Friday 8 November 2013

पहाङवाद//बनाम // मैदानवाद ---- सुधा राजे का लेख

Sudha Raje
पहाङवाद//बनाम // मैदानवाद
***★***★*****★********अगर आप
भारत के विविध वादों का सामना कर
चुके हैं तो एक और लेकिन बेहद
पुराना वाद समझिये ।
इसका अहसास आपको तब तक
नहीं होगा जब तक आप पहाङ को क़रीब
से नहीं जानते ।
पहाङी इलाकों उत्तराखंड और हिमाचल
प्रदेश का अलगाव उत्तर प्रदेश
हरियाणा पंजाब से होने के पीछे विकास
से ज़्यादा ये वाद भी है।
पहाङी लोग मेहनती और कठोर
परंपरावादी होते हैं ।
रोजमर्रा की जरूरतों के लिये कठोर
जीवन जीते हैं पहाङ पर मकान
पत्थरों और लकङियों की मदद से बनाते हैं
साफ पानी के लिये ऊबङ खाबङ रास्तों से
दूर दूर नदी झरनों कुँओं और
सरकारी नलों तक जातीं हैं स्त्रियाँ ।
पहाङी दूर शहरों में नौकरी करते हैं
सेना पुलिस घरेलू सुरक्षा और विविध
कार्य। विरहिनों का देश है पहाङ।
जहाँ परदेशी का वेतन तो हर महीने आ
जाता है पिया परदेशी साल में गिने चुने
समय को आता है ।पहाङ
की औरतों को पुरूषों की तरह
जीना पङता है ।
चारा काटना लकङी जुटाना घर
बनाना और बाजार के काम करना ।
पर्यटन से रोजी रोजी का हिसाब
अच्छा हो जाता है ।
जब सीजन होता है पर्यटन का तब
परदेशी पहाङी भी लौट आते हैं
जो प्रायवेट कामों में होते हैं ।
यात्रियों की जरूरतें हजारों तरह की और
तब पहाङी ज्यादातर देते हैं श्रमिक
सेवायें ।।
यहीं से शुरू होता है
पहाङी मैदानी संघर्ष ।
पहाङ से नीचे प्लेन में बसे काशीपुर
रूद्रपुर रामपुर सहारनपुर मुजफ्फरनगर
बिजनौर सहारनपुर नजीबाबाद और
पंजाब हरियाणा के पहाङ
की तलहटी वाले इलाके ।
यहाँ बसे है अल्पसंख्यक सिख और दलित
पिछङा वर्ग और जनजातीय लघु
व्यवसायी । जो खच्चर पालते हैं । ढाबे
चलाते हैं । कबाङ खरीदकर पहाङों से
लाते हैं । पैकेटबंद सामान ड्रिंक
बिस्किट नमकीन गुटखा सिगरेट और
रेडीमेड कपङे शहरों से ले जाकर पहाङों में
बेचते हैं । दवाईयाँ अखबार जूते चप्पल और
ट्रांसपोर्ट के लिये टैक्सियाँ बसे
आदि चलाते हैं ।सीडी इलेक्ट्रॉनिक्स
बेचते हैं ।होटल निर्माण में
मजदूरी रंगाई पुताई करते है।
इनके परिवार शहरों गाँवो कस्बों में
मैदान में रहते हैं और प्रायः पुरूष और
बङी आयु की महिलायें इनकी मदद
को सीजन में पहाङ पर जाती हैं । रजाई
गद्दे की धुनकी औऱ गरम कपङे मसालों और
जनरल स्टोर का काम पहाङ में बारह
महीने चलता है ।
ये मैदानी लोग मेहनती स्वाभिमानी और
धर्मभीरू पहाङियों की तुलना में चालाक
चंट चौकस बातूनी और मुनाफाखोर होते हैं

आप देखेंगे कि पहाङ पर पूँजी महानगरों के
व्यवसायियों की लगी है । बङे
प्रतिष्ठान होस्टल स्कूल मिलें
फैक्ट्रियाँ सिनेमाहॉल और होटल।
परिश्रम में पहाङी लगा है । और लघु
सेवाओं छोटी पूँजी के काम में
तलहटी का मैदानी।
ये मैदानी अक्सर यात्रियों और
पहाङियों दोनों को जमकर बेवकूफ बनाते
हैं ।
छोटे बङे काले धंधे करने वाले जैसे मादक
पदार्थ बुर्दाफ़रोशी और
मिलावटी सामान नेपाल से तस्करी औऱ
मांस जेबकतरी चोरी उठाईगीरी। करने
वाले अक्सर मैदानी होते हैं । जिससे
मैदान के ईमानदार लोगों पर
भी पहाङी संदेह करता है ।
क्योंकि यात्रियों के साथ जो ठगई
चोरी आदि होती है वह करते
तो बहुतायत मैदानी हैं परंतु यात्री इस
अंतर को नहीं जानते और इल्ज़ाम पहाङ के
लोगों पर आता है । पहाङ पर
अपराधी नहीं ये कहना भी ग़लत है ।
लेकिन मैदानी लोगों की तरह मिलावट
और मुनाफा खोरी कालाबाजारी और
भौतिकवाद हावी नहीं ।
मैदानी पोंगापंथीगीरी से
भी पहाङी जो पूजापाठ को दिल से
करता है नापसंद करता है ।
नंदा देवी धारी देवी नैना देवी मनसा दे
देवता बद्रीविशाल केदारनाथ नीलकंठ
यमुना गंगा पिंडर पीली ये सब
उनकी संस्कृति के अंग हैं । भारी नथ पीठ
पर बच्चा और मेहनत यही नाच गाना और
देसीदारू उनका आनंद है।
मैदानी वहाँ सिर्फ पैसा कमाने
जाता है।लेकिन पहाङी अपने जंगल पहाङ
मंदिरों और रिवाजों से प्यार करता है।
नफरत
करने की वाजिब वज़ह है उनके पास।
लेकिन कभी कभी कभी यह विभेद
दुखदायी हो जाता है ।
क्योंकि पहाङ पर बरसी हर आफत अंत में
मैदान के
तलहटी वालों की स्थायी मुसीबत
हो जाती है।
तालमेल होने में राजनीति आङे आती है।
जब दो विरोधी दल हों धर्म हों और
मानव शहरीकरण के साथ
स्वार्थी होता जाता है।
सवाल है पहाङ को मत बनाओ
मुनाफा मंडी।
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सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot- 246747
Bijnor
U.p.
mob-7669489600
email- sudha.raje7@gmail.com

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