सुझा राजे की एक नज्म
Sudha Raje
आना जाना अनजाने का केवल
एक खबर है साहब
कौन किसी के दर्द पे
रोया ऐसा मेरा शहर है
साहब
रोज किसी की चिता से
जिनकी रोजी रोटी चलती हो
कत्लेआम पे गिरती लाशें
त्यौहारी मंज़र है
साहिब
कल फुटपाथ बाँह में भरकर सोता था नभ
ओढ़ के जो
वो अनाथ मंटुआ शहर का दादा भाई क़हर
है साहिब
बस्ती में क्यों आग लगी थी जाँच
कमेटी बैठी है
झुग्गी बस्ती पर बिल्डर की ठेकेदार
नज़र है साहिब
कब्रिस्तान बहाना भर था असल बात
मतगणना है
राजनीति का ठेठ पहाङा बहुसंख्यक बंजर
है साहिब
नील लगे लकदक कुरते पर कल तक लाल
दाग भी थे
लालढाँग बस्तर दिल्ली तक चूङी की झर
झर है साहिब
बहुत
चीखती हुयी आवाज़ों की मुखिया थी हरप्यारी
कई महिने से हुयी लापता
मरद हुआ बेघर है साहिब
भुने हुये काजू पिश्ते में
मुर्गी तंदूरी भी थी
शपथपत्र पर दस्तखतों पे लहू हिना खंज़र
है साहिब
©®¶©®¶
Sudha Raje
Feb 18
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आना जाना अनजाने का केवल
एक खबर है साहब
कौन किसी के दर्द पे
रोया ऐसा मेरा शहर है
साहब
रोज किसी की चिता से
जिनकी रोजी रोटी चलती हो
कत्लेआम पे गिरती लाशें
त्यौहारी मंज़र है
साहिब
कल फुटपाथ बाँह में भरकर सोता था नभ
ओढ़ के जो
वो अनाथ मंटुआ शहर का दादा भाई क़हर
है साहिब
बस्ती में क्यों आग लगी थी जाँच
कमेटी बैठी है
झुग्गी बस्ती पर बिल्डर की ठेकेदार
नज़र है साहिब
कब्रिस्तान बहाना भर था असल बात
मतगणना है
राजनीति का ठेठ पहाङा बहुसंख्यक बंजर
है साहिब
नील लगे लकदक कुरते पर कल तक लाल
दाग भी थे
लालढाँग बस्तर दिल्ली तक चूङी की झर
झर है साहिब
बहुत
चीखती हुयी आवाज़ों की मुखिया थी हरप्यारी
कई महिने से हुयी लापता
मरद हुआ बेघर है साहिब
भुने हुये काजू पिश्ते में
मुर्गी तंदूरी भी थी
शपथपत्र पर दस्तखतों पे लहू हिना खंज़र
है साहिब
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Sudha Raje
Feb 18
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