Sunday 17 November 2013

ज़िंदग़ी ले
जो दिया था मैंने
लौटाया तुझे
बस गुनहग़र रूह का अपनी हूँ
याद आया मुझे
थे वो पुतले अक़्ल के
मैं सादग़ी समझे गया
मैं परायी पीर
रोया बंदगी समझे
गया
मैं समंदर रेत को
मीठी नदी समझे गया
मौत
थी हँसती किलकती ज़िदगी समझे
गया
पिसरे सल्बी
true child
कहके मक्तल
sloughterज़ोरावर
लाया मुझे
हूँ गुनहग़र रूह अपनी ही याद
आया मुझे
थे बहाना मुझको रस्ते से
हटाने
के लिये
झूठ के रिश्ते बने थे बस
ज़माने के
लिये
सारी बातें
ही थीं नकली एक दाने
wise के लिये
आसमाँ धरती की बातें
थीं दिखाने
के लिये
जब जले तो फिर कोई
साया न
मिल पाया मुझे
हूँ गुनहग़र रूह
का अपनी ही याद
आया मुझे
क्या कहा था ज़िन्दगी भर
साथ देंगे हाथ वो
वो बयांबांमांदगी
wandering in fotests
को छोङ गये इक रात जो
दर्द से ज़मकर बरफ हो गये
नरम ज़ज्बात वो
वो जो लाये थे दिखाने
सावनी बरसात को
हाँ उन्हीं हाथों ज़हर
का ज़ाम फिर आया मुझे ।
कितनी मासूमी से
सहला कर रखे पाले शज़र
सींचते ख़्वाबों में नींदों में
जो रस्ते उम्र भर
कोई मंज़िल
थी तो क्या थी भूल
गयी ठंडी सहर
गर्म
धरती आसमां जलता भटकता हर
शहर
कितनी आवाज़े दी कोई
भी न मिल पाया मुझे
हूँ गुनहगर-----—-
क़त्ल होते रह गये मासूम
अरमानों के दिल
रात थी बेदार सारे दिन
थे तन्हा संग़दिल
हर तरफ़ गिर्दाब साहिल
डूबते क़श्ती में पल
रह गयी अदनी सी हिम्मत
जलज़लों से यूँ दहल
नाख़ुदा वो ग़म
सुधा जिसमें
ख़ुदा लाया मुझे
हूँ ग़ुनहग़र रूह
का अपनी ही याद
आया मुझे
©®¶©®
Sudha Raje
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
7669489600
sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक है ।

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