Saturday 27 November 2021

जंगली हैं हम

कृपया शेयर करें ,
,

धरती का ऋण ,कुछ तो हों उऋण 
..........
सुधा राजे ,
*********
वर्षोत्सव व्यर्थ न जाये आओ फलदार वृक्ष लगायें 
<><><><><><><><><><><><><><><><><><>
आज का वृक्ष 
बेल 
विल्व 
विल्वम् 
................
यह एक इकलौता ही वृक्ष है जो अति प्राचीन कालीन वृक्ष होकर भी अपनी प्रजाति का एक ही रूप है । हालांकि "कैंथ"और जमालघोंटा"भी लगभग ऐसे ही फल होते हैं परंतु उन पर बाद में चर्चा करेंगे ।बेल का हर अंग एक औषधि होने से इसे पूजन और शिवाराधन में अनिवार्य माना गया है । कहते हैं कि बेलवृक्ष घर के उत्तर पश्चिम में लगाने से यश और दक्षिण पश्चिम में लगाने से लक्ष्मी बढ़ती है । विल्व का गूदा हवन में करने से भी श्री और शिव को प्रसन्न किया जाता है । त्रिपत्री के एक सौ आठ या एक हजार आठ पत्र शिव पर चढ़ाने का भी विशेष महत्त्व है ।सावन में तो और भी अधिक क्योंकि शिव के ही  होते हैं ये चतुर्मास । बेल के आसपास सर्प नहीं आते ऐसा मानते हैं जबकि रातरानी पर आते हैं ।बेल का फल सेब और नाशपाती से बड़ा कड़क शल्क में होता है जिसे तोड़ने पर भीतर गूदा पीले भूरे नारंगी रंग का मिलता है उसे पकने पर शरबत ठंडई मुरब्बा टाॅफी जूस शेक और जैली जैम आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है । गर्भवती स्त्री और पेट के हर प्रकार के रोगी के लिये बेल का शरबत मुरब्बा और हलवा सब ही लाभदायक पौष्टिक और पाचन शक्ति वर्दधक होते हैं जलन एसिडिटी अपच अफारा कब्ज और दस्त सब पर बेल का असर बहुत शीघ्र लाभ कारक होता है । यह इन्स्टेन्ट एनर्जिक पेय भी है जो थकान और कमजोरी दूर करता है । लू लगने तथा सिरदर्द आदि में भी बेल का शरबत राहतकारक है । बेल का वृक्ष बहुत कम देखभाल में ही पनप जाता है ।बीज या पौध से लगाया जा सकता है । नर्सरी पर भी प्राप्त कर सकते हैं । बेल को वर्षा में रोप दें और बस एक दो वर्ष से चार वर्ष तक में यह फल देने लगता है । राय बेल आकार में बहुत बड़े और बहुत मीठे होते है जबकि सादे बेल भी बहुत गुणकारी होते हैं । बेल में प्रोटीन फाईबल और शरीर को त्वचा के घाव भरने वाले मिनरल देने लायक तत्व होते हैं । यह पूर्णतः भारतीय फल है कांटे तो होते हैं परंतु काट छांटकर भी यह बहुत शीघ्र ही घना हो जाता है छाया बहुत घनी होती है कद पांच से पैंतीस फीट तक हो सकता है । आप बड़े से गमले में भी लगा सकते हैं बस समय समय पर बेकार टहनियां काटते रहें । बच्चों शिशुओं को बेल बहुत ही शक्ति देने वाला निरापद फल है । आयुर्वेद के अनुसार इसमें देह भीतर के समस्त विष हरने की अद्भुत शक्ति होती है ।तो आईये जहां जहां जगह मिले हम बेलफल का वृक्ष लगाकर सावन मनाये कहते हैं शवयात्रा के समय यदि बेलवृक्ष की छाया के नीचे से अर्थी निकल जाये तो उस व्यक्ति के पाप क्षमा होकर मोक्ष मिल जाता है । ऐसा तभी तो हो सकता है जब डिवाईडर पर सड़क किनारे  नदी मन्दिर श्मशान मुहल्ले के हर संस्थान और घर तथा बाहर की जगहों पर बेल का पेड़ को । लोग शिव को पत्तियां चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं आईयेे हम इस बार एक सौ आठ बेल वृक्ष लगाकर महाकाल महाप्रकृति की आराधना करें।सादर 
©®सुधा राजे 

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अपना प्रकृति ऋण अ्दा करें .....सादर निवेदन

जंगली हैं हम

धरती का ऋण ,कुछ तो हों उऋण 
..........
सुधा राजे ,
*********
वर्षोत्सव व्यर्थ न जाये आओ फलदार वृक्ष लगायें 
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आज का वृक्ष 
बेल 
विल्व 
विल्वम् 
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यह एक इकलौता ही वृक्ष है जो अति प्राचीन कालीन वृक्ष होकर भी अपनी प्रजाति का एक ही रूप है । हालांकि "कैंथ"और जमालघोंटा"भी लगभग ऐसे ही फल होते हैं परंतु उन पर बाद में चर्चा करेंगे ।बेल का हर अंग एक औषधि होने से इसे पूजन और शिवाराधन में अनिवार्माना गया है । कहते हैं कि बेलवृक्ष घर के उत्तर पश्चिम में लगाने से यश और दक्षिण पश्चिम में लगाने से लक्ष्मी बढ़ती है । विल्व का गूदा हवन में करने से भी श्री और शिव को प्रसन्न किया जाता है । त्रिपत्री के एक सौ आठ या एक हजार आठ पत्र शिव पर चढ़ाने का भी विशेष महत्तव है ।सावन में तो और भी अधिक क्योंकि शिव के होते हैं ये चतुर्मास । बेल के आसपास सर्प नहीं आते ऐसा मानते हैं जबकि रातरानी पर आते हैं ।बेल का फल सेब और नाशपाती से बड़ा कड़क शल्क में होता है जिसे तोड़ने पर भीतर गूदा पीले भूरे नारंगी रंग का मिलता है उसे पकने पर शरबत ठंडई मुरब्बा टाॅफी जूस शेक और जैली जैम आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है । गर्भवती स्त्री और पेट के हर प्रकार के रोगी के लिये बेल का शरबत मुरब्बा और हलवा सब ही लाभदायक पौष्टिक और पाचन शक्ति वर्दधक होते हैं जलन एसिडिटी अपच अफारा कब्ज और दस्त सब पर बेल का असर बहुत शीघ्र लाभ कारक होता है । यह इन्स्टेन्ट एनर्जिक पेय भी है जो थकान और कमजोरी दूर करता है । लू लगने तथा सिरदर्द आदि में भी बेल का शरबत राहतकारक है । बेल का वृक्ष बहुत कम देखभाल में ही पनप जाता है ।बीज या पौध से लगाया जा सकता है । नर्सरी पर भी प्राप्त कर सकते हैं । बेल को वर्षा में रोप दें और बस एक दो वर्ष से चार वर्ष तक में यह फल देने लगता है । राय बेल आकार में बहुत बड़े और बहुत मीठे होते है जबकि सादे बेल भी बहुत गुणकारी होते हैं । बेल में प्रोटीन फाईबल और शरीर को त्वचा के घाव भरने वाले मिनरल देने लायक तत्व होते हैं । यह पूर्णतः भारतीय फल है कांटे तो होते हैं परंतु काट छांटकर भी यह बहुत शीघ्र ही घना हो जाता है छाया बहुत घनी होती है कद पांच से पैंतीस फीट तक हो सकता है । आप बड़े से गमले में भी लगा सकते हैं बस समय समय पर बेकार टहनियां काटते रहें । बच्चों शिशुओं को बेल बहुत ही शक्ति देने वाला निरापद फल है । आयुर्वेद के अनुसार इसमें देह भीतर के समस्त विष हरने की अद्भुत शक्ति होती है ।तो आईये जहां जहां जगह मिले हम बेलफल का वृक्ष लगाकर सावन मनाये कहते हैं शवयात्रा के समय यदि बेलवृक्ष की छाया के नीचे से अर्थी निकल जाये तो उस व्यक्ति के पाप क्षमा होकर मोक्ष मिल जाता है । ऐसा तभी तो हो सकता है जब डिवाईडर पर सड़क किनारे  नदी मन्दिर श्मशान मुहल्ले के हर संस्थान और घर तथा बाहर की जगहों पर बेल का पेड़ को । लोग शिव को पत्तियां चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं आईयेे हम इस बार एक सौ आठ बेल वृक्ष लगाकर महाकाल महाप्रकृति की आराधना करे ।
©®सुधा राजे 

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Friday 26 November 2021

जंगली हैं हम

जंगली है हम दिल से 
स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )

~सूरन ,सुथनी ,रतालू ,जिमीकंद ,कन्दौरा ,कान्दू ,टेपियोका ,
को 
प्राय: लोग एक ही सब्जी समझ लेते हैं ये सब अलग अलग हैं । 
प्रजाति एक है । ये घुईयाँ के भाई बहिन हैं 
 बिहार मिथिला नेपाल और आसपास के क्षेत्रों में ""छठ "जो दीवाली के बाद आती है पर ""सूर्यपूजा का त्रिदिनात्मक व्रत होता है ,जिसमें जल स्रोतों के किनारे सूर्य वेदी बनाकर उसपर उस ऋतु की सब चीजें सूर्य को अर्पित करके आरोग्य संतान सौभाग्य समृद्धि की कामना की जाती है । 
उस टोकरी सूप डलिया में ,सिंघाड़ा ,पूरा नारियल ,गन्ना ,आदि हरिद्रा ,बेलफल ,और ""सुथनी ""अनिवार्य रूप से अन्य अनेक फल सब्जियों के साथ प्रसाद में लगाते हैं ।
सुथनी की सब्जी ,चोखा ,पकौड़ी पूरी ,कचौरी ,बनाते है ,यह आकार में आलू जैसा होता है ,इसकी बेलें पौधे छोटे होते हैं 
जबकि 
""कन्दौरा जो ऊपर से नारियल जैसा कत्थई भीतर रानी रंग गुलाबी ,और फिर सफेद होता है ,की बेलें जैसी हमने गृहवाटिका में लगाकर अनुभव लिया बहुत लंबी होती हैं 20 से 30 मीटर तक फैलतीं है बरसों चलतीं हैं हम जड़ में से 5 से 7 किलो तक कंदौरा निकालते थे ,
कई तो 4 किलों तीन किलो के होते थे ।
रतालू सफेद निकलता है 
सूरत कुछ पीलापन लिये 
कान्दू तो बड़ी अरबी जैसा होता पत्ते भी अरबी के ही जैसे होते हैं 
जिमीकंद पत्थर जैसा कत्थई कठोर दिखता है 
जबकि टेपियोका का रंग सफेद आकार बड़ा ।
............
आज ये सुथनी है 
............
मांसाहारियों के लिए वैकल्पिक शाकाहार है 
शाकाहारियों के मजेदार मांसाहार जैसा हर स्वाद परन्तु है सब्जी ।
.........(सुधा राजे )

जंगली हैं हम

जंगली है हम दिल से 
स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )

~सूरन ,सुथनी ,रतालू ,जिमीकंद ,कन्दौरा ,कान्दू ,टेपियोका ,
को 
प्राय: लोग एक ही सब्जी समझ लेते हैं ये सब अलग अलग हैं । 
प्रजाति एक है । ये घुईयाँ के भाई बहिन हैं 
 बिहार मिथिला नेपाल और आसपास के क्षेत्रों में ""छठ "जो दीवाली के बाद आती है पर ""सूर्यपूजा का त्रिदिनात्मक व्रत होता है ,जिसमें जल स्रोतों के किनारे सूर्य वेदी बनाकर उसपर उस ऋतु की सब चीजें सूर्य को अर्पित करके आरोग्य संतान सौभाग्य समृद्धि की कामना की जाती है । 
उस टोकरी सूप डलिया में ,सिंघाड़ा ,पूरा नारियल ,गन्ना ,आदि हरिद्रा ,बेलफल ,और ""सुथनी ""अनिवार्य रूप से अन्य अनेक फल सब्जियों के साथ प्रसाद में लगाते हैं ।
सुथनी की सब्जी ,चोखा ,पकौड़ी पूरी ,कचौरी ,बनाते है ,यह आकार में आलू जैसा होता है ,इसकी बेलें पौधे छोटे होते हैं 
जबकि 
""कन्दौरा जो ऊपर से नारियल जैसा कत्थई भीतर रानी रंग गुलाबी ,और फिर सफेद होता है ,की बेलें जैसी हमने गृहवाटिका में लगाकर अनुभव लिया बहुत लंबी होती हैं 20 से 30 मीटर तक फैलतीं है बरसों चलतीं हैं हम जड़ में से 5 से 7 किलो तक कंदौरा निकालते थे ,
कई तो 4 किलों तीन किलो के होते थे ।
रतालू सफेद निकलता है 
सूरत कुछ पीलापन लिये 
कान्दू तो बड़ी अरबी जैसा होता पत्ते भी अरबी के ही जैसे होते हैं 
जिमीकंद पत्थर जैसा कत्थई कठोर दिखता है 
जबकि टेपियोका का रंग सफेद आकार बड़ा ।
............
आज ये सुथनी है 
............
मांसाहारियों के लिए वैकल्पिक शाकाहार है 
शाकाहारियों के मजेदार मांसाहार जैसा हर स्वाद परन्तु है सब्जी ।
.........(सुधा राजे )

जंगली हैं हम

जंगली है हम दिल से 
स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )

~सूरन ,सुथनी ,रतालू ,जिमीकंद ,कन्दौरा ,कान्दू ,टेपियोका ,
को 
प्राय: लोग एक ही सब्जी समझ लेते हैं ये सब अलग अलग हैं । 
प्रजाति एक है । ये घुईयाँ के भाई बहिन हैं 
 बिहार मिथिला नेपाल और आसपास के क्षेत्रों में ""छठ "जो दीवाली के बाद आती है पर ""सूर्यपूजा का त्रिदिनात्मक व्रत होता है ,जिसमें जल स्रोतों के किनारे सूर्य वेदी बनाकर उसपर उस ऋतु की सब चीजें सूर्य को अर्पित करके आरोग्य संतान सौभाग्य समृद्धि की कामना की जाती है । 
उस टोकरी सूप डलिया में ,सिंघाड़ा ,पूरा नारियल ,गन्ना ,आदि हरिद्रा ,बेलफल ,और ""सुथनी ""अनिवार्य रूप से अन्य अनेक फल सब्जियों के साथ प्रसाद में लगाते हैं ।
सुथनी की सब्जी ,चोखा ,पकौड़ी पूरी ,कचौरी ,बनाते है ,यह आकार में आलू जैसा होता है ,इसकी बेलें पौधे छोटे होते हैं 
जबकि 
""कन्दौरा जो ऊपर से नारियल जैसा कत्थई भीतर रानी रंग गुलाबी ,और फिर सफेद होता है ,की बेलें जैसी हमने गृहवाटिका में लगाकर अनुभव लिया बहुत लंबी होती हैं 20 से 30 मीटर तक फैलतीं है बरसों चलतीं हैं हम जड़ में से 5 से 7 किलो तक कंदौरा निकालते थे ,
कई तो 4 किलों तीन किलो के होते थे ।
रतालू सफेद निकलता है 
सूरत कुछ पीलापन लिये 
कान्दू तो बड़ी अरबी जैसा होता पत्ते भी अरबी के ही जैसे होते हैं 
जिमीकंद पत्थर जैसा कत्थई कठोर दिखता है 
जबकि टेपियोका का रंग सफेद आकार बड़ा ।
............
आज ये सुथनी है 
............
मांसाहारियों के लिए वैकल्पिक शाकाहार है 
शाकाहारियों के मजेदार मांसाहार जैसा हर स्वाद परन्तु है सब्जी ।
.........(सुधा राजे )

जंगली हैं हम दिल से गँवार

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============
धरतीमाँ का ऋणकुछ तो हों उऋण 
-------------------------------------:सुधा राजे 
पावसोत्सव मनायें ,कुछ फलदार वृक्ष लगायें 
.............आज का वृक्ष 
बेर 
पेंदू बेर 
झरबेरी 
बदर 
~,~,~,~,~,~,~,~,~,~,
बेर का पेड़ कँटीला होता है और घनी झाड़ी दार गुँथी हुयी टहनियाँ होने से बेर तोड़ते समय हाथ में कांटे छिल जाते हैं । एक बार चंबल क्षेत्र के बरई पनिहार करई पाटई आरोन घाटीगांव में रहने घूमने का अवसर मिला तो पठारी मुरम पाटौर वाले गरम क्षेत्र में बाल्यकाल में हम सब गोष्ठ मनाने यानि पिकनिक पर जब जाते तो सबसे अधिक आकर्षण होते बेर ,चाहे वे पेंदू पबंदी एपल बेर हों या झरबेरी के या सादा देशी खटमिट्ठे बेर । 
बेर को अधपका पूरा पका और सुखाकर तथा उबालकर और पीसकर चूरन यानि बिरचन के तौर पर भी खाया जाता है । बेर के प्रमुख व्यंजनों में शरबत हलवा मुरब्बा अचार और जैम जैली मार्मेड आदि हैं । टाॅफी में भी बेर काम आता है । बेर बकरी ऊँट भेड़ आदि के लिये पसंदीदा पत्ती चारा है । बेर की लकड़ी बहुत मजबूत हल्की और बहुत समय तक चलने वाली होती है इसलिये बेंट और हत्थे तथा चारपाईयों किवाड़ों में भी लगती है । बेर का झाड़ खेत के लिये बाड़ रोक का काम करता है और बाऊण्ड्री की सुरक्षा भी । बेर पूरे भारत में हिमालय के अलावा कहीं भी लग सकता है जल्दी लगता है और कम देखरेख में पनप जाता है ।बेर के एपल बेर पबंदी बेर तो बहुत लाभ की खेती हैं यह संकरनस्ल है । पबंदी बेर मीठा बड़ा हरा सा और बहुत गूदेदार होता है । झरबेरी की झाड़ी होती है जबकि सादा बेर देसी स्वाद में सबसे बढ़िया और सुखाने पर पौष्टिक मेवा होता है । विटामिन बी सी का बहुत बढ़िया स्रोत है बेर । आयुर्वेद में इसके गुण सेब से अधिक माने गये हैं ।
नोट_:***
एपल बेर हाइब्रिड फलों का पौधा है

विटामिन सी, कैल्सियम, खनिज लवण और फॉस्फोरस जैसे तत्वों से फल भरा होने के कारण  बेहद लाभदायक।

बुवाई के बाद तेज वृद्धि तथा 6 माह में फल शुरू 
परन्तु पौधा छोटा होने के कारण यह फसल नहीं लेनी चाहिए।
एक पेड़ पर पहले साल 20 से 25 किलो उत्पादन
एक साल के बाद एक पेड़ 50 से 100 किलो फल देता है।
एक फल 50 से 125 ग्राम का
ये बेर खाने में सेब दिखने में भी सेब जैसे हैं।
इसमें कॉंटे नहीं लगते
फल बड़े तुड़ाई आसान व सस्ती
 लगभग 50 साल तक आमदनी लम्बी उम्र  कीमत परम्परागत बेर से ज्यादा मार्च व अक्टुबर में दो बार फूल  एक साल में दो बार फसल 

सेब में जितने न्यूट्रीशंस और एंटिऑक्सीडेंट होते हैं लगभग उतने ही गुणकारी तत्व एपल बेर में मौजूद हैं। 

तो चलो बेर कहीं भारत से मिट न जायें जहां भी जगह मिलें लगाये । बड़े गमले में भी बेर लग जाता है । न केवल स्वयं बल्कि औरों के लिये भी बेर लगायें यह शबरी का बेर है विदुर का भी । सादर निवेदन सहित ,
©®सुधा राजे

जंगली हैं हम दिल से गँवार

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धरतीमाँ का ऋणकुछ तो हों उऋण 
-------------------------------------:सुधा राजे 
पावसोत्सव मनायें ,कुछ फलदार वृक्ष लगायें 
.............आज का वृक्ष 
बेर 
पेंदू बेर 
झरबेरी 
बदर 
~,~,~,~,~,~,~,~,~,~,
बेर का पेड़ कँटीला होता है और घनी झाड़ी दार गुँथी हुयी टहनियाँ होने से बेर तोड़ते समय हाथ में कांटे छिल जाते हैं । एक बार चंबल क्षेत्र के बरई पनिहार करई पाटई आरोन घाटीगांव में रहने घूमने का अवसर मिला तो पठारी मुरम पाटौर वाले गरम क्षेत्र में बाल्यकाल में हम सब गोष्ठ मनाने यानि पिकनिक पर जब जाते तो सबसे अधिक आकर्षण होते बेर ,चाहे वे पेंदू पबंदी एपल बेर हों या झरबेरी के या सादा देशी खटमिट्ठे बेर । 
बेर को अधपका पूरा पका और सुखाकर तथा उबालकर और पीसकर चूरन यानि बिरचन के तौर पर भी खाया जाता है । बेर के प्रमुख व्यंजनों में शरबत हलवा मुरब्बा अचार और जैम जैली मार्मेड आदि हैं । टाॅफी में भी बेर काम आता है । बेर बकरी ऊँट भेड़ आदि के लिये पसंदीदा पत्ती चारा है । बेर की लकड़ी बहुत मजबूत हल्की और बहुत समय तक चलने वाली होती है इसलिये बेंट और हत्थे तथा चारपाईयों किवाड़ों में भी लगती है । बेर का झाड़ खेत के लिये बाड़ रोक का काम करता है और बाऊण्ड्री की सुरक्षा भी । बेर पूरे भारत में हिमालय के अलावा कहीं भी लग सकता है जल्दी लगता है और कम देखरेख में पनप जाता है ।बेर के एपल बेर पबंदी बेर तो बहुत लाभ की खेती हैं यह संकरनस्ल है । पबंदी बेर मीठा बड़ा हरा सा और बहुत गूदेदार होता है । झरबेरी की झाड़ी होती है जबकि सादा बेर देसी स्वाद में सबसे बढ़िया और सुखाने पर पौष्टिक मेवा होता है । विटामिन बी सी का बहुत बढ़िया स्रोत है बेर । आयुर्वेद में इसके गुण सेब से अधिक माने गये हैं ।
नोट_:***
एपल बेर हाइब्रिड फलों का पौधा है

विटामिन सी, कैल्सियम, खनिज लवण और फॉस्फोरस जैसे तत्वों से फल भरा होने के कारण  बेहद लाभदायक।

बुवाई के बाद तेज वृद्धि तथा 6 माह में फल शुरू 
परन्तु पौधा छोटा होने के कारण यह फसल नहीं लेनी चाहिए।
एक पेड़ पर पहले साल 20 से 25 किलो उत्पादन
एक साल के बाद एक पेड़ 50 से 100 किलो फल देता है।
एक फल 50 से 125 ग्राम का
ये बेर खाने में सेब दिखने में भी सेब जैसे हैं।
इसमें कॉंटे नहीं लगते
फल बड़े तुड़ाई आसान व सस्ती
 लगभग 50 साल तक आमदनी लम्बी उम्र  कीमत परम्परागत बेर से ज्यादा मार्च व अक्टुबर में दो बार फूल  एक साल में दो बार फसल 

सेब में जितने न्यूट्रीशंस और एंटिऑक्सीडेंट होते हैं लगभग उतने ही गुणकारी तत्व एपल बेर में मौजूद हैं। 

तो चलो बेर कहीं भारत से मिट न जायें जहां भी जगह मिलें लगाये । बड़े गमले में भी बेर लग जाता है । न केवल स्वयं बल्कि औरों के लिये भी बेर लगायें यह शबरी का बेर है विदुर का भी । सादर निवेदन सहित ,
©®सुधा राजे

जंगली हैं हम दिल से गँवार

जंगली हैं हम दिल से .....स्वभाव से गँवार ...(सुधा राजे 
,
परवल पृथक सब्जी है 
और कुँदरू पृथक 
परवल तनिक मँहगा मिलता है 
कुँदरू तनिक सस्ता 
सो बहुत माॅडर्न परिवारों के केवल फ्लैट कल्चर से परिचित लोग प्राय:
यह अंतर नहीं समझ पाते ,
परवल और कुँदरू दोनों का अचार ,सब्जी ,सलाद ,और मसाले लगाकर सुखाकर ,बाद में तल कर भूनकर ,स्वाद वर्धक के रूप में प्योग होता है ,
परन्तु हैं दोनों एकदम पृथक 
कुँदरू की बेलें 3 साल तक फल देतीं हैं , 
परवल भी बेल के रूप में गमले छत की ट्रे में लगाया जा सकता है ,खिड़की पर लटका सकते हैं ,
कुँदरू से खीरे के गुण प्राप्त होते हैं ,
परवल की सब्जी चटक बनती है और आलू आदि के साथ मिलाकर खाई जाती है ,एक शोध के अनुसार "स्वर्ण तत्व बथुआ और परवल में आंशिक रूप से पाया जाता है 
जबकि कुँदरू की कोंपलें मधुमेह नाशक हैं

Thursday 25 November 2021

स्मृतियों के अनहदनाद

कभी कभी बुरे दिन याद करना भी भला लगता है ',जब जवाब देने को रहता है ""उन सबको जब हाथ को हाथ नहीं दिखा तो पहला ''''चूहा कौन था जहाज पर से कूदने वाला ''
बचाने वाला तो तखते के फट्टे पर भी तैराकर किनारे लगा ही देता है ',
किंतु फिर '??यूँ ही आज यादों के वनवास में 
©®सुधा राजे

खेती बाड़ी साक सब्जी

जंगली हैं हम दिल से स्वभाव से गँवार (सुधा राजे )
  बुन्देलखंड छत्तीसगढ़ में सुर्ख गुलाबी ललाभ रंग का रतालू होता है जिसे ""कँदौरा ""कहते हैं ।
चिकिन मटन फिश करी वाली रेसिपी से पकाया बनाया जाता है 
लगभग वैसे ही कबाब कोफ्ते चोखा भुर्ता भरवाँ पराँठे पकौड़ी सब्जी बनाते हैं 
पान के पत्तों के आकार की लंबी लंबी बेलें बहुत फैलती हैं ,और उनपर बुलबुले जैसे फल भी लगते हैं परन्तु कंदौरा रतालू तो जड़ में लगता है ,
बाँस या लकड़ी डोरी का सहारा देकर बेलें चढ़ादी जातीं हैं 
हमने इसे गृहवाटिका में उगाया ,
जड़ से निकले कंद के टुकड़े काटकर गाड़ देने से बरसों तक कंदौरा चलता रहता है ,बेलें मर कर सूख जातीं हैं बरसात बाद फिर उसी जगह अपने आप निकलतीं हैं एक बार जहाँ लगा देते हैं कंदौरा चलता रहता है