Saturday 2 November 2013

दीप ये मुझसे नहीं जलता जला दो ।

Sudha Raje
1 hour ago ·
दीप ये मुझसे नहीं जलता जला दो ।
तम अमा का नेह कंजों में भुला दो ।

लाओ तो तूली रँगोली मैं बनाऊँ ।
द्वार वंदनवार किसलय के सजाऊँ।
मुक्त हो परिहास तो मैं चौक पूरूँ ।
दो नवल उत्साह धन मैं भी बचाऊँ
रूप तेरे ध्यान का प्रतिबिंब हो ले

आम्रदुम से तोङ कोमल पत्र ला दो ।
दीप ये मुझसे नहीं जलता जला दो ।

अल्पना के संग मेरी कल्पना में ।

तुम भरो तो रंग मेरी प्रार्थना में ।

भाव की गागर सुधा छलकी कलश में।

झिलमिलाता गेह स्वप्निल कामना में।

कंटकों चलते तृषित मन प्राण टूटे ।

तुम सरल मुस्कान से अमृत पिला दो ।

दीप ये जलता नहीं मुझसे जला दो ।

षट् रसों से युक्त मैं व्यञ्जन बनाऊँ ।

दीप तुम बालो कि मैं अञ्जन सजाऊँ

हो प्रखर आलोक ये अवसाद जाये ।

छेङ दो वीणा कि गुञ्जन गुनगुनाऊँ ।

नृत्य करते पग मचलते ताल दे दो ।

तिक्तता संतृप्त हो मधु पर्क ला दो ।
दीप ये मुझसे नहीं जलता जला दो ।

भित्तियाँ तन की हृदय की धो रही हूँ।

दृग पलक सूखे अकिंचन रो रही हूँ

ये मेरा संसार तुम से तुम समझलो ।

इंद्रधनुषी रंग सपने बो रही हूँ।

हर्ष की आमोद फुलझङियाँ बिखेरो।

प्रिय गगन कंदील धर मन झिलमिला दो ।
©®sudha raje

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