Saturday 23 November 2013

एक थी सुधा ::सुधियों के बिखरे पन्ने

Sudha Raje
Sudha Raje
सुधियों के बिखरे पन्ने।
।सोलह वर्ष पहले । शादी के सवा साल
बाद ही पहला बच्चा होने के बीस दिन
बाद ही पति बिस्तर से चलने फिरने से
लाचार हो गये ।
कोई एक्सीडेंट विवाह
पूर्व घटा था।
बहुत इलाज गाजियाबाद दिल्ली और
आसपास कराया तो कुछ ठीक हुये।
किंतु हालात ऐसे बने कि दूसरी संतान
का फैसला लेना पङा ।ऑपरेशन से रिस्क
बहुत ज्यादा कहे गये ।दिल्ली से निराश
और अत्यधिक व्यय और लापरवाह स्टाफ
देखकर ।
निराश और डरे हुये हम पैसों का प्रबंध
करके जयपुर पहुँचे । वहाँ पति का मेजर
ऑपरेशन हुआ ।हालत बिगङी तो आई सी यू
रख "संतोकबा दुर्लभ जी अस्पताल
की तीसरी मंजिल रोज चढ़ना और फिर
रिक्शॉ से एक किलोमीटर दूर जाकर पथ्य
लाना । पति की शेविंग ,नाश्ता ,
स्पंजिंग,बेडपेन,शौच आदि कराना।
गहने और ज़मीन बेचकर पैसे जुटाये ।
धन पानी की तरह बह रहा था नातेदार
दूर हो गये कि कहीं कुछ मदद न माँग लें।
डॉ. काटजू ने अस्पताल से
छुट्टी दी तो पति को ज्यादा देर बैठने
खङे होने से रोक दिया।
सात सौ किलोमीटर सफर खतरनाक था ।
सो एक रिश्तेदार के घर "बूँदी" गये ।
उनके पङौस में एक कमरा किराये
का लिया और बच्चे के साथ
पति की सेवा में जुट गये ।हमारी हालत
बिगङ रही थी रक्ताल्पता से।
""तीसरी करवा चौथ"" व्रत रखा ।
कुछ वेश खरीदे ।
शाम को सब स्त्रियाँ बूँदी के "चौथ
माता "" मंदिर जाने लगीं ।हम
दोनो भी सबकी जिद पर गाङी से चले
गये । रात के आठ बजे । सभी मंदिर चढ़
गये ।हमें गाङी के पास छोङ गये ।मैं नवें
मास की गर्भवती और पति का अभी एक
पखवाङा पहले ही ऑपरेशन हुआ था रीढ़
का। हम दोनों ही चढ़ने लगे एक- एक
सीढ़ी ।ये सोचकर कि जहाँ असंभव
लगेगा वहीं से लौट आयेंगे। हम तीन
सौ सीढ़ियाँ चढ़कर पहाङी पर जा पहुँचे
।सब चौंक गये । हम दोनो दरबार में बस
रो रहे थे तरबतर आँसुओं से । और
बच्चा ताली बजा रहा था' ।"जय चौथ
माता की "।
--(-पूर्णतः सत्य घटना मौलिक लेख) ।
Copy right सुधा राज
Oct 22

No comments:

Post a Comment