बच्चे
Sudha Raje
आप अगर स्त्री हैं तो अपना बचपन याद
कीजिये। और खुद ब खुद याद आ
जायेगा कि किस तरह इंप्रोपर चैनल से
सेक्स एज्यूकेशन मिलती है लङकियों को ।
और याद आ जायेंगे बङों बुजुरगों के
असली रूप। असली चेहरे। तब जब आप में से
बहुत सीं स्त्रियाँ छोटी बच्ची थीं और
माँ आदरणीय जनों की सेवा में
आपको भोजन परोसने दवा पानी चाय
देने भेज देतीं थीं और छू छू कर प्यार जताते
दस में से दो हाथ किन्हीं अपने लगते
शैतानों के थे। शायद ही कोई
स्त्री हो जिसने बचपन में जब अबोध
रही तब जब पता नहीं था कि ये सब
क्या और क्यों है बङों का घूरना छूना और
गंदे लालच को न महसूस किया हो।
कमज़ोर आर्थिक वर्ग के परिवार में दस
साल तक की बच्ची को मेहमान के आने पर
बेड कम हुआ तो घर के बङों के साथ
सुला देना आम बात है। भले ही सुनने में
खराब लगे परंतु ऐसे कई लोग नींद में
या जानबूझ कर नींद का बहाना करके
बच्चियों के साथ घिनौनी हरकतें करते
पाये गये। ऐसा सैकङों स्त्रियो को तब
याद आता है जब वे बङी सयानी समझदार
हो जातीं हैं और ये सब क्यों होता था वे
जान जाती हैं । तब नफरत हो जाती है
ऐसे नातों रिश्तों से । बहुत कम
लङकियों का बचपन ऐसे गंदे स्पर्शों से
सुरक्षित रह पाता है। समाज?
बलात्कार के पहले किसी हरकत
को गंभीरता से नहीं लेता । किंतु शायद
यह सब एक मनोचिकित्सक ही समझ
सकता है कि कामुक छेङछाङ स्पर्श
बातचीत लालच किस कदर विकृत कर देते
हैं बच्चों के काम विचार । सोलह
मनोविकार में सबसे प्रबल क्रोध काम
मोह और स्वामित्व है जो काम से
महाविकृत होकर पूरा जीवन ही तहस
नहस कर सकते हैं । बरसो पूर्व
हमारी एक क्लाईंट का तलाक़ केवल
इसलिये हो गया कि वह पति के साथ
नॉर्मल नहीं रह पाती थी बल्कि करीब
जाने पर डर आतंक या अभिनय पर उतर
आती पति को लगता वह रेप करने
जा रहा है । क्यों? क्योंकि उस लङकी के
मंदबुद्धि होने लाभ शऱाबी बाप ने
उठाया बचपन में माँ की उदासीनता के
कारण स्त्री की हवस में पुत्री तक
को चबा जाने वाले पिता शराब
का बहाना लेकर एक नहीं कई
ज़िंदगियाँ बरबाद कर चुके होते हैं ।
नशा करने वाले पुरुष रिश्तेदार से
बच्चों को बचाना आज़
भी चौकन्नी क्यों नहीं मातायें? जैसे
उनको लगता है पति बूढ़ा हो चला जोश
नहीं रहा और वह ऐसी गिरी हरकत
नहीं कर सकता। घर में कहाँ डर है।
लेकिन सवाल है आज कि कहाँ डर नहीं है।
वक्त आ चुका है घरों से शराब ड्रग्स नशे
का पूर्ण बहिष्कार सब मिल कर करें ।
विशेष कर लङकियों वाले घर से । मगर
अफसोस स्त्रियाँ खुद
आधुनिकता की अंधी दौङ में शैतान
की टीम में शामिल होती जा रहीं हैं ।
पुरानी कहावत है स्त्री की नकल पुरुष
करे तो देवता बन जाये ।किंतु पुरुष के
दोषों की नकल स्त्री करे तो डायन बन
जाये। अगर आप पिता हैं माता हैं
तो नशा क्यों? बच्चों के बचपन का सुख
नंदबाबा य़शोदा की तरह लीजियें आप
को किसी नशे की जरूरत नहीं । सिर्फ
इतना करना है
कि बच्चा खिलखिलाता रहे । कुछ
भी ऐसा न करें कि रोये या डर जाये।
©®सुधा राजे
क्रमशः जारी
आप अगर स्त्री हैं तो अपना बचपन याद
कीजिये। और खुद ब खुद याद आ
जायेगा कि किस तरह इंप्रोपर चैनल से
सेक्स एज्यूकेशन मिलती है लङकियों को ।
और याद आ जायेंगे बङों बुजुरगों के
असली रूप। असली चेहरे। तब जब आप में से
बहुत सीं स्त्रियाँ छोटी बच्ची थीं और
माँ आदरणीय जनों की सेवा में
आपको भोजन परोसने दवा पानी चाय
देने भेज देतीं थीं और छू छू कर प्यार जताते
दस में से दो हाथ किन्हीं अपने लगते
शैतानों के थे। शायद ही कोई
स्त्री हो जिसने बचपन में जब अबोध
रही तब जब पता नहीं था कि ये सब
क्या और क्यों है बङों का घूरना छूना और
गंदे लालच को न महसूस किया हो।
कमज़ोर आर्थिक वर्ग के परिवार में दस
साल तक की बच्ची को मेहमान के आने पर
बेड कम हुआ तो घर के बङों के साथ
सुला देना आम बात है। भले ही सुनने में
खराब लगे परंतु ऐसे कई लोग नींद में
या जानबूझ कर नींद का बहाना करके
बच्चियों के साथ घिनौनी हरकतें करते
पाये गये। ऐसा सैकङों स्त्रियो को तब
याद आता है जब वे बङी सयानी समझदार
हो जातीं हैं और ये सब क्यों होता था वे
जान जाती हैं । तब नफरत हो जाती है
ऐसे नातों रिश्तों से । बहुत कम
लङकियों का बचपन ऐसे गंदे स्पर्शों से
सुरक्षित रह पाता है। समाज?
बलात्कार के पहले किसी हरकत
को गंभीरता से नहीं लेता । किंतु शायद
यह सब एक मनोचिकित्सक ही समझ
सकता है कि कामुक छेङछाङ स्पर्श
बातचीत लालच किस कदर विकृत कर देते
हैं बच्चों के काम विचार । सोलह
मनोविकार में सबसे प्रबल क्रोध काम
मोह और स्वामित्व है जो काम से
महाविकृत होकर पूरा जीवन ही तहस
नहस कर सकते हैं । बरसो पूर्व
हमारी एक क्लाईंट का तलाक़ केवल
इसलिये हो गया कि वह पति के साथ
नॉर्मल नहीं रह पाती थी बल्कि करीब
जाने पर डर आतंक या अभिनय पर उतर
आती पति को लगता वह रेप करने
जा रहा है । क्यों? क्योंकि उस लङकी के
मंदबुद्धि होने लाभ शऱाबी बाप ने
उठाया बचपन में माँ की उदासीनता के
कारण स्त्री की हवस में पुत्री तक
को चबा जाने वाले पिता शराब
का बहाना लेकर एक नहीं कई
ज़िंदगियाँ बरबाद कर चुके होते हैं ।
नशा करने वाले पुरुष रिश्तेदार से
बच्चों को बचाना आज़
भी चौकन्नी क्यों नहीं मातायें? जैसे
उनको लगता है पति बूढ़ा हो चला जोश
नहीं रहा और वह ऐसी गिरी हरकत
नहीं कर सकता। घर में कहाँ डर है।
लेकिन सवाल है आज कि कहाँ डर नहीं है।
वक्त आ चुका है घरों से शराब ड्रग्स नशे
का पूर्ण बहिष्कार सब मिल कर करें ।
विशेष कर लङकियों वाले घर से । मगर
अफसोस स्त्रियाँ खुद
आधुनिकता की अंधी दौङ में शैतान
की टीम में शामिल होती जा रहीं हैं ।
पुरानी कहावत है स्त्री की नकल पुरुष
करे तो देवता बन जाये ।किंतु पुरुष के
दोषों की नकल स्त्री करे तो डायन बन
जाये। अगर आप पिता हैं माता हैं
तो नशा क्यों? बच्चों के बचपन का सुख
नंदबाबा य़शोदा की तरह लीजियें आप
को किसी नशे की जरूरत नहीं । सिर्फ
इतना करना है
कि बच्चा खिलखिलाता रहे । कुछ
भी ऐसा न करें कि रोये या डर जाये।
©®सुधा राजे
क्रमशः जारी
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