बच्चे 6
Sudha Raje
बच्चे 6-
एक था हेयर ड्रैसर जब जब छोटी और
किशोर लङकियों के बाल काटता ।
कैंची बालों पर चलती और
उंगलियाँ गालों पर साशय टिकी रहती ।
हमेशा शराब के नशे में रहता । हुनरमंद
कारीग़र कि नगर में जोङ नहीं दूसरा ।
कटे बाल गिरते उठाने को जानबूझकर
लङकियों के गले पीठ छाती पर हाथ
का प्रेशर बढ़ जाता। एक दिन एक
टोली लङकियों की झगङ
बैठी तो लङकियों को ही वहमी और
गलत विचार की कहकर माफी माँग ली ।
लेकिन धीरे धीरे ये बात नगर में फैल
गयी और जब एक महिला हेयर ड्रेसर
उपलब्ध हुयी तो दुकान ठप्प हो गयी।
हुनरमंद फिर कैची लिये
घोङों की हज़ामत में रहे। बाद में
हुनरमंद के बेटों ने
पूरी निष्ठा ईमानदारी से दुकान री अरेंज
करके चलानी शुरू कर दी किंतु
लङकियाँ कतराने लगीं।
एक थे डॉक्टर त्वचारोग एवं
अस्थि रोग विशेषज्ञ सी एम ओ भी।
किशोरी हो या बच्ची चैकअप के बहाने
पेट पीठ कमर पेडू को नीचे और नीचे
तक छूते चले जाते । ऊपर हाथ रखते
तो ब्रा की स्टेप तक चले जाते ।
बहाना पक्का और चिकित्सक गुणवान ।
एक बार कॉलेज
की लङकियों की टोली ने
सारा चिट्ठा खोल दिया । डॉक्टर साब
की बात पर कई ने परस्पर हाँ भरी तब
जाकर डॉक्टर जी का तबादला हुआ।
डॉक्टर एक पवित्र पेशा। जिसके हाथ
ईश्वर के कहे जाते हैं ।
जो किसी भी मरीज को केवल एक मानव
सब्जेक्ट की तरह ही देखता है अकसर
डॉक्टर महान और पवित्र ही माने जाते
है । टीचर डॉक्टर और
माता पिता को समाज में सबसे अधिक
सम्मान प्राप्त है । और अब तक सबसे
कम पतन इस त्रिदेव का हुआ
माना जा सकता है।
किंतु अपवाद तो हैं ही । डॉक्टर से
नन्हीं बच्ची ने डरते डरते
कहा इतना सारा ब्लड सैंपल मत
लीजिये अंकल दर्द हो रहा है । और वह
सौ दो सौ में से एक शैतान डॉक्टर
बोलता है क्यों बेबी इससे ज्यादा ब्लड
तो पीरियड्स मेन्सुरेशन में हर रोज पाँच
दिन तक निकल जाता है लङकियों को ।
बच्ची नहीं समझी और
बोली वो क्या होता है अंकल कौन
सी बीमारी होती है। और दुष्ट डॉक्टर
उस बच्ची को बुरे आशय से समझाता है
कि क्या है ये बीमारी।
ऐसे उदाहरण किसी को भी सुनने देखने
और सामना करने को मिले हो सकते हैं ।
यह एक अपमान सा है स्त्रीबालक
का । जिन परिवारों के माँ बाप सचेत और
बच्चों के साथ मित्रवत हैं वे
लङकियाँ कॉन्फिडेंट होकर हर बात
माता पिता को बता देती हैं और लङके
भी।
और ये विश्वास तभी हो सकता है जब
पापा हौआ न हो और मम्मी हिटलर
मुसोलिनी डिक्टेटर नहीं हो।
किंतु ऐसा बहुत कम परिवारों में
हो पाता है दुर्भाग्य है भारतीय
बच्चों का। कि संस्कार के नाम पर
बच्चों और माता पिता के बीच असंवाद
की कठोर दीवार खङी रहती है । लङके
पापा से डरते हैं लङकियाँ माँ से।
जबकि माँ ही सही समाधान कर
सकती है। और पिता ही सही प्रोटेक्शन
। पापा मम्मी अगर आतंकित न करे
तो ऐसे डॉक्टर टीचर हेयर ड्रेसर के
बारे में अपनी चिढ़ नाराज़ी वगैरह
की वज़ह बच्चे बता सकते हैं।
किसी खास कर्मचारी से अगर बच्चे
दूरी रखना चाहते हैं तो विवश न करें
बल्कि दोस्ताना लहजे में बात करके
पता करें ।
हमने देखा कि एक
पढ़ी लिखी लगती महिला ने ट्रेन में
बच्ची को भीङ होने पर
अज़नबी की गोद में
बैठा दिया जबकि बच्ची आधा मिनट
बाद जिद करने लगी माँ के पास
खङी होने की लेकिन बजाय
बच्ची को सपोर्ट देने के पापा ने पीट
दिया। और खङा करके
दूसरा बच्चा बिठाना चाहा तो अजनबी ने
मना कर दिया बहाने से और बगल में
जगह दे दी।
इसी तरह की कई
मामूली लापरवाहियाँ किंतु खतरनाक
बातें बच्चे अकसर फेस कर रहे होते हैं ।
दो साल की बच्ची को माँ ने पीट
दिया क्योंकि वह लङकों की तरह सू सू
करने खङी हो गयी । किंतु कभी इस
बात पर ध्यान या सख्ती शायद
ही उसने की हो कि जब बाईक पर
परिवार जाता है तो पति बच्ची के
ही सामने किस तरह हाजत से निबटते हैं
।
बङी छोटी छोटी बातें है किंतु मानो या न
मानों भारतीय बच्चे एक तनाव और
मारपीट शोषण दुख से
भरी जिंदगी जी रहे हैं।
ये टी वी रेडियो कॉमिक्स सब बरस रहे
हैं अश्लीलता की बारूद लेकर और आग
ही आग हर तरफ फैली है। बच्चे झुलस
रहे हैं।
मनोरंजन का सबसे सुंदर तरीका है
फैमिली गेम । बच्चों के साथ माँ बाप
का रोज एक घंटा खेलना।
पापा का घोङा बनना मम्मी की लुकाछुपी।
बॉल बैट या चेस कारम या बैंकव्यापार
साँपसीढ़ी लूडो। कुछ भी । लेकिन
फैमिली गेम ।
और वे बच्चे जिनके साथ माँ बाप रोज
कमसे कम तीस मिनट खेलते हैं आप
परख लीजिये दूसरे बच्चों से अधिक
कॉन्फिडेंट और मुखर दोस्ताना स्वभाव
के होंगे। वे किसी भी गलत को चुपचाप
नहीं सहेगे बल्कि माँ बाप को बता देगे
और बुरे व्यक्ति को डाँट फटकार देगे।
हमारी माँ सा अकसर
भाभी चाची को बच्चे डराने पर डाँट
देतीं थीं । उनका कहना था कोई हौआ
भूत पिशाच या जानवर है ऐसा कहकर
डराकर बच्चे को सुलाना गुनाह है
क्योंकि इससे बच्चे डरपोक हो जाते हैं ।
वे अकेले होने से अँधेरे से और
किसी ताकतवर से डरते हैं । ये डर कई
बार जीवन भर साथ रहता है।
एक भतीजे को अकसर कजिन पुलिस से
डरा कर चुप करा देते थे । एक दिन
हमारी कंपनी कमांडेट मित्र
बावर्दी मिलने आ गयी और दूसरे दिन
एक नातेदार पुलिस वाले वरदी में ।
बच्चा बोला अरे!!!!! ये तो आदमी है??
सब चौके मतलब??
मतलब कि बच्चे की कल्पना में तब तक
पुलिस की आकृति जाने किसी प्रेत
की थी या पशु की।
और हर बार वह पुलिस पकङ ले
जायेगी सुनकर चुप होकर न जाने
क्या क्या कल्पनाये
करता रहता होगा । पश्चिमी यू पी में
लिल्लू से डराते है तो मध्य भारत में
हौआ से ।यहाँ तक कि कृष्ण के शिकवे
में सूर का पद भी है। ''कि बलदाऊ
भैया डराते हैं जंगल से हौआ आकर
पकङ लेगा और अकेला छोङकर सब
छिप जाते है तब मैं माँ को याद कर करके
रोता हूँ।
हमें याद है अपना डर वह था माँ के मर
जाने का । और ये डर
मिला था धमकी में कि अगर दुद्धू
नहीं पिओगी तो मम्मी मर जायेगी।ये
डर एक केयर टेकर
महिला का दिया हुआ था कहानी के
माध्यम से । गाय का दूध हमें पसंद
नहीं था किंतु बिना नागा रोज चुपचाप
पी जाते थे । कि कहीं माँ को भगवान न
लें जायें । हद की हद है कि बालपन में
माँ से बिछुङने का आतंक
इतना रहा कि कहीं पढ़
लिया कि धतूरा खाने से मर जाते है लोग
क्लास सेकेंड की किताब में ""कनक
कनक से सौ गुनी मादकता अधिकाई
इहि खाये बौरात नर उहि पाये
बौराई""बस माँ ने घुटनों पर बाँधने के
लिये धतूरा मँगाया और बीज निकालकर
भूनकर रखे । हम डर गये कि माँ खाकर
मरना चाहती है । बस नौ दस साल
की उमर में बीज खुद खा लिये
कि माँ ही मर जायेगी तो जीकर
क्या करेगे। कैसे रात भर राई अमचूर
और तमाम दवाईयाँ घोल कर पिलाकर
माँ भाई भाभी ने जान बचाई वही जाने ।
कई महीने हालत खराब रही । एक डर
किसी बच्चे को कितना रुलाता है।
कि आज जब माँ नहीं है तो बालपन
की तरह कभी कभी अंधविश्वास
होता कि कहीं हमने दूध पीने में
आनाकानी की थी इसीलिये
तो नहीं भगवान ने माँ को बुला लिया ।
हमारा निवेदन है सब परिजनों से
बच्चा कुछ भी कर रहा हो सजा और दंड
पुरस्कार और प्यार की नीति पर चले
जो अहानिकर हो परंतु कभी डरायें
नहीं ।
पता नहीं अपनी अधकचरी जानकारी में
वह बच्चा किस डर को किस तरह
कल्पित कर ले।
copy right ©®सुधा राजे
क्रमशः जारी
बच्चे 6-
एक था हेयर ड्रैसर जब जब छोटी और
किशोर लङकियों के बाल काटता ।
कैंची बालों पर चलती और
उंगलियाँ गालों पर साशय टिकी रहती ।
हमेशा शराब के नशे में रहता । हुनरमंद
कारीग़र कि नगर में जोङ नहीं दूसरा ।
कटे बाल गिरते उठाने को जानबूझकर
लङकियों के गले पीठ छाती पर हाथ
का प्रेशर बढ़ जाता। एक दिन एक
टोली लङकियों की झगङ
बैठी तो लङकियों को ही वहमी और
गलत विचार की कहकर माफी माँग ली ।
लेकिन धीरे धीरे ये बात नगर में फैल
गयी और जब एक महिला हेयर ड्रेसर
उपलब्ध हुयी तो दुकान ठप्प हो गयी।
हुनरमंद फिर कैची लिये
घोङों की हज़ामत में रहे। बाद में
हुनरमंद के बेटों ने
पूरी निष्ठा ईमानदारी से दुकान री अरेंज
करके चलानी शुरू कर दी किंतु
लङकियाँ कतराने लगीं।
एक थे डॉक्टर त्वचारोग एवं
अस्थि रोग विशेषज्ञ सी एम ओ भी।
किशोरी हो या बच्ची चैकअप के बहाने
पेट पीठ कमर पेडू को नीचे और नीचे
तक छूते चले जाते । ऊपर हाथ रखते
तो ब्रा की स्टेप तक चले जाते ।
बहाना पक्का और चिकित्सक गुणवान ।
एक बार कॉलेज
की लङकियों की टोली ने
सारा चिट्ठा खोल दिया । डॉक्टर साब
की बात पर कई ने परस्पर हाँ भरी तब
जाकर डॉक्टर जी का तबादला हुआ।
डॉक्टर एक पवित्र पेशा। जिसके हाथ
ईश्वर के कहे जाते हैं ।
जो किसी भी मरीज को केवल एक मानव
सब्जेक्ट की तरह ही देखता है अकसर
डॉक्टर महान और पवित्र ही माने जाते
है । टीचर डॉक्टर और
माता पिता को समाज में सबसे अधिक
सम्मान प्राप्त है । और अब तक सबसे
कम पतन इस त्रिदेव का हुआ
माना जा सकता है।
किंतु अपवाद तो हैं ही । डॉक्टर से
नन्हीं बच्ची ने डरते डरते
कहा इतना सारा ब्लड सैंपल मत
लीजिये अंकल दर्द हो रहा है । और वह
सौ दो सौ में से एक शैतान डॉक्टर
बोलता है क्यों बेबी इससे ज्यादा ब्लड
तो पीरियड्स मेन्सुरेशन में हर रोज पाँच
दिन तक निकल जाता है लङकियों को ।
बच्ची नहीं समझी और
बोली वो क्या होता है अंकल कौन
सी बीमारी होती है। और दुष्ट डॉक्टर
उस बच्ची को बुरे आशय से समझाता है
कि क्या है ये बीमारी।
ऐसे उदाहरण किसी को भी सुनने देखने
और सामना करने को मिले हो सकते हैं ।
यह एक अपमान सा है स्त्रीबालक
का । जिन परिवारों के माँ बाप सचेत और
बच्चों के साथ मित्रवत हैं वे
लङकियाँ कॉन्फिडेंट होकर हर बात
माता पिता को बता देती हैं और लङके
भी।
और ये विश्वास तभी हो सकता है जब
पापा हौआ न हो और मम्मी हिटलर
मुसोलिनी डिक्टेटर नहीं हो।
किंतु ऐसा बहुत कम परिवारों में
हो पाता है दुर्भाग्य है भारतीय
बच्चों का। कि संस्कार के नाम पर
बच्चों और माता पिता के बीच असंवाद
की कठोर दीवार खङी रहती है । लङके
पापा से डरते हैं लङकियाँ माँ से।
जबकि माँ ही सही समाधान कर
सकती है। और पिता ही सही प्रोटेक्शन
। पापा मम्मी अगर आतंकित न करे
तो ऐसे डॉक्टर टीचर हेयर ड्रेसर के
बारे में अपनी चिढ़ नाराज़ी वगैरह
की वज़ह बच्चे बता सकते हैं।
किसी खास कर्मचारी से अगर बच्चे
दूरी रखना चाहते हैं तो विवश न करें
बल्कि दोस्ताना लहजे में बात करके
पता करें ।
हमने देखा कि एक
पढ़ी लिखी लगती महिला ने ट्रेन में
बच्ची को भीङ होने पर
अज़नबी की गोद में
बैठा दिया जबकि बच्ची आधा मिनट
बाद जिद करने लगी माँ के पास
खङी होने की लेकिन बजाय
बच्ची को सपोर्ट देने के पापा ने पीट
दिया। और खङा करके
दूसरा बच्चा बिठाना चाहा तो अजनबी ने
मना कर दिया बहाने से और बगल में
जगह दे दी।
इसी तरह की कई
मामूली लापरवाहियाँ किंतु खतरनाक
बातें बच्चे अकसर फेस कर रहे होते हैं ।
दो साल की बच्ची को माँ ने पीट
दिया क्योंकि वह लङकों की तरह सू सू
करने खङी हो गयी । किंतु कभी इस
बात पर ध्यान या सख्ती शायद
ही उसने की हो कि जब बाईक पर
परिवार जाता है तो पति बच्ची के
ही सामने किस तरह हाजत से निबटते हैं
।
बङी छोटी छोटी बातें है किंतु मानो या न
मानों भारतीय बच्चे एक तनाव और
मारपीट शोषण दुख से
भरी जिंदगी जी रहे हैं।
ये टी वी रेडियो कॉमिक्स सब बरस रहे
हैं अश्लीलता की बारूद लेकर और आग
ही आग हर तरफ फैली है। बच्चे झुलस
रहे हैं।
मनोरंजन का सबसे सुंदर तरीका है
फैमिली गेम । बच्चों के साथ माँ बाप
का रोज एक घंटा खेलना।
पापा का घोङा बनना मम्मी की लुकाछुपी।
बॉल बैट या चेस कारम या बैंकव्यापार
साँपसीढ़ी लूडो। कुछ भी । लेकिन
फैमिली गेम ।
और वे बच्चे जिनके साथ माँ बाप रोज
कमसे कम तीस मिनट खेलते हैं आप
परख लीजिये दूसरे बच्चों से अधिक
कॉन्फिडेंट और मुखर दोस्ताना स्वभाव
के होंगे। वे किसी भी गलत को चुपचाप
नहीं सहेगे बल्कि माँ बाप को बता देगे
और बुरे व्यक्ति को डाँट फटकार देगे।
हमारी माँ सा अकसर
भाभी चाची को बच्चे डराने पर डाँट
देतीं थीं । उनका कहना था कोई हौआ
भूत पिशाच या जानवर है ऐसा कहकर
डराकर बच्चे को सुलाना गुनाह है
क्योंकि इससे बच्चे डरपोक हो जाते हैं ।
वे अकेले होने से अँधेरे से और
किसी ताकतवर से डरते हैं । ये डर कई
बार जीवन भर साथ रहता है।
एक भतीजे को अकसर कजिन पुलिस से
डरा कर चुप करा देते थे । एक दिन
हमारी कंपनी कमांडेट मित्र
बावर्दी मिलने आ गयी और दूसरे दिन
एक नातेदार पुलिस वाले वरदी में ।
बच्चा बोला अरे!!!!! ये तो आदमी है??
सब चौके मतलब??
मतलब कि बच्चे की कल्पना में तब तक
पुलिस की आकृति जाने किसी प्रेत
की थी या पशु की।
और हर बार वह पुलिस पकङ ले
जायेगी सुनकर चुप होकर न जाने
क्या क्या कल्पनाये
करता रहता होगा । पश्चिमी यू पी में
लिल्लू से डराते है तो मध्य भारत में
हौआ से ।यहाँ तक कि कृष्ण के शिकवे
में सूर का पद भी है। ''कि बलदाऊ
भैया डराते हैं जंगल से हौआ आकर
पकङ लेगा और अकेला छोङकर सब
छिप जाते है तब मैं माँ को याद कर करके
रोता हूँ।
हमें याद है अपना डर वह था माँ के मर
जाने का । और ये डर
मिला था धमकी में कि अगर दुद्धू
नहीं पिओगी तो मम्मी मर जायेगी।ये
डर एक केयर टेकर
महिला का दिया हुआ था कहानी के
माध्यम से । गाय का दूध हमें पसंद
नहीं था किंतु बिना नागा रोज चुपचाप
पी जाते थे । कि कहीं माँ को भगवान न
लें जायें । हद की हद है कि बालपन में
माँ से बिछुङने का आतंक
इतना रहा कि कहीं पढ़
लिया कि धतूरा खाने से मर जाते है लोग
क्लास सेकेंड की किताब में ""कनक
कनक से सौ गुनी मादकता अधिकाई
इहि खाये बौरात नर उहि पाये
बौराई""बस माँ ने घुटनों पर बाँधने के
लिये धतूरा मँगाया और बीज निकालकर
भूनकर रखे । हम डर गये कि माँ खाकर
मरना चाहती है । बस नौ दस साल
की उमर में बीज खुद खा लिये
कि माँ ही मर जायेगी तो जीकर
क्या करेगे। कैसे रात भर राई अमचूर
और तमाम दवाईयाँ घोल कर पिलाकर
माँ भाई भाभी ने जान बचाई वही जाने ।
कई महीने हालत खराब रही । एक डर
किसी बच्चे को कितना रुलाता है।
कि आज जब माँ नहीं है तो बालपन
की तरह कभी कभी अंधविश्वास
होता कि कहीं हमने दूध पीने में
आनाकानी की थी इसीलिये
तो नहीं भगवान ने माँ को बुला लिया ।
हमारा निवेदन है सब परिजनों से
बच्चा कुछ भी कर रहा हो सजा और दंड
पुरस्कार और प्यार की नीति पर चले
जो अहानिकर हो परंतु कभी डरायें
नहीं ।
पता नहीं अपनी अधकचरी जानकारी में
वह बच्चा किस डर को किस तरह
कल्पित कर ले।
copy right ©®सुधा राजे
क्रमशः जारी
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