Wednesday 6 November 2013

सुधा राजे ।।।गुलाब चेहरे पे

Sudha Raje
Mar 4 ·
लिखी है वक्त ने सौ सौ किताब
चेहरे पे
कहीं तबाही कहीं इंकलाब चेहरे
पे
प़ढेगा कौन झुर्रियों में कहाँ क्या देखा
नयी फ़सल में छुपा इंक़लाब चेहरे पै
गली के मोङ पे बैठा फ़कीर कहता है
तेरी आँखों में माहो आफ़ताब चेहरे पै
दिनों से और तवारीख से गिनो क्यों हो
सदी की उम्र छिपी है ज़नाब चेहरे पै
सवाल मेरे जमाने पै इक बग़ावत हैं
ग़दर क़हर है मेरा हर ज़वाब चेहरे पै
ज़हानो-ज़िंदगी ने हाथ और क़लम तोङे
लिखे गये वो जख़म बेहिसाब चेहरे पै
हम आज़माते तो ये दोस्ती नहीँ टिकती
न टिकता रिश्ता कोई इज़्तिराब चेहरे पे
सुख़न सुख़न की दाद बज़्म में जो करते थे
उन्हीँ की कबसे थी नीयत खराब चेहरे पै
ज़माने भर का दर्द लेके क्या कहाँ लिखते
शायरी ऐसे हुयी लाज़वाब चेहरे पै
बस एक बार
जो पहिना तो फिर नहीं उट्ठा
सुधा ये दर्द जो दिल पे नक़ाब
चेहरे पे
हम अपने दिल की आग़ पीते रहे जलते रहे
हरफ़ हरफ़ पै शमाँ औऱ् गुलाब चेहरे पे
©®¶©®
Sudha Raje
Dta★Bjnr

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