Wednesday 6 November 2013

बुत परस्त लङकी

Sudha Raje
Yesterday at 10:45pm ·
लङकी बुतपरस्त है ।
एक मूर्ति पूजक को आसरा और
क्या होता!!
सावन में मिट्टी की फागुन में गोबर
की मूर्तियाँ बना कर पूज लीं।
पूजा में पीतल की और कंठ में रजत स्वर्ण
की मूर्तियाँ पूज लीं।
फिर लकङी से कोयले तक पूजा खेत में
बिजूका और आँगन में शालिग्राम पूजे ।
हर चीज का पुतला बनाया या फिर
चित्र
एक दिन अपना चित्र बनाने
जब, बैठे तो रंग सूख चुके
थे ।
फिर खुद ही प्रतिमा खुद ही चित्र
हो गये ।
देखा तो पाया ये कोई अज़नबी चित्र
था ।
ये कोई अनजानी मूर्ति ।
सावन फागुन चैत खाली ही जाने लगे
कि पूजने लगे उन चित्रों को ।
एक था प्रेम
एक था सुख
दोनों खुद को कभी
साथ नहीं पाये ।
लङकी मूर्ति पूजती रही
कभी मीरा
कभी राधा
कभी सुधा
कोई उनके सिवा जान पाया
ईश मिला या नहीं
जिसने भी पूछा चित्र
हो गया मूर्ति हो गया।
©®सुधा राजे
9/7/2012

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