कोठरी के अमोल चित्र
Sudha Raje
यह एक सच्ची कहानी थी ।
अँधेरों में रहती एक
राजकुमारी थी जिसकी आँखें बचपन में
चली गयीं थीं । वह रोती।चित्र
बनाती ।गीत गाती । सिसकती आँखों के
लिये ।कि एक दिन कहीं दूर किसी के
गुनगुनाने की आवाज़ें आयीं ।वह रोना भूल
कर,गीत सुनने लगी, वह गीत
दुहराती और उधर दूर से गीत के जवाब में
गीत गाये जाते ।वर्षों हो गये एक दिन
गायक ने सोचा दीवारों के भीतर जाकर
देखें मुझे प्यारे मीठे गीत गाने को कौन
देती है ।
वह सौदागर बनकर
आया अंधी राजकुमारी को देखकर खूब
रोया । उसने सबको मना लिया कि आँखें
उसके शहर में मिल जायेँगी ।
राजकुमारी गुनगुनाती चली आयी । शहर
के लोगों ने अंधी राजकुमारी का परिहास
किया । और दया दिखाने के बहाने चोट
पहुँचायी । आँखें मिल गयीं ।
लेकिन जब उसने सामने देखा एक वनमानुष
था जो मानव के नकली वेश में था ।
राजकुमारी ने गाना चाहा वह
गुर्राया ।
उसने चित्र बनाने चाहे रंग बिखेर दिये ।
राजकुमारी ने पूछा क्यों क्यों क्यों??????
क्यों लाये मुझे?? क्यों दी आँखें???
क्यों गाये गीत??? ।
वह हँसा ठहाका लगाकर बोला ।मैं
देखना चाहता था असली राजकुमारी कैसे
गाती है कैसे रोती है कैसे हँसती है ।
बस!!!!!
इतनी सी बात के लिये तुमने छल रच
दिया?? विश्वास तोङ दिया ।
कैदी बना दिया???
चीखो राजकुमारी मैं देखना चाहता हूँ एक
सचमुच डरी हुयी परी राजकुमारी । वह
नहीं डरी । वह नहीं चीखी । उसने
भय़ानक दाङें सींग औऱ पंजे दिखाये । वह
नहीं डरी नहीं चीखी न मदद माँगी ।
उस पशुमानव को अचंभा हुआ उसने आँखों पर
पट्टी बाँध कर अँधेरी कोठरी में डाल
दिया । राजकुमारी अब पहले जैसा महसूस
कर रही थी । जब वह महल के बागों में
बिना देखे चलती थी गंध स्पर्श और स्वर
ध्वनि के सहारे ।
उसकी चेतना कोठरी की परिधि में
गा उठी ।दीवारों जख्मों से बहते रक्त से
चित्र बनने लगे । दूर कहीं कोई सुन कर
गुनगुनाने लगा गाने लगा ।मगर इसबार
उसने कान बंद कर लिये अब उसे आँखों के
बिना जीना आ गया था और वह
दुनियाँ नहीं देखना चाहती थी ।
वर्षों बाद एक समाधि पर वनमानुष
रोता हुआ फूलों के पौधे उगा रहा था ।ये
वही पारिजात थे जो वह दीवारों के
पार रोज फेंकता था ।
अब समाधि पर हवा से पारिजात बिखर
रहे थे ।
लोग कोठरी को देखने आते औऱ चकित रह
जाते टूटे काँच और रक्त मात्र से इतने
नायाब चित्र किसी अंधी लङकी ने कैसे
बनाये ।मगर इनमें एक भी चित्र
राजकुमारी का नहीं था।
©¶©®¶
सुधा राजे
Sudha Raje
Apr 27
यह एक सच्ची कहानी थी ।
अँधेरों में रहती एक
राजकुमारी थी जिसकी आँखें बचपन में
चली गयीं थीं । वह रोती।चित्र
बनाती ।गीत गाती । सिसकती आँखों के
लिये ।कि एक दिन कहीं दूर किसी के
गुनगुनाने की आवाज़ें आयीं ।वह रोना भूल
कर,गीत सुनने लगी, वह गीत
दुहराती और उधर दूर से गीत के जवाब में
गीत गाये जाते ।वर्षों हो गये एक दिन
गायक ने सोचा दीवारों के भीतर जाकर
देखें मुझे प्यारे मीठे गीत गाने को कौन
देती है ।
वह सौदागर बनकर
आया अंधी राजकुमारी को देखकर खूब
रोया । उसने सबको मना लिया कि आँखें
उसके शहर में मिल जायेँगी ।
राजकुमारी गुनगुनाती चली आयी । शहर
के लोगों ने अंधी राजकुमारी का परिहास
किया । और दया दिखाने के बहाने चोट
पहुँचायी । आँखें मिल गयीं ।
लेकिन जब उसने सामने देखा एक वनमानुष
था जो मानव के नकली वेश में था ।
राजकुमारी ने गाना चाहा वह
गुर्राया ।
उसने चित्र बनाने चाहे रंग बिखेर दिये ।
राजकुमारी ने पूछा क्यों क्यों क्यों??????
क्यों लाये मुझे?? क्यों दी आँखें???
क्यों गाये गीत??? ।
वह हँसा ठहाका लगाकर बोला ।मैं
देखना चाहता था असली राजकुमारी कैसे
गाती है कैसे रोती है कैसे हँसती है ।
बस!!!!!
इतनी सी बात के लिये तुमने छल रच
दिया?? विश्वास तोङ दिया ।
कैदी बना दिया???
चीखो राजकुमारी मैं देखना चाहता हूँ एक
सचमुच डरी हुयी परी राजकुमारी । वह
नहीं डरी । वह नहीं चीखी । उसने
भय़ानक दाङें सींग औऱ पंजे दिखाये । वह
नहीं डरी नहीं चीखी न मदद माँगी ।
उस पशुमानव को अचंभा हुआ उसने आँखों पर
पट्टी बाँध कर अँधेरी कोठरी में डाल
दिया । राजकुमारी अब पहले जैसा महसूस
कर रही थी । जब वह महल के बागों में
बिना देखे चलती थी गंध स्पर्श और स्वर
ध्वनि के सहारे ।
उसकी चेतना कोठरी की परिधि में
गा उठी ।दीवारों जख्मों से बहते रक्त से
चित्र बनने लगे । दूर कहीं कोई सुन कर
गुनगुनाने लगा गाने लगा ।मगर इसबार
उसने कान बंद कर लिये अब उसे आँखों के
बिना जीना आ गया था और वह
दुनियाँ नहीं देखना चाहती थी ।
वर्षों बाद एक समाधि पर वनमानुष
रोता हुआ फूलों के पौधे उगा रहा था ।ये
वही पारिजात थे जो वह दीवारों के
पार रोज फेंकता था ।
अब समाधि पर हवा से पारिजात बिखर
रहे थे ।
लोग कोठरी को देखने आते औऱ चकित रह
जाते टूटे काँच और रक्त मात्र से इतने
नायाब चित्र किसी अंधी लङकी ने कैसे
बनाये ।मगर इनमें एक भी चित्र
राजकुमारी का नहीं था।
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सुधा राजे
Sudha Raje
Apr 27
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