ईश्वर एक बहाना

Sudha Raje
ईश्वर है या नहीं ये बहस सदियों से
छिङी है।
किंतु जब सब सहारे अवलंबन साथ छोङ
जाते हैं ।
जिनपर आप कुरबान होते रहे वो रिश्ते
आपको मुसीबत में देखकर मुँह फेर लेते हैं ।
समाज और व्यवस्था भी हर तरफ ध्वस्त
दिखने लगती है।
तब
जब आपका अपना बल और आत्मविश्वास
भी साथ छोङने लगता है।
भय आतंक और चिंता जब साँस साँस पर
संकट बनने लगती है ।
तब जब आशा और निराशा के बीच आप
होश खोने लगते हैं ।
जब
रह जाता है अंतिम एक उपाय प्रार्थना
बस प्रार्थना
और कुछ हो न हो ये
प्रार्थना किसी सर्वज्ञ सर्वव्याप्त
सर्वशक्तिमान के होने का एक आखिरी बल
महसूस कराती है ।
वहाँ जहाँ आप अब खत्म हो चुके हैं ।
वह फिर खङा करती है
उठो!!!!!!!!!
उठो!!!!!!!!!
अभी भी चमत्कार हो सकता है
और ये ईश्वर वहाँ
हाथ थामकर अंधकार की सुरंग पार
कराता है
आँख मूँदकर नागों पर काँटों पर दलदल पर
मरुथल पर आप चलते रहे हैं क्योंकि अब
तो कोई संबल बचा ही नहीं ।
ये ईश्वर वहाँ होना जरुरी है
ये एक बिखरे मन के टुकङे थमाकर
उठाता है ।
जैसे कहता है उठो!!!!
मैं तो हूँ तेरे साथ
तब जब आप अपने ही साथ अपना ईश्वर
बनकर चल पङते हैं
कोई नहीं आयेगा उठो!!!
मैं हूँ तुममें मेरा हाथ थाम लो और चलो आँख
बंद करके ।
क्योंकि देखोगे तो
डर ही डर है
डर को मत देखो
ईश्वर को देखो
और चलते रहो
(हो सके तो दुआयें कमाते रहना)
Sudha Raje
©®सुधा राजे
29/7/2012

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