Monday 11 August 2014

सुधा राजे की मुक्त कविता - ""काई और खाई""

किससे बातें करते हो? ऐसा तो कोई
नहीं सुना न देखा बंधु
ये कायरों की बस्ती है जहाँ पचास
लोगों के सामने "बच्चियों को छाती बाँह
गाल नोंचते दुपट्टे खींचते और धकियाते
"हुङदंगियों से "कोई बोल तक
नहीं पाता!!!!!!!!! किससे बाते करते हो??

जो घर में कैक्टस सजाते और टमाटर पर
सरकार गिराते है 'हमें नहीं लगता कोई
काई सूखने वाली है ""अलबत्ता जो जागते
हैं वे चल पङेगे जो चल रहे है शायद बेचैन
होकर दौङने लगें, किंतु, फ़िजां उस छोर
तक खराब है जिसको समझने के लिये गाँव
के भीतर किसान होकर
समझना पङेगा जो चूहे से भी परेशान कौये
से भी पंडित नाई मोची धोबी मल्लाह
सबका नेग देकर घर आये तो बनिया ले
जाये और समधी, बचा खुचा कुत्ता और
गाय, फिर भी बरसात डराती है और छत
भरभराती है लङकी सयानी हो और
बीबी की खाँसी पुरानी हो

असली लङाई है """कमाई और
सत्ता की ""हर तरह का ताकतवर हर
तरह की कमजोरी पर हावी है और
""निर्दोष "होना सबसे बङा दोष है
©®सुधा राजे

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Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
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Bijnor
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