेम विवाह
तो हो जाते है हर जाति मजहब देश
रंग की सीमा तोङकर ।इसीलिये
प्रेम महान है ।
किंतु ये कैसा प्रेम है
कि प्रेमी को जीवन साथी बनाने के
लिये "मांस भक्षण और अकसर गौ मांस
भैंस या ऊँट खाना सबकी जूठन के साथ
क्यों जरूरी है?
ऐसे नियम जानबूझ कर रचे गये
कि मुसलिम हर हाल में किसी से
भी विवाह करे हराम है जब तक चाहे
रह ले क्योंकि उसके लिये जरूरी है
मुसलमान बनना ।
जब
गायत्री गीता पढ़ने से मुसलिम
लङकी "हिंदू नहीं बन सकती?
तो
क़लमा पढ़ने से हिंदू लङकी मुसलमान
कैसे बन सकती है?
और हर हाल में "मुसलिम लङके
या लङकी से शादी करने
को ""मुसलमान
बनना ही क्यों जरूरी है??
लङका हिंदू लङकी मुसलिम कितने
""मामले हैं???
हिंदू लङका अदर मुसलिम लङकी से
शादी करे तो "उसको मुसलमान
बनना पङता है ।
वरना शादी हराम है और लङकी हर
हाल में मुसलिम ही रहती है ।
चाहे जब अपने धर्म में वापस लौट
सकती है?? क्यों??
और तब ""कोई
मौलवी मदरसा पचा नहीं पाता ऐसा विवाह??
लङकी हिंदू है लङका मुसलमान तब
लङका अपना मजहब नहीं छोङता??
क्यों?
तब भी हिंदू लङकी को ही मुसलमान
बनना पङता है क्योंकि ऐसा किये
बिना वह लङकी "हराम "है??
अगर
बात प्रेम की है तो ""कोर्ट मैरिज
"करने दीजिये "
और मुसलमान बनने की शर्त खत्म कर
दीजिये ।
आप को पश्चिमी यूपा का हाल
पता नहीं है?
या केवल अपने मजहब की वफादारी?
बाकायदा "पूरा मिशन हर तरफ से
ज़ारी है ।
वनवासियों के ईसाईकरण सिखकरण
मुसलिमकरण
और गरीबों के नगर गाँव में धर्मांतरण
का मिशन चलाने वाले मुफ्त सुविधायें
भी पाते है
अब बाकायदा लङकियाँ प्रशिक्षित
होकर ये सिखाना पढ़ाना करने
लगी है ।
प्रेम
न कभी मजहब देखता है न जाति
किंतु
जहाँ
प्रेम विवाह में हर हाल में धर्म
परिवर्तन की शर्त
पूरी करना ""हिंदू लङके हिंदू
लङकी की ही मजबूरी हो ।
वह सब "क्या है??
रहने दो न उन दोनों के नाम
"भारतीय "।

--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

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