गाली गैरक़ानूनी है तो बंद क्यों नहीं करवाते साब
Sudha Raje
माननीयो /योर ऑनर्ज//
जब देश में दलित को जाति सूचक सामान्य
सदियों पुराने सरनेम से बुलाना कानूनन
ज़ुर्म है अब तो ।।
क्या किसी मानव
को ऐसी विकलांगता जो उसको कुदरतन
मिली या दुर्घटनावश को गाली के तौर
पर हेयता हिक़ारत चरम घृणा और
वीभत्स भेदभावपूर्ण नफरत के साथ
पुकारना ।
कानूनी सामाजिक नैतिक और मानवीय
अपराध नहीं???!????
क्या इस मानसिकता को बदलने की जरूरत
नहीं????
इंसान को केवल यौन सक्षमता से
ही पहचाना जाये?????
जो हर तरह से सही है दिल दिमाग हाथ
पाँव सब सही काम करते हैं और वह
किसी न किसी मानव जोङे
की ही तो संतान है कोई क्लोन
या निर्माण शाला की मशीन नहीं!!!!!!
तब सिर्फ़ एक मात्र विकलांगता से
कि वह किसी से यौन संबंध
नहीं बना सकता /सकती//
तो उसको घनघोर घृणा का पात्र
बना दिया जाये???
हिजङा नामर्द नपुंसक
जनाना जनखा खोजा मीला भाङू खसिया
ये सब शब्द बङे बङे राजनेता पत्रकार
समाजसुधारक साहित्यकार तक जिस
हिक़ारत से जरा जरा सी बात पर अपने
किसी विरोधी के लिये लेखन वाक् भाषण
और सार्वजनिक मंचो तक से हँसी उङाते
हुये कहते लिखते रहते हैं । यहाँ तक कि कई
माननीय मंत्रियों तक पर व्यंग्य और
कार्टून में उनको नारी वेश में दिखाकर
मखौल उङाया जा रहा है तब????
क्या जो वास्तव में सेक्स विकलांग हैं
दुखी नहीं होते होंगे?????
एक सेक्स विकलांगता उसके डॉक्टर
मास्टर मिनिस्टर जज वकील दुकानदार
बनने में कहाँ आङे आती है????
क्या अंधे या लँगङे गूँगे या बहरे को समाज
की मुख्यधारा में जीने का हक नहीं ।।
अगर वो किसी से विवाह नहीं करता //
करती और किसी अनाथ बच्चे को गोद
लेकर पाले और सामान्य जीवन जीये
तो क्या बुरा है??
ये पुरूषवादी समाज का चरम घिनौना रूप
है कि निरदोष निरापद मावव
को कुदरती विकलांगता के कारण सिर्फ
इसलिये गाली व्यंग्य कटाक्ष
खऱी कार्टूनी चित्रण की विषय वस्तु
बना दिया ।।
एक आदमी पुरूषत्व यौन क्षमता रखता है
या नहीं ये सिर्फ
उसकी पत्नी का मसला है
बाकी किसी को इससे कोई
वास्ता नहीं होना चाहिये ।
इसी तरह एक स्त्री सेक्स विकलांग
का मसला सिर्फ उसके
पति का निजी मामला है ।
गे होना नामर्द होना बाँझ होना सेक्स
विकलांग होना भगवान का कृत्य है
अल्लाह का काम है गॉड टॉर्ट है ।
तो ईश्वरीय देन को घृणा करने उपहास
करने वाले
अपराधी ही नहीं पापी भी।।
धिक्कार
उन सबको जो किसी विपक्षी का मजाक
उङाने के लिये किसी नेता या पब्लिक
फिगर को जनाना वेश पहना कर न सिर्फ
पत्रकारिता कला साहित्य का अपमान
करते हैं वरन् स्त्री का भी अपमान् करते
है । चूङियों को सुहाग मानकर
पूजती स्त्री की चूङी मज़ाक है गाली है
उन लोगों के लिये जो कुदरत के दिये सेक्स
क्षमता को अपना घमंड मान बैठे हैं??
कई धर्मों में पुनर्जन्म की अवधारणा है
तो व्यवस्था है जो ईश कृत्य की मखौल
बनाये जीव हिंसा करे वह नर्क जाये और
अगले जन्म में वही दुख भोगे ।
तो क्या धर्म का भी नियम नहीं तोङते
ऐसे घमंडी।
मेरी अपील है कि ।
किन्नर हिजङा नामर्द आदि का अपमान
सूचक प्रयोग दंडनीय घोषित
हो उनको यौनविकलांग मान कर आरक्षण
देकर स्वाबलंबी बनाये
©®¶©®¶
Sudha raje
आप देखे कि इस
मानसिकता की क्रूरता का ही परिणाम
है कि हर साल लाखों बच्चे माँ बाप तक
चुपचाप फेंक देते हैं ।।या वे बच्चे चोर और
कलंक की तरह ही पाले जाते हैं । ।
लाखों लोग समाज परिवार और
रोजी शिक्षा पूजा और सभा सम्मेलन के
हक़ से तक वंचित कर दिये जाते हैं ।। इनके
लिये केवल एक रास्ता छोङा है नाचने
गाने का परायी शादी और
परायी संतान के होने का ज़श्न
कैसा दर्दनाक रिवाज़!!!! जिसका विवाह
नहीं हो सकता जो बच्चे पैदा नहीं कर
सकता वह पराये घमंड का पोषण करने
ब्याह और जचकी पर नाचे इंसान
कितना क्रूर जीव है आकलन करें
पहला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पुन
परिभाषित करनो की जरुरत है.और
दूसरा समाज में भ्रष्टाचार है
का आईना सरकारी व्यवस्था में
अराजकता है। भ्रष्टाचार के
गंगोत्री समाज में जब तक ठेकादार रहेगे,
पीडितों को ऐसे पीडा से हमेशा दो-चार
होना पडेगा।
ठीक जगह अंगुली रखी है
इसका कानून भी बनना चाहिय
Jul 26
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माननीयो /योर ऑनर्ज//
जब देश में दलित को जाति सूचक सामान्य
सदियों पुराने सरनेम से बुलाना कानूनन
ज़ुर्म है अब तो ।।
क्या किसी मानव
को ऐसी विकलांगता जो उसको कुदरतन
मिली या दुर्घटनावश को गाली के तौर
पर हेयता हिक़ारत चरम घृणा और
वीभत्स भेदभावपूर्ण नफरत के साथ
पुकारना ।
कानूनी सामाजिक नैतिक और मानवीय
अपराध नहीं???!????
क्या इस मानसिकता को बदलने की जरूरत
नहीं????
इंसान को केवल यौन सक्षमता से
ही पहचाना जाये?????
जो हर तरह से सही है दिल दिमाग हाथ
पाँव सब सही काम करते हैं और वह
किसी न किसी मानव जोङे
की ही तो संतान है कोई क्लोन
या निर्माण शाला की मशीन नहीं!!!!!!
तब सिर्फ़ एक मात्र विकलांगता से
कि वह किसी से यौन संबंध
नहीं बना सकता /सकती//
तो उसको घनघोर घृणा का पात्र
बना दिया जाये???
हिजङा नामर्द नपुंसक
जनाना जनखा खोजा मीला भाङू खसिया
ये सब शब्द बङे बङे राजनेता पत्रकार
समाजसुधारक साहित्यकार तक जिस
हिक़ारत से जरा जरा सी बात पर अपने
किसी विरोधी के लिये लेखन वाक् भाषण
और सार्वजनिक मंचो तक से हँसी उङाते
हुये कहते लिखते रहते हैं । यहाँ तक कि कई
माननीय मंत्रियों तक पर व्यंग्य और
कार्टून में उनको नारी वेश में दिखाकर
मखौल उङाया जा रहा है तब????
क्या जो वास्तव में सेक्स विकलांग हैं
दुखी नहीं होते होंगे?????
एक सेक्स विकलांगता उसके डॉक्टर
मास्टर मिनिस्टर जज वकील दुकानदार
बनने में कहाँ आङे आती है????
क्या अंधे या लँगङे गूँगे या बहरे को समाज
की मुख्यधारा में जीने का हक नहीं ।।
अगर वो किसी से विवाह नहीं करता //
करती और किसी अनाथ बच्चे को गोद
लेकर पाले और सामान्य जीवन जीये
तो क्या बुरा है??
ये पुरूषवादी समाज का चरम घिनौना रूप
है कि निरदोष निरापद मावव
को कुदरती विकलांगता के कारण सिर्फ
इसलिये गाली व्यंग्य कटाक्ष
खऱी कार्टूनी चित्रण की विषय वस्तु
बना दिया ।।
एक आदमी पुरूषत्व यौन क्षमता रखता है
या नहीं ये सिर्फ
उसकी पत्नी का मसला है
बाकी किसी को इससे कोई
वास्ता नहीं होना चाहिये ।
इसी तरह एक स्त्री सेक्स विकलांग
का मसला सिर्फ उसके
पति का निजी मामला है ।
गे होना नामर्द होना बाँझ होना सेक्स
विकलांग होना भगवान का कृत्य है
अल्लाह का काम है गॉड टॉर्ट है ।
तो ईश्वरीय देन को घृणा करने उपहास
करने वाले
अपराधी ही नहीं पापी भी।।
धिक्कार
उन सबको जो किसी विपक्षी का मजाक
उङाने के लिये किसी नेता या पब्लिक
फिगर को जनाना वेश पहना कर न सिर्फ
पत्रकारिता कला साहित्य का अपमान
करते हैं वरन् स्त्री का भी अपमान् करते
है । चूङियों को सुहाग मानकर
पूजती स्त्री की चूङी मज़ाक है गाली है
उन लोगों के लिये जो कुदरत के दिये सेक्स
क्षमता को अपना घमंड मान बैठे हैं??
कई धर्मों में पुनर्जन्म की अवधारणा है
तो व्यवस्था है जो ईश कृत्य की मखौल
बनाये जीव हिंसा करे वह नर्क जाये और
अगले जन्म में वही दुख भोगे ।
तो क्या धर्म का भी नियम नहीं तोङते
ऐसे घमंडी।
मेरी अपील है कि ।
किन्नर हिजङा नामर्द आदि का अपमान
सूचक प्रयोग दंडनीय घोषित
हो उनको यौनविकलांग मान कर आरक्षण
देकर स्वाबलंबी बनाये
©®¶©®¶
Sudha raje
आप देखे कि इस
मानसिकता की क्रूरता का ही परिणाम
है कि हर साल लाखों बच्चे माँ बाप तक
चुपचाप फेंक देते हैं ।।या वे बच्चे चोर और
कलंक की तरह ही पाले जाते हैं । ।
लाखों लोग समाज परिवार और
रोजी शिक्षा पूजा और सभा सम्मेलन के
हक़ से तक वंचित कर दिये जाते हैं ।। इनके
लिये केवल एक रास्ता छोङा है नाचने
गाने का परायी शादी और
परायी संतान के होने का ज़श्न
कैसा दर्दनाक रिवाज़!!!! जिसका विवाह
नहीं हो सकता जो बच्चे पैदा नहीं कर
सकता वह पराये घमंड का पोषण करने
ब्याह और जचकी पर नाचे इंसान
कितना क्रूर जीव है आकलन करें
पहला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पुन
परिभाषित करनो की जरुरत है.और
दूसरा समाज में भ्रष्टाचार है
का आईना सरकारी व्यवस्था में
अराजकता है। भ्रष्टाचार के
गंगोत्री समाज में जब तक ठेकादार रहेगे,
पीडितों को ऐसे पीडा से हमेशा दो-चार
होना पडेगा।
ठीक जगह अंगुली रखी है
इसका कानून भी बनना चाहिय
Jul 26
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