स्त्री::--"दीवारों के भीतर चीख"" सुधा राजे का लेख ।

स्त्री :::दीवारों के भीतर चीख
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लेख :सुधा राजे
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रुबिया, सबीना 'चाँदो 'लक्ष्मी अरुणा, गीता, क्रिस्टी, मार्था """"""केवल
नाम बदलते रहते हैं ।नहीं बदलती तो 'दीवारों के भीतर घुटी घुटी चीखें,
सिसकती रातें दुखते दिन और बेबस शामें । विश्व की सर्वाधिक सहनशील
स्त्रियाँ कहीं रहतीं हैं तो एशिया में और उससे भी सबसे अधिक भारत
प्रायद्वीप के सात पङौसियों में । ससुराल तो हिंसक परिजनों के लिये
कुख्यात है ही गौर से देखें तो हिंसा मायके में ही माँ की कोख में आने से
भी पहले से प्रारंभ हो जाती है, जब "बेटी "अवांछित जीव हो जाती है । पहली
बेटी जैसे तैसे स्वीकार कर भी ली जाती है किंतु दूसरी बेटी की तो कल्पना
भी कोई बङे से बङा उदारवादी परिवार करना ही नहीं चाहता । जब ये
अल्ट्रासाउंड और सोनो ग्राफी की सुविधायें नहीं थी तब की आँखों देखी याद
है बचपन की कि, एक माँ को "भिण्ड "मप्र से अपनी सास को धकेलकर प्रसव के
कुछ ही घण्टे उपरान्त, घर से भागते हुये बस पकङ कर पति की पोस्टिंग जहाँ
थी "सेंवढ़ा "वहाँ जाना पङा । क्योंकि "बिटमरौ बऊ "मतलब बेटियाँ मारने
वाली दाई तंबाकू बनाकर नवजात कन्या के गले में रखकर खटिया के पाये से
गरदन दबाने वाली थी। अब ये "बिटमारो "जगह- जगह खुले प्रायवेट सरकारी
प्रसूति केन्द्र हैं । जैसे तैसे जन्म ले चुकी बेटियों के पालन पोषण में
भयंकर भेदभाव रहता है ।जो नजर नहीं आता उनको जो करते हैं सिर्फ वे समझ
सकते हैं जो 'मानव "होने का अर्थ जानते हैं । गर्भाधान के लिये तमाम टोने
टोटके पूजा इबादत धागे और मन्नते करके जब, मन नहीं भरता तब, शै बदलने की
दवाई के नाम पर गांव कसबे नगर महानगर सक्रिय 'नीम हकीम से पुङिया लाकर
पिलायी जाती है, जो भी स्त्री ऐसा करने से आनाकानी करे उसकी शामत, फिर भी
बेटी हो गयी तो एक आँकङा है कि केवल दिल्ली में मिले तेरह लावारिस
नवजातों में से बारह 'लङकियाँ है "जिस माँ बाप को ईश्वर की समता दी जाती
है वही किसी अवांछित विषैले कीङे की भाँति बेटी को सङक कचरेदान नाले
कहीं भी फेंक देते है!!!!!
क्यों? इसका उत्तर है वे सब भयावह यातनायें जो बिना किसी दोष के केवल
स्त्री होने मात्र से लङकियों को झेलनी पङती हैं । दहेज की प्रथा और
बलात्कार के डर के अलावा जो सबसे बङी तीसरी बात है वह है "वंश और अंतिम
समय कौन साथ रहेगा कौन अरथी को उठायेगा । ये सब समझा समझाकर हार गया
मीडिया और समाज सुधारक कि बेटी भी बेटे सा सहारा है परंतु व्यवहार में
ऐसा होता नहीं है और देश भर से जलती आत्महत्या करतीं नववधुयें तेजाब की
शिकार लङकियाँ बलात्कार की शिकार लङकियाँ और दहेज की ऊँची बोली के बाजार
में हार कर बेमेल विवाह से बाँध दी जातीं विवाहितायें ',किसी भी दंपत्ति
को यह सोचने पर विवश कर देतीं हैं ""बेटी न हो "। हो ही गयी तो खेलने और
खाने में माँ बाप भेदभाव जाने अनजाने करते हैं और जब तब सुनी गुनी बातों
से विवाह होने से पहले ही उसे "पराये "होने का अहसास कराया जाता है । जिस
ससुराल और पति के ऊपर उसके सारे सपने, सारी खुशियाँ, सब तमन्नायें अरमान
और, जीवन जीने की उमंग हर्ष उल्लास निर्भर होता है ',वही, बहुत शीघ्र उसे
सोचने पर विवश कर देते हैं कि ""वह यदि पिता का घर था तो ये पति का घर है
"वह तो वास्तव में बेघर है ।
हिंसा, का बङा मोटा रूप सामने आता है ससुरालियों के तानों के रूप में कि
""क्या दिया ""और तेरे बाप की औक़ात हैसियत क्या!
आज एक कॉमेडी सीरियल तक में व्यंग्य का विषय "पत्नी का बाप और पत्नी का
मायके में आर्थिक स्तर रह गया है ।वह कितनी भी गुणवान हो योग्य हो
वफ़ादार और समर्पित हो, यदि वह मोटी रकम और ढेर सारा सामान अनवरत जीवन भर
नहीं लाती रहती है तब अधिकांश परिवारों में ताने मजाक व्यंग्य पिता माता
जन्मभूमि और यहाँ तक कि इस बहाने उस अभागी लङकी से जुङी हर चीज का अपमान
होना सुनिश्चित है । स्वावलंबी होना कमाऊ होना आर्थिक हैसियत में ससुराल
के सदस्यों से मायके का बङा होना भी हिंसा का प्रतिशत तो कम करता है
किन्तु घरेलू हिंसा नामक मामूली लगते "यातनादायी "नर्क से बचने की कोई
गारंटी वारंटी नहीं है । ज्यों ज्यों महानगरों से नगरों कसबों और गाँव की
तरफ बढ़ते जाते हैं घरेलू हिंसा का वीभत्स रूप सामने आता है । बात बात पर
हँसने वाली 'नंदिनी 'अब किसी बात पर नहीं हँसती । विवाह के तुरंत बाद
ससुर ननद देवर जेठ सबको शिकवा था बारात का स्वागत बढ़िया नहीं रहा, फिर
हनीमून का पहला सप्ताह गुजरते उसे पता चल गया कि पति अर्धनपुंसक की सी
स्थिति में है और उसके सब सपने रसोई में धुँधाते रह गये, तमाम इलाज के
बाद हुई तो बेटी औऱ वह सुहागिन विधवा बन कर रह गयी जो घऱ के सब काम काज
करती किंतु उसको हर शाम तनहा ही रहना था,। वह चाहकर भी पति को छोङ नहीं
सकती थी पहले तो संस्कारों की जकङन दूसरे स्त्री का भावुक मन तीसरे वह
जानती थी कि बङी मुश्किल से तो विवाह हो सका है और सब जमा पूँजी खर्च
करके अब बूढ़े माँ बाप खुद भाईयों के मोहताज हो चुके हैं । वह क्या
कहेगी? कैसे साबित करेगी कि पति उसके कमरे में सोता तो है किंतु प्रेम
जैसा कुछ नहीं । बहुत रोयी फिर पत्थर धर लिया दिल पर, विवाह से पहले
प्रायवेट जॉब करती थी वह छूट गयी अब सामने बेटी सुबूत बन चुकी थी पति की
मरदानगी का और जिस देश में कुमारी को वर मिलना कठिन वहाँ एक बच्चे की
माँ को कौन जीने देगा । यही समर्पण उसकी कमजोरी बन गया और आये दिन उसपर
हाथ लात भूसे की तरह धुनने को पङने लगे । एक दो बार लंबे समय तक मायके
रही और जब महसूस कर लिया कि वहाँ लोग गिनते है दिन और खरचा तो वापस आ गयी
। पति जो उसको दैहिक रूप से भोग नहीं सकता था जलन कुढ़न में "" तेरी
जवानी निकालूँ ""कह कर मारता, अक्सर नंदिनी के जिस्म पर घाव रहने लगे ।
पुलिस अदालत कानून क्या करे?


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बेटी सयानी होने लगी कल पति को जेल भेज दे तो रहे कहाँ खाये क्या और बेटी
को छोङकर इस क्रूर समाज में काम परy कैसे जाये । परदेश का माहौल अजनबी सब
लोग! मायके में कोई नहीं चाहता कि वह दो महीने भी जाकर रहे । बदनामी और
बोझ उठाने से सब डरते । नंदिनी एक नाम नहीं ऐसी लाखों नंदिनियाँ होगी जो
विधवा हैं व्यवहार में और श्रंगार सुहागिन का करके कैदी तनहा जीवन केवल
बच्चे बङे होने के इंतिज़ार में भुगततीं रहतीं हैं ।
सबिया की हालत दूसरी थी उसका पति बिना मासिक की पीङा, गर्भ की अवस्था या
दिन रात समय मौसम मूड देखे उसका बलात्कार करता, और जब वह मना करती तो
तलाक की धमकी देता । थाली फेंक कर मार देता सिर पर, यदि भोजन में त्रुटि
होती तो ससुर देवर जेठ तमाशा मचा देते । कभी पसली टूट जाती कभी सिर पर
टाँके लगते । और एक दिन तलाकu देकर बच्चे छीनकर घर से निकाल दिया, भाई
ने शरण तो देदी किंतु मेहर मिलते ही, अपने दूर के नातेदार से निकाह करा
दिया, सबिया कभी तीन बच्चों की याद में रोती तो कभी सौतेले जवान बच्तों
की ईर्ष्या उद्दंडता से आतंकित रहती । अकसर कोई न कोईj मामूली सी गलती पर
खरी खोटी सुना डालता "ऐसी भली होती तो पहला क्यों छोङती,,,,
लक्ष्मी काल्पनिक नाम नहीं सच है जो ससुर की वासना का शिकार होने से तो
बच गयी किंतु तीन भ्रूण हत्याओं से हुये गर्भाशय के कैंसर से नहीं बच सकी
पति उसकी मौत के बाद एक "मोल की बीबी ले आया और वह केवल रसोई बिस्तर तक
ही नहीं सीमित रही बल्कि "ब्रुश बनाने का सारा मैनुअल कार्य उसको ही करना
पङता 'मोल की औरत का ताना सुनते सुनते एक दिन घर से भाग गयी, किंतु जाती
कहाँ, पकङ लायी गयी और तब से छत दरवाजा तक गुनाह कर दिया गया, एक दिन
सुना गंगा में कूद मरी ।
कितने उदाहरण??
लोग जब एक स्त्री पर मार पिटाई गाली गलौज देखते हैं तो उनको दया नहीं आती
अचंभा नहीं लगता ', क्योंकि यह एक सोशल प्रैक्टिस बन चुकी है कि विवाह के
बाद ससुरालियों को हक है 'दहेज के ताने देने का और पति को हक है जब मन हो
तब बिस्तर पर घसीट लेने का 'पुत्र संतान जोङे से हो जाने तक बच्चे पैदा
करवाने का और जब जैसा मन करे हर घरेलू सेवा कार्य कराने का, जो स्त्री उस
सब को नहीं कर पाती वह सुशीला नहीं वह, ताने मार डाँट खाने की पात्र है
और यदि वह हक की बात करे जवाब दे तो मारो मारो मारो जब तक कि उसकी सारी
अकङ नहीं निकल जाये ।
घरेलू हिंसा अधिनियम को बने हुये दशक होने को आया किंतु सबसे कम
फरियादें दर्ज होती है घरेलू हिंसा की । जबकि लगभग हर दूसरा घर
'स्त्रियों पर किसी न किसी रूप में ताने टोंचने व्यंग्य बंदिशें और
प्रतिभा हनन ही नहीं भीषण मारपीट आर्थिक और दैहिक अत्याचार भी करता है ।
कहीं जहाँ दंपत्ति पढ़े लिखे है स्त्री बोल लेती है कुछ अधिक किंतु जहाँ
दंपत्ति किसान मजदूर कारीगर दुकानदार है वहाँ स्त्री को बोलने देना
""नामर्दों "का काम कहा जाता है ।
ऐसा होता क्यों है?
क्योंकि भारतीय मर्दवादी पुरुषवादी समाज को ""स्त्री दासी के रूप में ही
देखने की आदत पङी हुयी है "याद करें तो कम से कम तीन पीढ़ियों की याद आती
है जहाँ बुजुर्ग स्त्रियाँ तक घर के लङकों के आने पर सँभल कर बैठ जाती
थीं ।
आज तक "लङकी दिखाकर ''पसंद कराने की क्रूर प्रथा जारी है ' बहुत कम
परिवारों में लङकी से पूछा जाता है लङका पसंद है? वैसे भी विवाह योग्य वर
घर खोजने में जो हाल हो चुका होता है वहाँ लङकी को अवसर कहाँ बचते है ना
कहने के ।
भारतीय लङकियों को "जीवन के लिये तैयार नहीं किया जाता, उनको होश आते ही
ससुराल के लिये ही तैयार किया जाता है बहुतायत घरों में आज भी, । लङकी
प्रेम विवाह कर ले तो पिता की नाक कट जाती है किंतु जो लङका उसे पसंद
नहीं उसके साथ ही विवाह करके भेजने पर कभी पिता माता को नहीं लगता कि
उन्होने एक लङकी को बलात्कार के लिये सौंप दिया है!!!
ये बलात्कार रोज होता है यौनिकता में कम किंतु हर पसंद को बदलकर हर इच्छा
को दबाकर हर सपने को मारकर ये बलात्कार नहीं? आगरा की एक बहिन राखी पर
आत्महत्या करके मर गयी क्योंकि वह वंचित कर दी गयी भाई से मिलने से ।
मेरी अपनी कजिन की बेटी मार दी गयी केवल अपने आभूषण ननद के विवाह पर सौंप
ने से इंकार करने पर ।
कितनी ही स्त्रियाँ चोटों पर मरहम पट्टी करके ताने खाती उठकर फिर काम काज
में लग जाती हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो ।
क्या हुआ जैसे ही कोई पूछता है वह अपनी ही बदनामी संतान की बदनामी और
बदले में फिर हिंसक व्यवहार होने के डर से बहाना बना देती है 'सीढ़ी से
गिर गयी "चक्कर आकर फिसल गयी, ।
जिन काँच की चूङियों को कलाई की रौनक बनाकर सुहाग के नाम पति को रिझाने
का प्रतीक समझा जाता है, 'वही चूङियाँ घरेलू हिंसा का सबसे बङा सुबूत है,

आप किसी स्त्री की कलाईयाँ और पीठ, उघाङकर देखें फोरेंसिक जाँच करायें
वहीं सबसे अधिक दाग मिलते हैं क्रूरता के ।
कैसे हिम्मत करे? घर से थाने चौकी जाने की?
जहानआरा, ने की थी ज़ुर्रत रिक्शे में बैठकर चली गयी थाने किंतु 'इतना
कानून हर स्त्री कहाँ समझती है कि' एफ आई आर 'लिखवाये!!

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Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117

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