Sunday 17 November 2013

हूँ गुनहग़र रूह का अपनी

Sudha Raje
Mar 19 ·
ना मिलना इतना मधुर मदिर
हम मिल जाते तो क्या होता!!
ये हृदय सुवासित शुष्क विरह
द्रुम खिल जाते
तो क्या होता!!!!
किंभूत वेदना रस भरती
किंजल्क करूण विष ये हरती
आलिंद सुमन मकरंद गंध हिलमिल
जाते तो क्या होता
अब थाम लो वल्गा लो जीवन
रह रह कहता एकांत भ्रमण
सुधियों में विचरते प्राण पथिक
झिलमिल गाते तो क्या होता?
©®¶©®¶//
Dta/Bjnr
ये मधुर विरह आनंद मदिर
दुख करूण वेदना शुष्क अधर ।
जीवन मरीचिका में भटके ।
हिय पंथी पंछी मूक बधिर
सुरलय रव गति यति तोय सुधा
उर्मिल गाते तो क्या होता
©सुधा राज

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