सुधा राजे की कविता - "'मीत कान्ह मानी है""।

जाने नाहिं देख्यौ कोऊ क्वाँरी कै
बिआही है ।
जाने नाहिं लख्यौ कौन जात वंश
थांही है ।
जाने नांहि परख्यो कोऊ खरी है
कि खोटी है ।
जाने नाहिं जाँच्यौ ऊँच बखरी की कै
छोटी है ।
जाकौं कभऊँ,, आँस्यो,, नांहिं कानी है
कै स्यानी है ।
जाने नांहि सोच्यो कौन तरुणी,,
पुरानी है ।
नर नारि किन्नर किधौं वृक्ष वानर
है ।
गौ मोर मकरी कै सुंदर असुंदर है,
सारे तोर तारे "पंथ नेम नियम तोरे हैं

जाने मीत अर्थ सारे, रीत विर्त
जोरे हैं ।
कां है कितै है कु जाने कौन पाई है ।
साँची है कै झूठ कोऊ कथनी उङाई है ।
अब तौ "सुधा" मान आने मन ठानी है
रैइहौं इकेली """""किधौं मीत कान्ह
मानी है ।
रइहौँ इकेली किधौँ "मीत कान्ह
"मानी है
©®सुधा राजे

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Sudha Raje
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