कुँवारी माता एक हक
Sudha Raje
तोङना कुछ भी नहीं है दा बस नये
को भी जोङना है जो सकारात्मक है ।
यातनाजनक घिसटन से
स्वावलंबी अकेलाजीवन साहसी और सुखद
हो सकता है ये आयपास तमाम उदाहरण हैं
बस हम स्वीकार नहीं करके
उनको अपमानित करते हैं यही गलत है ।
Like · 2 · Edit · Nov 16 at 9:06am
Sudha Raje
तलाकशुदा माँये कुँवारी विधवायें
छली प्रेमिकायें और अविवाहित रह
गयी दीदियाँ सवाली हैं
Like · 3 · Edit · Nov 16 at 9:08am
Sudha Raje
मतलब यही कि चाहे पुरुष चबाकर कोख
पर थूक दे???? परंतु सक्षम होकर भी बेमेल
और अनचाही शादी जरूर करो चाहे
जीवन दोज़ख जहन्नुम बन जाये ।।लेकिन
अगर सही मैच नहीं तो अकेले ही शान से
सिर उठाकर जीने का फैसला मत करो??
चाहे तलाकशुदा विधवा या घर
की कैदी रहो!!!! इनकी संख्या लाखों है ।
Like · 1 · Edit · Nov 16 at 9:55am
Sudha Raje
सवाल सामंजस्य का नहीं है एक
स्वावलंबी समर्थ लङकी बेमेल बिना प्रेम
बिना सम्मान की शादी क्यों करे??बच्चे
तो वह अकेले ही पैदा कर सकती है और
गोद ले सकती है तो किसी निकम्मे
नालायक और
कपटी आदमी लालची की दासता गुलामी करने
की बजाय अच्छा है अगर सही मैच
ना हो तो अकेली रहे ।सामंजस्य
का मतलब नब्बे परसेंट मामलों में
लङकी की कुरबानी है कैरियर शरीर
परिश्रम और
पिता की तथा अपनी पहचान और दौलत
की कुरबानी ।जबकि कोई
गारंटी नहीं बेमेल विवाह के निभने की
Like · 2 · Edit · Nov 16 at
11:43am
Sudha Raje
समाज को बनाये रखने के नाम पर
अत्याचार जारी रखने की परंपरा कब
तक?? झुकना स्त्री होने भर की वजह से??
तब वह तो मोहताज नहीं!!! जब प्रेम और
मान नहीं और मन का मेल नही तो केवल
शादी सिवा ढोंग के कुछ नहीं औरत
की यातना सहने की ताकत पर बने ऐसे
नाते सिवा छल के कुछ नहीं
Like · 2 · Edit · Nov 16 at
11:45am
Sudha Raje
सामंजस्य कभी परंपरा से नहीं रहा पुरुष
के हिस्से ।जनमभूमि छोङना घर रहकर
घरेलू सेवायें करना किचिन सँभालना बच्चे
पालना और पुरुष के नखरे
उठाना परिचारिका बनकर उन
ससुरालियों के नखरे झेलना जो बहू
को फूटी आँखों पसॆद नहीं करते केवल
गलतियाँ खोजते रहते हों । ये सब
वहाँ तक ठीक ठाक चल
गया जहाँ लङकी के पिता दहेज देते रहे
और लङकी चरणों में पङी रोती रही अब
जब लङकी मोहताज नहीं है तब?
रिश्ता परंपरा मजहब के नाम पर
नहीं निभेगा वहाँ तो कुदरती प्रेम और
सम्मान ही होगा तभी क्यों मजबूर
किया जाये उस
लङकी को जो अकेली रहना चाहती है और
महसूस करती है कि वह किसी पुरुष
की दासी नहीं बन सकती और
ना ही इतना समझौता करने की उसमें
गुंजाईश है??रहने दो न उसे अकेला रहकर
बच्चे पालकर रहने दो कमाती खाती खुश
माँ क्या परेशानी है???क्या सब
पति वाली औरते खुश है????बेशक नहीं तब
ये फैसला क्यों नहीं ले सकती एक सक्षम
लङकी कि वह किसी से
शादी नहीं करेगी बल्कि बच्चा गोद ले ले
लेगी और या खुद का क्लोन शिशु जनम दे
कर अकेली रहेगी यहाँ न हम
शादी की बात कर रहे है न परिवार
की ।केवल लङकी की कि उसे हक है
बिना पुरुष की दासी बने
अकेली सुखी जिंदगी जीने का बस्स
Like · Edit · Nov 16 at 12:16pm
तोङना कुछ भी नहीं है दा बस नये
को भी जोङना है जो सकारात्मक है ।
यातनाजनक घिसटन से
स्वावलंबी अकेलाजीवन साहसी और सुखद
हो सकता है ये आयपास तमाम उदाहरण हैं
बस हम स्वीकार नहीं करके
उनको अपमानित करते हैं यही गलत है ।
Like · 2 · Edit · Nov 16 at 9:06am
Sudha Raje
तलाकशुदा माँये कुँवारी विधवायें
छली प्रेमिकायें और अविवाहित रह
गयी दीदियाँ सवाली हैं
Like · 3 · Edit · Nov 16 at 9:08am
Sudha Raje
मतलब यही कि चाहे पुरुष चबाकर कोख
पर थूक दे???? परंतु सक्षम होकर भी बेमेल
और अनचाही शादी जरूर करो चाहे
जीवन दोज़ख जहन्नुम बन जाये ।।लेकिन
अगर सही मैच नहीं तो अकेले ही शान से
सिर उठाकर जीने का फैसला मत करो??
चाहे तलाकशुदा विधवा या घर
की कैदी रहो!!!! इनकी संख्या लाखों है ।
Like · 1 · Edit · Nov 16 at 9:55am
Sudha Raje
सवाल सामंजस्य का नहीं है एक
स्वावलंबी समर्थ लङकी बेमेल बिना प्रेम
बिना सम्मान की शादी क्यों करे??बच्चे
तो वह अकेले ही पैदा कर सकती है और
गोद ले सकती है तो किसी निकम्मे
नालायक और
कपटी आदमी लालची की दासता गुलामी करने
की बजाय अच्छा है अगर सही मैच
ना हो तो अकेली रहे ।सामंजस्य
का मतलब नब्बे परसेंट मामलों में
लङकी की कुरबानी है कैरियर शरीर
परिश्रम और
पिता की तथा अपनी पहचान और दौलत
की कुरबानी ।जबकि कोई
गारंटी नहीं बेमेल विवाह के निभने की
Like · 2 · Edit · Nov 16 at
11:43am
Sudha Raje
समाज को बनाये रखने के नाम पर
अत्याचार जारी रखने की परंपरा कब
तक?? झुकना स्त्री होने भर की वजह से??
तब वह तो मोहताज नहीं!!! जब प्रेम और
मान नहीं और मन का मेल नही तो केवल
शादी सिवा ढोंग के कुछ नहीं औरत
की यातना सहने की ताकत पर बने ऐसे
नाते सिवा छल के कुछ नहीं
Like · 2 · Edit · Nov 16 at
11:45am
Sudha Raje
सामंजस्य कभी परंपरा से नहीं रहा पुरुष
के हिस्से ।जनमभूमि छोङना घर रहकर
घरेलू सेवायें करना किचिन सँभालना बच्चे
पालना और पुरुष के नखरे
उठाना परिचारिका बनकर उन
ससुरालियों के नखरे झेलना जो बहू
को फूटी आँखों पसॆद नहीं करते केवल
गलतियाँ खोजते रहते हों । ये सब
वहाँ तक ठीक ठाक चल
गया जहाँ लङकी के पिता दहेज देते रहे
और लङकी चरणों में पङी रोती रही अब
जब लङकी मोहताज नहीं है तब?
रिश्ता परंपरा मजहब के नाम पर
नहीं निभेगा वहाँ तो कुदरती प्रेम और
सम्मान ही होगा तभी क्यों मजबूर
किया जाये उस
लङकी को जो अकेली रहना चाहती है और
महसूस करती है कि वह किसी पुरुष
की दासी नहीं बन सकती और
ना ही इतना समझौता करने की उसमें
गुंजाईश है??रहने दो न उसे अकेला रहकर
बच्चे पालकर रहने दो कमाती खाती खुश
माँ क्या परेशानी है???क्या सब
पति वाली औरते खुश है????बेशक नहीं तब
ये फैसला क्यों नहीं ले सकती एक सक्षम
लङकी कि वह किसी से
शादी नहीं करेगी बल्कि बच्चा गोद ले ले
लेगी और या खुद का क्लोन शिशु जनम दे
कर अकेली रहेगी यहाँ न हम
शादी की बात कर रहे है न परिवार
की ।केवल लङकी की कि उसे हक है
बिना पुरुष की दासी बने
अकेली सुखी जिंदगी जीने का बस्स
Like · Edit · Nov 16 at 12:16pm
Comments
Post a Comment