Monday 11 November 2013

बे आवाज़ कुंदन की पायलें।

25-7-2013-/8:12/AM//
कहानी---बे आवाज कुंदन की पायलें
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बारात आ चुकी है और सब जयमाला पर तुम्हारा इंतिज़ार कर रहे हैं सारे
मेहमान पूछ रहे हैं दुलहन को लाओ ।
आज अगर तुम नहीं उतरीं नीचे तो अब बस आखिरी एक ही उपाय है सब के सब ज़हर
खाकर मर जांयें और उससे पहले हम तुम्हें गोली मार दें।दरवाज़ा खोलो
विद्या!
आज सारे परिवार की आन ही नहीं ज़ान भी तुम्हारे पचास कदम चलने और ना चलने
के फ़ैसले पर है।

नरहरि पैलेस की दूसरी मंज़िल के बंद दरवाज़ों के बाहर खङी दादी माँ की
करुण पुकार को अनसुना करके भीतर से आवाज़ आयी।

आप लौट जायें दादी माँ । जब मेरी परवाह किसी ने नहीं की तो मैं क्यों
करूँ । जिसे मरना हो मर जायें । नाक कटे या गर्दन मैं कोई बङी बुआ सा
नहीं हूँ जो आप लोगों की भभकियों पर अपनी तबाही अपने हाथों लिख दूँ। लौट
जाये बारात ताकि सारे शहर को पता तो चले कि एक शानदार हवेली के भीतर
कितने घटिया लोग रहते हैं । आप ज़ान से मार सकते हैं लेकिन याद रखिये तब
भी ज़वाब तो देना ही पङेगा यहाँ जमा हुये सारे मेहमानों को कि आप लोगों
ने एक दुलहन की हत्या क्यों की!


ज़ोरावर दरवाज़ा तोङ दो । आज़ हमें ये दलदल आग के दरिया में बदलना ही पङेगा ।

दादी माँ के आदेश पर चार हट्टे कट्टे पुरुष कर्मचारी दरवाज़ा तोङने लगे।

भीतर कमरे में विद्या और विलास दोनों बंद थे । सारे कीमती सामान समेट कर
अटैचियों में बंद कर चुके थे । विलास के दोस्त हवेली से बाहर कार लेकर
खङे थे जिसका पता किसी को नहीं था । विलास मेहमानों के साथ बाराती बनकर
आया और कब सीधा विद्या के कक्ष में जा पहुँचा पता ही नहीं चला । जब
सुप्रिया से इंद्रेश ने बेटी को नीचे लाने को कहा तब वह सहेलियों को लेकर
ऊपर पहुँची तो पता चला वहाँ से विद्या ने लङकियों को ये कहकर भगा दिया था
कि कुछ देर अकेली रहना चाहती है।
कक्ष बंद था ।खिङकी काँच से झाँका तो सुप्रिया दंग रह गयी । विद्या किसी
पुरुष की बाँहों में थी। उसने दरवाज़ा भङभङाया तो पता चला अंदर से बंद
है। नीचे किसी भी पुरुष को अगर खबर लग जाती तो ख़ून ख़राबा हो जाता ।
विद्या के भाई या पिता चाचा जाने किसको जेल जाने की नौबत आती। सुप्रिया
मज़बूर होकर सास से सब कहना पङा ।

विद्या की दादी माँ जो हमेशा छोटे बेटे के साथ या मथुरा काशी प्रवास पर
रहतीं थी उस विवाह की वज़ह से ही आयीं थीं।

उनकी आँखों में अपनी बङी बेटी का भावविहीन सपाट चेहरा कौंध गया।

अरुन्धती कुँवर
बाई सा राज!
अब आपका ग्रेजुएशन पूरा हुआ । आगे पढ़ाई स्वाध्याय से कर लीजियेगा।

जी माँ सा हुकुम!

और हाँ ये कुछ तसवीरें हैं देख लीजियेगा ।

अरुन्धती चुपचाप खङी थी ।

विराजो बाई सा!

बङी कुँवरानी जी!
आप अपनी ननद को तसवीरें दिखा कर हमें सूचना दे दें हम तब तक आचार्य जी को
कुंडलियाँ मिलान को कह कर आते हैं।

भाभी सा!हुकुम!
हुकुम!! बाई सा?

हमें ये विवाह नहीं करना । हम मर जायेंगे मगर ये विवाह नहीं कर सकेगे भाभी सा!

खम्मा बाईसा हुकुम आप होश में तो हैं?आप कह क्या रहीं हैं!!

खम्मा भाभी सा हुकुम!!
हम किसी और को पसंद करते हैं ।

हे भवानी माँ!!
आप क्या क्या रहीं हैं बाई सा राज!!

हाँ भाभी सा हुकुम!!! हमारे राजपुरोहित परिमल जो हमें संस्कृत पढ़ाने आते
हैं रोज ।

क्या परिमल को ये सब पता है?बाई सा राज ?

नहीं हुकुम!! कभी साहस नहीं हुआ । बस पहली बार आपसे कहा है।

तो बस आखिरी बार भी कह लें बाई सा राज!! ये सिवा भावुक मूर्खता के कुछ
नहीं । आप भी समझती हैं । आप का विवाह वहीं होगा जहाँ आपके दादाभाई सा
बाबो सा काको सा मिलकर तय करेंगे । बाई सा राज हम साधारण स्त्री नहीं ।
हम राजपूत बालायें हैं हमारी गर्दन पर हमारा सिर ही नहीं सारे कुटुंब और
बिरादरी घराने और समाज की ज़ान आत्मा और मर्यादा का भी भार रहता है। किसी
भी जाति या वर्ण की स्त्री का पाँव जब डगमगाता है तब वे हमारी हवेलियों
गढ़ियों ढाणियों किलों महलों और कुटियों की तरफ देखते हैं । स्त्री का
मानक पैमाना तौल बाँट काँटे तराजू हम हैं बाई सा राज हम । एक पलङे में
क्षत्राणी की पायल रहती है दूसरे में सारे समाज और देश की आन बान शान मान
और मर्यादा। जो पीङा हम नहीं पी सके हमारी लाड बाई सा राज वो कोई और
स्त्री कभी नहीं पी सकती यही कसौटी है। यही हमारी नियति । राजपूत पुरुष
होना जहाँ गौरव की बात है वहीं राजपूत स्त्री होना आग का स्नान है ।
हमारे दिल दिमाग और बदन सिर्फ आग में पैदा होते हैं और आग में जलकर भस्म
हो जाने के लिये जलते दमकते रहते हैं। बाई सा!

भैरू जी की सौगंध हमारे वश में होता तो हम स्वयम आप का संदेश आचार्य जी
तक पहुँचाकर प्रसन्न होते । किंतु आप जानती हैं आपकी भाभी सा अपना सर तो
कटा सकती हैं आपके लिये किंतु ये संभव नहीं कि आपकी पायल आचार्य परिम
के आँगन तक पहुँचा सकें।इसीलिये एक राजपूत बेटी के हाथ में काँच नहीं लाख
और हाथीदाँत होता है पाँव में सोना बे आवाज पायल चूङा । कोई खनक छनक नहीं
। सोने से मढ़े ये पाँव । आग का दरिया जो पार करके चलते है बाई सा।
इसीलिये हर ज़श्न को राजपूत बेटी ज़ी भर जीती है । इसीलिये हमारे घर ही
नहीं समाज के पुरुष भी हमें पहले आसन देकर खुद हमारे लिये खङे रहते हैं ।
हम चातक व्रती नारियाँ सिर्फ स्वाति बूँद ही पीकर वीरधरा को हरा रखती
हैं। पर पुरुष नजर झुका कर पीठ फेर लेते जब हम गुजरते हैं ।स्त्री और
राजपूत स्त्री दो ध्रुव अलग अलग है बाई सा राज ।

चुपचाप कुछ तसवीरें पसंद कर लीजिये । देवोत्थानी एकादशी के बाद आपके
विवाह की तैयारी है।

क्यों भाभी सा!!! हुकुम हम विवाह न करें और आपकी मान मरयादा भी बनी
रहे??? हम महाकाल की सौगंध उठाकर कहते हैं कभी आप सब की बनायी रेखा को
छुयेंगे भी नहीं । हमें आगे पढ़ने दीजिये भाभी सा पाबू जी का वास्ता आपको
राम सा पीर की साक्षी हम कभी नजर उठाकर भी किसी पुरुष को जो देखें ।

काश!!! ये संभव होता बाई सा राज!!! हम क्षत्राणियाँ जन्म ही सत की
परीक्षा के लिये लेतीं हैं । जब जब जहाँ जहाँ जिस बेटी ने भी ये रेखा
लाँघी है शहर के शहर जल गये बाई सा ।राजपूत कन्या के लिये अकेला तपस्वी
जीवन बिताना तो बहुत सरल और आसान बात है लाड बाई सा!!! लेकिन मन हिल जाने
के बाद भी दीवारें गिरने से रोक कर किसी अजनबी की मन वचन कर्म से होकर
रहना बेहद कठिन।

ये मन ही तो नहीं होता किसी का भाभी सा!!! हुकुम!!

और ये मन ही तो बचाना तो परीक्षा है हमारी लाड बाई सा!
तन तो हमारे चंदन की लकङियाँ हैं बस चिताओं पर चढ़ने के काम आते हैं।
आपको याद रहे कि
हमारी भावा सा यानि आपकी दादीसा हुकुम का विवाह तो आपके बाबो सा हुकुम
के फेंटा कटार साफे और जूतियों से हुआ था लाड बाई सा जब वे चौदह साल की
थी !
आपके बाबो सा हुकुम रण में थे । और जब जेल से लौटे तो वे चौंतीस बरस की
थीं । आपकी माँ सा हुकुम का विवाह जब हुआ तो आपके बापू सा हुकुम डोली
हवेली में रखवा कर विदेश पढ़ने चले गये और पूरे बारह साल बाद लौटे । वह
भी साथ में छोटी माँ सा के साथ!

ये भी राजपूत बाला का कलेजा और धर्म है कि सुहाग की पसंद को अपनी पसंद
बनाकर आरती का थाल लेकर सौत का स्वागत करतीं आयीं हैं और पति की सेज किसी
दूसरी स्त्री के लिये अपने ही हाथों सजाकर सौत का श्रंगार करके पति के
कक्ष तक भेजती रहीं । हमारा विवाह तो तलवार और चूङा सिंदूर से होता है
लाड बाई सा। हमें तो आपने देखा ही है । उन गोलियों के वार से सती होने से
बचे तो आपके दादाभाई सा हुकुम को सात साल की जेल हो गयी कत्ल के जुर्म
में जबकि वे अगर पलट कर गोली नहीं चलाते तो आपके तीनों भाई मारे जाते और
साथ में सती होतीं तीन भाभियाँ भी । पाँच अनाथों को छोङकर ।

किंतु अब वो ज़माना गया भाभी सा हुकुम कानून ने सती प्रथा पर रोक लगा दी
है और बाल विवाह पर भी।

हा हा हा बाई सा राज!
बहुत भोली हैं आप!
हमें कानून कहता है कि मान मरयादा पर मर मिटो?? या हम कानून से पूछ कर
प्रेम कुरबानी और मौत का सामना करते है?? सती केवल चिता पर पति के जल
जाने का ही नाम नहीं है लाड बाई सा राज!! ये चिता तो हम स्त्रियाँ रोज
जलाकर कूद जाती हैं । जिंदा रहता और जलते रहना ही देखना है तो अपनी बुआ
सा हुकुम को देख लीजिये । लाख मनाया मगर ससुराल से मायके नहीं आ कर रहीं
। पैंतीस की थीं जब फूफा को डाकुओं से एनकाऊंटर में गोलियाँ लगी थी।
आजादी री सालगिरह!!!! क्या हुआ एक कागज एक मेडल और कुछ रुपये थमा कर
नमस्ते कर ली राष्ट्रपति ने? वो कैसे चार बेटों के साथ आज तक जियीं होगी
वे ही जानती होगी । फूफा की तसवीर के आगे थाल रखकर कैसे निवाले मुँह में
रखती है कोई कैसे जानेगा!!! बेटों के जोङे हो गये बेटियाँ विदा हो गयी
मगर बुआ सा की चिता हर रोज अब भी जस की तस धधक रही है । ये सती तो होना
बहुत ही आसान है बाई सा राज!

ठीक है भाभी सा राज!
जब यही हमारी परीक्षा है तो यही सही!!! आप माँ सा हुकुम से कह दीजिये वे
जहाँ चाहे जिसे चाहे हमारा डोला सौंप दें ।


भवानी माँ आपको लख लख ढोग!!बाई सा पाबू जी आप की रक्षा करें ।

ननद भाभी एक दूसरे के गले क्या मिलीं आँसुओं से दो समंदर क्षीरसागर हो गये

विष कंठ में धरे नीलकंठ के आगे एक जोङी पायल कुंदन की पीली चमक लिये
जिनमें आवाज़ नहीं होती । विराटदेव जू के आँगन में गनगौर पूजने लगी ।

विराटदेव जू ने कभी अरुंधती कुँवर की परवाह नहीं की । उनकी शामें क्लब
में और रातें पूर्व प्रेयसी मधूलिका के भवन में बीततीं । मधूलिका के मरने
के बाद वे वीत रागी हो गये। अरुंधती के दोनों बेटे अब विदेश पढ़ते हैं और
विराटदेव जू अब लौटे हैं अपनी विवाहिता के पास तो वे वीतरागी हो चुकीं
हैं ।

दादी सा ने आँखें पोंछी।

बींदणी सा!

हुकुम पेट्रोल लाईये ।

जो हुकुम माँ सा!

जोरावर पूरे कक्ष को पेट्रोल से नहला दो और हवेली के हर तरफ पहरा बढ़ा दो
। नीचे आचार्य जी से कहो कि दो घंटे मुहूर्त नहीं है समय की प्रतीक्षा
करें माँ सा का हुकुम है। मेहमानों को बङे बाग की बारादरी में संगीत
सुनाने ले जाईये ।
ठहरो!

माँ सा!हुकुम!

ये अरुंधती कुँवर थी।

आप हमें समझाने दीजिये बाई सा को!!

ठीक है आपके पास ये एक घंटा है और इसके बाद हम इस कक्ष को आग के हवाले कर
देगे । कल एक खबर होगी दुर्घटना की और बस । एक राजपूत लङकी की नियति है
कुरबानी और विद्या कुँवर उस परंपरा को नहीं तोङ सकतीं ।

हम आपके दूसरी बार कृतज्ञ होंगे लाड बाई सा राज!
विद्या को समझा लीजिये ।नहीं तो आज फिर कोई जेल जायेगा और कोई श्मशान।

सुप्रिया ने झोली फैलायी


बङी भाभी सा
! हुकुम!खम्मा!
एकलिंग जी रक्षा करें ।
विद्या बाई सा को कुछ नहीं होगा आप धीरज रखें।

विद्या बेटे दरवाजा खोलो!
आप जो चाहोगे वही होगा। हम आपकी बुआ सा अरुंधती हैं । हमें भीतर आने दो
नीचे हैं ।

दरवाजा खुला, बंद हुआ ,फिर खुला।
पाँच घंटे बाद ,विलास खुद विद्या की डोली को काँधा दे रहा था।
©®Sudha Raje
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
Mob- 7669489600
Email- sudha.raje7@gmail.com

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