Monday 4 November 2013

दीप तुम जला दो

Sudha Raje
1 hour ago ·
दीप ये मुझसे नहीं जलता जला दो । तम
अमा का नेह कंजों में भुला दो ।
लाओ तो तूली रँगोली मैं बनाऊँ । द्वार
वंदनवार किसलय के सजाऊँ। मुक्त
हो परिहास तो मैं चौक पूरूँ । दो नवल
उत्साह धन मैं भी बचाऊँ रूप तेरे ध्यान
का प्रतिबिंब हो ले ।
आम्रदुम से तोङ कोमल पत्र ला दो ।
दीप ये मुझसे नहीं जलता जला दो । ★
अल्पना के संग मेरी कल्पना में ।
तुम भरो तो रंग मेरी प्रार्थना में ।
भाव की गागर सुधा छलकी कलश में।
झिलमिलाता गेह स्वप्निल कामना में।
कंटकों चलते तृषित मन प्राण टूटे ।
तुम सरल मुस्कान से अमृत पिला दो ।
दीप ये जलता नहीं मुझसे जला दो । ★
षट् रसों से युक्त मैं व्यञ्जन बनाऊँ ।
दीप तुम बालो कि मैं अञ्जन सजाऊँ ।
हो प्रखर आलोक ये अवसाद जाये ।
छेङ दो वीणा कि गुञ्जन गुनगुनाऊँ ।
नृत्य करते पग मचलते ताल दे दो ।
तिक्तता संतृप्त हो मधु पर्क ला दो ।
दीप ये मुझसे नहीं जलता जला दो ।
भित्तियाँ तन की हृदय की धो रही हूँ।
दृग पलक सूखे अकिंचन रो रही हूँ
ये मेरा संसार तुम से तुम समझलो ।
इंद्रधनुषी रंग सपने बो रही हूँ।
हर्ष की आमोद फुलझङियाँ बिखेरो।
प्रिय गगन कंदील धर मन
झिलमिला दो । ©®sudha raje
dist- bijnor
U.P.

यह रचना पूर्णतः मौलिक है । All rights
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Saturday at 4:03pm ·

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